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सत्येन्द्रनाथ बोस
भारतीय गणितज्ञ और भौतिक-शास्त्री (1894-1974) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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"सत्येंद्र नाथ बोस" FRS, MP[1] (/ˈboʊs/;[2][a] 1 जनवरी 1894 – 4 फरवरी 1974) एक भारतीय गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री थे, जिन्होंने तार्किक भौतिकी पर काम के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्धता प्राप्त की। उन्हें बोस-आइन्स्टीन आंकड़े और बोस–आइन्स्टीन सिद्धांत की नींव रखने के लिए सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है। रॉयल सोसायटी के एक सदस्य, उन्हें भारत सरकार द्वारा 1954 में दिया गया भारत का दूसरा उच्चतम नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, से सम्मानित किया गया।[3][4][5]

उन धरात्मक तत्वों की श्रेणी, जो बोस सांख्यिकी का पालन करते हैं, बोसॉन के नाम पर पॉल डिरैक ने बोस के नाम पर रखा।[6][7]
एक बहुगुणिता विद्वान, उनके पास भौतिकी, गणित, रसायन विज्ञान, जीव-विज्ञन।
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जीवन
सारांश
परिप्रेक्ष्य
सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था[8]। उनकी आरंभिक शिक्षा उनके घर के पास ही स्थित साधारण स्कूल में हुई थी। इसके बाद उन्हें न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में भरती कराया गया। स्कूली शिक्षा पूरी करके सत्येन्द्रनाथ बोस ने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। वह अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा। उनकी प्रतिभा देखकर कहा जाता था कि वह एक दिन पियरे साइमन, लेप्लास और आगस्टीन लुई काउथी जैसे गणितज्ञ बनेंगे।
सत्येन्द्रनाथ बोस ने सन् १९१५ में गणित में एम.एस.सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम आकर उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया। उन दिनों भौतिक विज्ञान में नई-नई खोजें हो रही थीं। जर्मन भौतिकशास्त्री मैक्स प्लांक ने क्वांटम सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। उसका अर्थ यह था कि ऊर्जा को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटा जा सकता है। जर्मनी में ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने "सापेक्षता का सिद्धांत" प्रतिपादित किया था। सत्येन्द्रनाथ बोस इन सभी खोजों का अध्ययन कर रहे थे। बोस तथा आइंस्टीन ने मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की।
उन्होंने एक लेख लिखा- "प्लांक्स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम" इसे भारत में किसी पत्रिका ने नहीं छापा तो सत्येन्द्रनाथ ने उसे सीधे आइंस्टीन को भेज दिया। उन्होंने इसका अनुवाद जर्मन में स्वयं किया और प्रकाशित करा दिया। इससे सत्येन्द्रनाथ को बहुत प्रसिद्धि मिली। उन्होंने यूरोप यात्रा के दौरान आइंस्टीन से मुलाकात भी की थी। सन् १९२६ में सत्येन्द्रनाथ बोस भारत लौटे और ढाका विश्वविद्यालय में १९५० तक काम किया। फिर शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनका निधन ४ फ़रवरी १९७४ को हुआ। अपने वैज्ञानिक योगदान के लिए वह सदा याद किए जाएँगे।
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मातृभाषा में विज्ञानचर्चा
बांग्ला भाषा में विज्ञानचर्चा के क्षेत्र में उनका अमूल्य योगदान है। १९४८ ई में उनके नेतृत्व में कलकता में बंगीय बिज्ञान परिषद गठित हुई थी। इस परिषद का मुखपत्र 'ज्ञान ओ विज्ञान' (ज्ञान और विज्ञान) नामक पत्रिका थी । १९६३ ई में में इस पत्रिका में "राजशेखर-बसु संख्या" नामक एकमात्र मूलभूत अनुसन्धान विषयक लेख प्रकाशित करके उन्होने दिखा दिया कि बांग्ला भाषा में बिज्ञान के मूल लेख लिखना सम्भव है।
- जो यह कहये हैं कि बांग्ला में विज्ञानचर्चा सम्भव नहीं है, वे या तो बांग्ला नहीं जानते या विज्ञान नहीं समझते।
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सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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