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शिवधनुष (पिनाक)
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शिवधनुष या पिनाक भगवान शिव का धनुष है। हिंदू महाकाव्य रामायण में इस धनुष का उल्लेख है, जब श्री राम इसे जनक की पुत्री सीता को अपनी पत्नी के रूप में जीतने के लिए भंग करते हैं।

पिनाक की उत्पत्ति
सारांश
परिप्रेक्ष्य
एक कथा के अनुसार, पिनाक भगवान शिव का मूल धनुष है जो विनाश या प्रलय के लिए उपयोग किया जाता है। मूल वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान इन्द्र द्वारा समान क्षमता के दो धनुष बनाए गए थे जो उन्होने रुद्र (भगवान शिव) और भगवान विष्णु को दे दिए और उनसे यह अनुरोध किया कि दोनों आपस में युद्ध करें जिससे ज्ञात हो सके कि उनमें से शक्तिशाली कौन है। लेकिन युद्ध की शुरुआत से ठीक पहले आकाशवाणी हुई कि यह युद्ध विनाश का कारण बन जाएगा और इसलिए यह युद्ध रोक दिया गया था। आकाशवाणी होने पर रुद्र ने धनुष फेंक दिया जो पृथ्वी पर गिर गया जिसे बाद में "शिवधनुष" कहा गया। पृथ्वी पर यह धनुष राजा जनक के पूर्वज राजा देवरथ को मिला। हिंदू महाकाव्य रामायण में इसका उल्लेख है, जब श्री राम इसे जनक की पुत्री सीता को अपनी पत्नी के रूप में जीतने के लिए भंग करते हैं।
एक बार विश्वकर्मा ने दो धनुषों का निर्माण किया इनके नाम रखे सारंग और पिनाक। पिनाक धनुष को भगवान शिव और सारंग धनुष को भगवान विष्णु को सौंपा गया। तब ब्रह्मदेव ये बात जानना चाहते थे कि विष्णु और शिव में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कौन हैं? इस बात का पता लगाने के लिए उन्होंने दोनों में धनुष प्रतियोगिता करवा दी। भगवान शिव और भगवान विष्णु में बहुत टक्कर का मुकाबला हुआ। अन्त में ब्रह्मा जी ने इस युद्ध को रुकवा दिया। उस युद्ध के पश्चात् भगवान शिव ने अपना धनुष एक राजा को दे दिया जो जनक के पूर्वज थे। ये देखते ही भगवान विष्णु ने अपना धनुष महर्षि ऋचीक को दे दिया और उनके पौत्र परशुराम के रूप में उन्हें ये पुनः प्राप्त हुआ।
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अन्य कथाएँ
सारांश
परिप्रेक्ष्य
दूसरी कथा के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने दो दैवीय धनुष तैयार किए। जिनमें एक का नाम शार्ङ्ग तथा दूसरे का नाम पिनाक था। उन्होंने शार्ङ्ग धनुष भगवान विष्णु को तथा पिनाक धनुष भगवान शिव को दिया था।
मिथिला के राजा जनक की सीता नाम की बेटी थी। अपने बचपन में, सीता ने अपनी बहनों के साथ खेलते समय अनजाने में उस मेज को उठा लिया जिस पर वह शिवधनुष रखा गया था; जिसे राज्य में और कोई भी नहीं उठा सकता था। इस घटना को जनक ने देखा और उन्होंने सीता के स्वयंवर के लिए इस घटना को पृष्ठभूमि के रूप में बनाने का फैसला किया।
बाद में, जनक ने घोषणा की कि जो भी सीता से विवाह करना चाहता है उसे इस दिव्य धनुष उठाना होगा और इसकी प्रत्यंचा चढ़ानी होगी। अयोध्या के राजकुमार राम ने ही यह धनुष प्रत्यंचित किया और सीता से विवाह किया। विवाह के बाद जब उनके पिता दशरथ राम के साथ अयोध्या लौट रहे थे, परशुराम ने उनके मार्ग को रोका और अपने गुरु शिव के धनुष को तोड़ने के लिए राम को चुनौती दी। राम ने धनुष को भंग कर दिया । इस पर दशरथ ने ऋषि परशुराम से उसे क्षमा करने के लिए प्रार्थना की लेकिन परशुराम और भी क्रोधित हुए और उन्होने विष्णु के धनुष शारंग को लिया और राम से धनुष को बांधने और उसके साथ एक द्वंद्वयुद्ध लड़ने के लिए कहा। राम ने विष्णु के धनुष शारंग को लिया, इसे बाँधा, इसमें एक बाण लगाया और उस बाण को परशुराम की ओर इंगित किया। तब राम ने परशुराम से पूछा कि वह तीर का लक्ष्य क्या देंगे। इस पर, परशुराम स्वयं को अपनी रहस्यमय ऊर्जा से रहित मानते हैं। वह महसूस करते हैं कि राम विष्णु का ही अवतार है।
पिनाक के बारे में एक और कथा भगवान विष्णु और भगवान शिव के मध्य युद्ध पर आधारित है, जो रामायण के बालकाण्ड के ७५वें सर्ग में वर्णित है। परशुराम ने शारंग को प्रत्यंचित करने के लिए चुनौती देने से पहले भगवान राम को यह कथा बताई। कहानी इस तरह है- देवता भगवान विष्णु और भगवान शिव की श्रेष्ठता का परीक्षण करना चाहते थे कि उन दोनों में से अधिक श्रेष्ठ कौन है। तब उन्होने भगवान ब्रह्मा से उनके बीच मतभेद पैदा करने के लिए कहा। युद्ध में, भगवान विष्णु ने भगवान शिव और देवताओं को पराजित किया। भगवान शिव का धनुष पिनाक बेकार हो गया और भगवान विष्णु का धनुष शारंग प्रबल हो गया। यह धनुष पिनाक बाद में भगवान राम द्वारा तोड़ा गया था। भगवान राम ने परशुराम से शारंग को भी लिया और इसे सुरक्षित रखने के लिए महासागर के देवता वरुण को दे दिया था।
यद्यपि पुराणों (प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों) से सन्दर्भ अभी भी सम्मिलित किया जाना बाकी है, लेकिन पिनाक का सम्बन्ध महर्षि दधीचि के जीवन के साथ है, जिन्होंने वृत्रासुर को पराजित करने में देवताओं की सहायता की और बाद में अनुरोध करने पर उन्होने अपने जीवन का अंत कर अपनी हड्डियों से वज्र का निर्माण किया जिसे इंद्र ने दानव वृत्रासुर को मारने के लिए प्रयोग किया था।
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संस्कृति में
भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने अपने बहु-नाल रॉकेट मोचक का नाम 'पिनाक' रखा है।
इन्हें भी देखें
- गाण्डीव - अर्जुन का धनुष
- पिनाक (बहुनाल रॉकेट मोचक)
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