शीर्ष प्रश्न
समयरेखा
चैट
परिप्रेक्ष्य

संत कबीर नगर जिला

उत्तर प्रदेश का जिला विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

संत कबीर नगर जिला
Remove ads

संत कबीर नगर जिला उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के 75 जिलों में से एक है। खलीलाबाद शहर जिला मुख्यालय है संत कबीर नगर जिला बस्ती मंडल का एक हिस्सा है। यह जिला उत्तर में सिद्धार्थ नगर और महाराजगंज जिलों से पूर्व में गोरखपुर जिले से दक्षिण में अम्बेडकर नगर जिले से और पश्चिम में बस्ती जिला द्वारा घिरा है। इस जिले का क्षेत्रफल 1659.15 वर्ग किलोमीटर है। मेंहदावल, बखीरा, सेमरियावां, हैंसर, मगहर , टुंमपार ,और गिठनी, धनघटा आदि यहां के प्रमुख स्थलों में से हैं। घाघरा, कुआनो, कठनईया, आमी और राप्‍ती यहां की प्रमुख नदियां है।

सामान्य तथ्य राज्य, प्रभाग ...
Remove ads

नाम की उत्पत्ति

खलीलाबाद पहले बस्ती का हिस्सा था खलीलाबाद का पुराना नाम रगड़गंज था। खलीलाबाद के स्टेट बाबू लल्लू राय रईस थे। जो की बिधियानी गांव के निवासी थे, जिन्होंने अपनी जमीन पर रगड़गंज बाजार की स्थापना किया। बाबू लल्लू राय रईस के वंशज आज भी बिधियानी गांव में है। जिनका नाम राजा विनोद राय है। ये बाबू लल्लू राय रईस के चौथे वंशज राजा विनोद राय है।

खलीलाबाद का प्राचीन बाजार हरीहरपुर था । बाबू लल्लू राय रईस ने बाद में खलीलाबाद बाजार बसाया बाजार लगाने के लिए सभी को कर देना पड़ता था। कुछ साहूकार व मारवाड़ी ने अपने नाम के आगे राय जोड़ा जैसे कि प्रहलाद राय छपडिया, बाबू लल्लू राय रईस ने अगेंजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने खलीलाबाद के स्टेशन का दरवाज़ा अपने गांव के तरफ करवाया था जो कि आज भी है। बिधियानी की तीनो सड़क आज भी बाबू लल्लू राय रईस के नाम से है।

Remove ads

इतिहास

संत कबीर नगर जिला 5 सितंबर 1997 को बनाया गया था नए जिले में बस्ती जिले के तत्कालीन बस्ती तहसील के 131 गांवों और सिद्धार्थ नगर जिले के तत्कालीन बांसी तहसील के 161 गांवों शामिल थे। 5 सितंबर 1997 से पहले यह बस्ती जिले का तहसील था।

विभाजन

इस जिले में तीन तहसील खलीलाबाद, मेहदावल और धनघटा है। इस जिले में तीन विधान सभा क्षेत्र खलीलाबाद, मेहदावल और धनघटा है। ये सभी संत कबीर नगर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा हैं।

जिले के प्रमुख्य स्थान

सारांश
परिप्रेक्ष्य

महादेव मंदिर: खलीलाबाद से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित तामा गांव में महादेव मंदिर स्थित है। यह मंदिर भगवान तामेश्‍वर नाथ को समर्पित है। लोककथा के अनुसार मंदिर में स्थित मूर्ति तामा के समीप स्थित जंगल से प्राप्त हुई थी। राजा बंसी द्वारा इस प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया गया था। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। काफी संख्या में भक्त इस मेले में सम्मिलित होते हैं।

मगहर: यह शहर जिला मुख्यालय के दक्षिण-पश्चिम में लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह वही स्थान है जहां संत कवि कबीर की मृत्यु हुई थी। इस जगह पर संत कवि कबीर की एक समाधि और एक मस्जिद स्थित है। इस मस्जिद में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही पूरी श्रद्धा के साथ यहां आते हैं। 1567 में नवाब फिदाय खान ने इस मस्जिद का पुनर्निर्माण करवाया था।

लहुरादेवा : अब तक के अनुसंधान के अनुसार च्चावल का प्रयोग सबसे पहले चीन में हुआ था। पुरातात्विक और भाषाई साक्ष्य के आधार पर अब तक वैज्ञानिक सहमति यह थी कि चावल को पहली बार चीन में यांग्त्ज़ी नदी बेसिन में लगभग 8 हजार साल पहले उत्पादित किया गया था। जहाँ से प्रवासन और व्यापार के माध्यम से बाद में यह समूची दुनिया फैल गया । परन्तु भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की निगरानी में वर्ष 2000 से 2009 तक इस स्थान पर खुदाई से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों की कार्बन डेटिंग के आधार पर पाया गया कि चावल की खेती सबसे पहले चीन नही अपितु भारत मे इसी स्थान पर की गई थी । इसके अलावा भारत में मिट्टी के बर्तनों अर्थात मृदभांड (सिरेमिक) का इतिहास भी दुनिया मे सबसे पुराना है। क्योकि यहीं दुनियाभर में सबसे प्राचीन मृदभांड भी पाए गए। दरअसल यह भी चीन नही शायद भारत की इसी धरती की देन है | लहुरादेवा (अक्षांश 26°46'12" उत्तर; देशांतर 82°56'59" पूर्व) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में ऊपरी गंगा के मैदान के सरयूपुर (ट्रांस-सरयू) क्षेत्र में संत कबीर नगर जिले में स्थित है । सरयूपर का मैदान पश्चिम और दक्षिण में सरयू नदी , उत्तर में नेपाली तराई और पूर्व में गंडक नदी से घिरा है।

बखीरा: यह जगह गोरखपुर जिले से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विशेष रूप से यह जगह विशाल मोती झील के लिए जानी जाती है। माना जाता है कि इस झील का नाम नवाब सादत अली खान ने रखा था। सादत अली कभी-कभार इस जगह पर शिकार करने के लिए आया करते थे। बखीरा में लगने वाला बाजार भी काफी प्रसिद्ध है। इस बाजार में पीतल और कांसे से जुड़े काम की मांग सबसे अधिक रहती है। इसी कारण मिर्जापुर, वाराणसी और मुरादाबाद आदि जगहों से थोक विक्रेता इस जगह पर खरीददारी के लिए आते हैं।

खलीलाबाद: खलीलाबाद, संत कबीर नगर जिले का मुख्यालय है। जो कि बाद में बाबू लल्लू राय रईस के द्वारा बसाया गया बाजार रगड़गंज को रगड़गंज खत्म कर के बाद में इस जगह की स्थापना काजी खलील-उर-रहमान ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम खलीलाबाद रखा गया था। वर्तमान समय में यह जगह विशेष रूप से हाथ से बने कपड़ों के बाजार के लिए प्रसिद्ध है। इस बाजार को बरधाहिया बाजार के नाम से जाना जाता है।

हैंसर: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय में हैंसर, सूर्यवंशी लाल जगत बहादुर से सम्बन्धित था। स्वतंत्रता संग्राम में लाल जगत बहादुर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रत्येक मंगलवार और शुक्रवार के दिन यहां साप्ताहिक बाजार लगता है। इस जगह का क्षेत्रफल केवल 91.4 हैक्टेयर है। हैसर बाजार के क्षेत्र मे एक गॉव भरवल परवता है जो कफि मसहुर है।

हशेश्वरनाथ मंदिर: खलीलाबाद से तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैंसर गांव में महादेव जी का मंदिर हशेश्वरनाथ धाम स्थित है। यह मंदिर भगवान तामेश्‍वर नाथ को समर्पित है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। काफी संख्या में भक्त इस मेले में सम्मिलित होते हैं।

धर्मसिंहवा बाजार: धर्मसिंहवा बाजार संतकबीर नगर का बहुत ही पुराना कस्बा है। मेहदावल तहसील में स्थित इस कस्बे की कुल आबादी लगभग 15000 की है। यहाँ पर मौजूद पुरातात्विक अवशेष आज भी अपने अस्तित्व को पाने के लिये तरस रहे हैं। बताया जाता है कि गौतम बुद्ध जब सत्य की खोज के लिये जा रहे थे, वे यहाँ पर रूक कर विश्राम किये थे। यहाँ एक बोद्धस्तूप भी मौजूद है। यह कस्बा जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर जनपद के उत्तरी सीमा पर स्थित है। इस कस्बे से दो किमी के दूरी के बाद जनपद सिद्धार्थ नगर की सीमा शूरू हो जाती है। धर्मसिंहवा में थाना, बैंक, इन्टर कालेज, होम्योपैथिक अस्पताल,

कटका : यह संत कबीर नगर ज़िले के प्रमुख दर्शनीय स्थानों में से एक है। यह प्रसिद्द धार्मिक स्थल तामेश्वरनाथ से 3 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है | यहाँ पर चारो तरफ गहरी खाई के बीच में एक प्राचीन स्थल आज भी विद्यमान है। जिसे "कटका-कोट" के नाम से जाना जाता है। इसी परिसर में बाँसी के राजा की आराध्य देवी समय माता का प्राचीन "समय-मंदिर" भी स्थित है।

अमरडोभा: लेडुआ महुआ अमरडोभा संतकबीर नगर का एक तारीखी कसबा है यह एक बुनकरों का मुख्य असथान है!इस की कुल आबादी लगभग 10000 की है। जिसमें 75% के लगभग मुसलिम समुदाय के लोग है। यहाँ का गमछा बहुत मशहूर है। यहाँ हैनडलोम बहुत है जिससे गमछा चादर धोती कुरता और लुनगी यदि चीजें बनाई जाती है। यहाँ एक अरबी फारसी मदरसा बोर्ड उत्तर प्रदेश से मान्यता प्राप्त दारुलउलूम अहलेसुंनत तनवीरुल इस्लाम अमरडोभा डिग्री कालेज है। जिसमें हिन्दुस्तान के कई राज्य के बच्चे पढ़ते है। यहाँ बुधवार को बाजार लगता है जो इलाके का बड़ा बाजार है। यह कसबा जिला मुख्यालय से 18 कीमी के दूरी पर जनपद के उत्तर में है। यहाँ जोनियर हाई स्कूल, इनटर कालेज, सहज सेवा केंद्र, अस्पताल मौजूद हैं।

सिकरी तकियावा मुहर्रम मेला आयोजित होता है ये जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सईं बुजुर्ग': मुख्यालय से 20 किलोमीटर उत्तर यह गाँव स्थित है, इस गाँव की कुल आबादी लगभग 7000 है। यहाँ के ग्राम प्रधान का नाम किताबी देवी है। यहाँ सभी तरह के लोग रहते हैं। इस गाँव मे एक मदरसा भी है जिसका नाम दारुल उलूम अहले सुन्नत मिस्बाहुल उलूम है। इस मदरसे में कक्षा 5 तक की पढ़ाई होती है। इस गाँव के सभी छात्र होनहार हैं।

बभनौली बाज़ार : यह गाँव हैसर बाज़ार से दस किलोमीटर तथा सिकरीगंज से १२ किमी पर स्थित है। यह गांव शाकद्वीपीय ब्राह्मण के लिए प्रसिद्ध है। प्रथम शाकद्वीपीय ब्राह्मण छेमजीव मिश्र ने बभनौली की नींव रखी। इनके वंशजों के द्वारा आस पास के १६ ग्राम बासी के राजा के द्वारा उनके वैद्यक कार्यों से खुश होके दिया गया था । भीम सेन मिश्र इनके पुत्र पारस नाथ मिश्रा उनके पुत्र नरसिंह नारायणा मिश्र हुए जिनके विद्वता और समाज कौशल से उस समय का पूरा बस्ती मंडल उज्जवल हो रहा था । नरसिंह नारायणा मिश्र के पुत्र रामप्यारे मिश्रा और रामधारे मिश्र हुए जिन्होंने बस्ती ,कोचरी ,राजनौली, खैराती , नगहरा ,हैसर के क्षेत्रों में अपना वर्चस्व कायम रखा ।

गांव में प्राचीन समय से ही शिवालय मौजूद है जिसकी कृपा सभी ग्रामवाशियो पर बनी हुए है। बभनौली के पंडित तीर्थ राज मिश्र के द्वारा अपने दरवाज़े पर बाजार लगवाना शुरू किया गया था जो आज भी प्रत्येक मंगलवार और शुक्रवार को उन्ही के दरवाज़े के सामने लगती है। ब्राह्मणों के द्वारा बसाए जाने के कारण ही इस गाँव का नाम बभनौली पड़ा।इसी ख़ानदान के पंडित शिव पूजन मिश्र पंडित शिव पूजन के पाँच पुत्रों राजेंद्र प्रसाद,अमेंद्रा नाथ, नागेन्द्र नाथ,दिग्विजय नाथ, चन्द्र प्रकाश में सम्प्रति चन्द्र प्रकाश जीवित है। --> एक प्रसिद्ध पहलवान थे।बभनौली  गाँव वहाँ के प्रसिद्ध मंदिर ओबा माई मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, प्रत्येक नवरात्र में मेला का आयोजन भी होता है । अगर कभी जाने का मौक़ा मिले तो इस मंदिर का दर्शन अवश्य करे।यहाँ  मंदिर तक पहुचने के लिए दो रास्ते है १-- गोरखपुर से सिकरीगंज, फिर वहाँ से लोहरैया पहुँचे वहाँ से बभनौली के लिए साधन उपलब्ध है।   २---हैसर बाज़ार से लोहरैया पहुँचे फिर वहाँ से बभनौली।

बंजरिया : यह गांव खलीलाबाद शहर से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुख्यतः यह गांव मशहूर पहलवान इनामुल हक खान और मशहूर समाजसेवी जावेद अहमद उर्फ चिथरू खान के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चिथरू खान जय सिंह के वंशज थे जिनकी मजार जय सिंह दादा के नाम से बाकरगंज गांव से सटे शहीदवारे में स्थित है। ऐतिहासिक साछ्यो के आधार पर कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरागंजेब के शासन काल में जय सिंह दादा ने धर्म परिवर्तन करके इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था । धर्म परिवर्तन के बाद जय सिंह दादा ने अपना नाम अब्दुल्लाह रख लिया था किंतु उनका पुराना नाम ही लोकप्रिय है। आज भी लोग उन्हें जय सिंह दादा के नाम से ही याद करते हैं।

सेमरियावां बाजार या सेमरियावां ब्लॉक  : सेमरियावां बाजार नाम से मशहूर ये एक ब्लॉक भी है लेकिन लोग इसे ज्यादा सेमरीयवां बाजार के नाम से ज्यादा जानते हैं इस ब्लॉक अंतर्गत लगभग 190 गाँव आते हैं और ये खलीलाबाद से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पे हैं इन सबकी तहसील खलीलाबाद मे ही है सेमरियावाँ बाजार खुद मे बहुत बड़ी मार्केट है यह सभी तरह के समान आपको बड़ी ही आसानी से मिल जाएंगे खासकर ये बाजार महिलाओ के आकर्षण का केंद्र है सेमरियावाँ बाजार जाने के लिए आपको सबसे करीबी रेल्वे स्टेशन की अगर बात करें तो बस्ती जंक्शन है आप खलीबाद रेल्वे स्टेशन से भी या सकते हैं ये ब्लॉक मुस्लिम बाहुल्य छेत्र है सेमरीयवां की जमा मस्जिद बहुत ही मशहूर और खूबसूरत है हफ्ते मे सोमवार के दिन यहा की बाजार लगती है और लगभग यहा हर एक साल मे एक इजतेम का आयोजन जरूर होता है और उसी तरह से हर साल बड़े ही धूम धाम से दुर्गा पूजा का भी आयोजन किया जाता हैं और बात करें धार्मिक तयोहारों की और उनके मेलों की तो मोहर्रम का काफी बड़ा मेला सेमरियावाँ ब्लॉक के अंततर्गत आने वाले गंगौली गाँव मे लगता हैं ये एक छोटा ही गाँव है जो सेमरिया से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर है ।

Tumpar:

Remove ads

सडक यातायात

वायु मार्ग : सबसे निकटतम हवाई अड्डा गोरखपुर महायोगी गोरखनाथ एयरपोर्ट और दूसरा साकेत अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यह फैजाबाद में स्थित है।

रेल मार्ग : जिले में तीन रेलवे स्टेशन है खलीलाबाद, मगहर और चुरेब। रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से यहां पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग : भारत के कई प्रमुख शहरों से सड़कमार्ग द्वारा संत कबीर नगर पहुंचा जा सकता है। १- गोरखपुर से सिकरी गंज वहाँ से हैसर होते हुए संतकबीर नगर,,२-गोरखपुर से खलीलाबाद ,बस्ती राजमार्ग से


Remove ads

संबंधित लेख

बाहरी कड़ियाँ

{{आधार} }

Loading related searches...

Wikiwand - on

Seamless Wikipedia browsing. On steroids.

Remove ads