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संख्या
गणितीय वस्तु जिसका उपयोग गिनती, नामकरण और माप के लिए किया जाता है विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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संख्याएँ वे गणितीय वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग मापने, गिनने और नामकरण करने के लिए किया जाता है। १, २, ३, ४ आदि प्राकृतिक संख्याएँ इसकी सबसे मूलभूत उदाहरण हैं। इसके अलावा वास्तविक संख्याएँ (जैसे १२.४५, ९९.७५ आदि) और अन्य प्रकार की संख्याएँ भी आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रयुक्त होतीं हैं। संख्याएँ हमारे जीवन के ढर्रे को निर्धरित करती हैं। केल्विन ने संख्याओं के बारे में कहा है कि आप किसी परिघटना के बारे में कुछ नहीं जानते यदि आप उसे संख्याओं के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर सकते।

जीवन के कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी संख्याओं की अहमियत है जो इतने आम नहीं माने जाते। किसी धावक के समय में 0.001 सैकिंड का अंतर भी उसे स्वर्ण दिला सकता है या उसे इससे वंचित कर सकता है। किसी पहिए के व्यास में एक सेंटीमीटर के हजारवें हिस्से जितना फर्क उसे किसी घड़ी के लिए बेकार कर सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उसका टेलीफोन नंबर, राशन कार्ड पर पड़ा नंबर, बैंक खाते का नंबर या परीक्षा का रोल नंबर मददगार होते हैं। सुखदेव जाट सुखदेव चौधरी के अनुसार अंकों के समूह को संख्या कहते हैं जीरो से लेकर के 9 तक कुल अंक 10 होते हैं जिनका निर्माण करके बहुत सारी संख्या बनाई जा सकती है उदाहरण के लिए 10, 123 189 ईटीसी
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संख्याओं का उद्भव
सारांश
परिप्रेक्ष्य
संख्याएं मानव सभ्यता जितनी ही पुरानी हैं। आक्सफोर्ड स्थित एशमोलियन अजायबघर में राजाधिकार का प्रतीक एक मिस्री शाही दंड (रायल मेस) रखा है, जिस पर 1,20,000 कैदियों, 4,00,000 बैलों और 14,22,000 बकरियों का रिकार्ड दर्ज है। इस रिकार्ड से जो 3400 ईसा पूर्व से पहले का है, पता चलता है कि प्राचीन काल में लोग बड़ी संख्याओं को लिखना जानते थे। बेशक संख्याओं की शुरूआत मिस्रवासियों से भी बहुत पहले हुई होगी।
आदिमानव का गिनती से इतना वास्ता नहीं पड़ता था। रहने के लिए उसके पास गुफा थी, भोजन पेड़-पौधों द्वारा या फिर हथियारों से शिकार करके उसे मिल जाता था। मगर करीब 10,000 साल पहले जब आदिमानवों ने गाँवों में बस कर खेती का काम और पशुपालन आरंभ किया तो उनका जीवन पहले से कहीं अधिक जटिल हो गया। उन्हें अपने रोजमर्रा के कार्यक्रम के साथ अपने सार्वजनिक एवं पारिवारिक जीवन में भी नियमितता लाने की जरूरत महसूस हुई। उन्हें पशुओं की गिनती करने, कृषि उपज का हिसाब रखने, भूमि की पैमाइश तथा समय की जानकारी के लिए संख्याओं की जरूरत पड़ी। दुनिया के विभिन्न भागों में जैसे कि बेबीलोन, मिस्र, भारत, चीन तथा कई और स्थानों पर विभिन्न सभ्यताओं का निवास था। इन सभी सभ्यताओं ने संभवतया एक ही समय के दौरान अपनी-अपनी संख्या-पद्धतियों का विकास किया होगा। बेबीलोन निवासियों की प्राचीन मिट्टी की प्रतिमाओं में संख्याएं खुदी मिलती हैं।
तेज धार वाली पतली डंडियों से वे गीली मिट्टी पर शंकु आकार के प्रतीक चिह्नों की खुदाई करते, बाद में इन्हें ईंटों की शक्ल दे देते। एक (1), दस (10), सौ (100) आदि के लिए विशेष प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाता था। इन प्रतीकों की पुनरावृत्ति द्वारा ही वे किसी संख्या को प्रदर्शित करते जैसे कि 1000 को लिखने के लिए वे प्रतीक चिह्न का सहारा लेते। या फिर 100 की संख्या को दस बलिखते थे। बेबीलोनवासी काफी बड़ी संख्याओं की गिनती वे 60 की संख्या के माध्यम से ही करते, जैसा कि आजकल हम संख्या 10 के माध्यम से अपनी गिनती करते हैं। मिस्र के प्राचीन निवासी भी बड़ी संख्याओं की गिनती करना जानते थे तथा साल में 365 दिन होने की जानकारी उनके पास थी।
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संख्याओं का वर्गीकरण
सारांश
परिप्रेक्ष्य
मूलतः संख्या का अर्थ 'प्राकृतिक संख्याओं' से लिया गया था। आगे चलकर धीरे-धीरे 'संख्याओं' का क्षेत्र विस्तृत होता गया तथा पूर्णांक, परिमेय संख्या, वास्तविक संख्या होते हुए समिश्र संख्या तक पहुँच चुका है।
संख्याओं के समुच्चय में यह सम्बन्ध है:
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संख्याओं का महत्व
एक आम आदमी के जीवन की निम्नांकित स्थितियों को देखिए:
1. सवेरे-सवेरे अलार्म घड़ी की आवाज एक दफ्तर जाने वाले को जगाती है। ‘‘छह बज गए; अब उठना चाहिए।’’ इस तरह उस व्यक्ति की दिनचर्या की शुरूआत होती है।
2. बस में कंडक्टर यात्री से कहता है : ‘‘चालीस पैसे और दीजिए।’’
यात्री : ‘‘क्यों मैं तो आपको सही भाड़ा दे चुका हूं।’’
कंडक्टर : ‘‘भाड़ा अब 25 प्रतिशत बढ़ गया है।’’ यात्री : ‘‘अच्छा, यह बात है।’’
3. एक गृहिणी किसी महानगर में दूध के बूथ पर जा कर कहती है, ‘‘मुझे दो लीटर वाली एक थैली दीजिए।’’
‘‘मेरे पास दो लीटर वाली थैली नहीं है।’’
‘‘ठीक है, तब एक लीटर वाली एक थैली और आधे-आधे लीटर वाली दो थैलियां ही आप मुझे दे दीजिए।’’
4. एक रेस्तरां में बिल पर नजर दौड़ाते हुए एक ग्राहक कहता है : ‘‘वेटर ! तुमने बिल के पैसे ठीक से नहीं जोड़े हैं। बिल 9.50 की बजाए 8.50 रु. का होना चाहिए।’’
‘‘मुझे अफोसस है, श्रीमान् !’’
ये कुछ ऐसी स्थितियाँ हैं जो संख्याओं के रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल को दर्शाती हैं।
इन्हें भी देखें
- अंक (डिजिट)
- स्थानीय मान
- भूतसंख्या पद्धति
- कटपयादि संख्या पद्धति
- आर्यभट की संख्यापद्धति
- संख्या सिद्धान्त
- अभाज्य संख्या या रूूढ़ संख्या (प्राइम नम्बर)
- गणितीय नियतांक
- भौतिक नियतांक
- परिमाण की कोटि (ऑर्डर ऑफ मैग्निट्यूड)
बाहरी कड़ियाँ
पूर्ण संख्या और पूर्णांक संख्या[मृत कड़ियाँ]
- https://web.archive.org/web/20091004230123/http://eom.springer.de/a/a013260.htm
- Mesopotamian and Germanic numbers
- BBC Radio 4, In Our Time: Negative Numbers
- '4000 Years of Numbers', lecture by Robin Wilson, 07/11/07, Gresham College (available for download as MP3 or MP4, and as a text file)।
- https://web.archive.org/web/20121003185207/http://planetmath.org/encyclopedia/MayanMath2.html
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सन्दर्भ
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