शीर्ष प्रश्न
समयरेखा
चैट
परिप्रेक्ष्य

सफ़ेद बारादरी

भारत की एक इमारत विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

सफ़ेद बारादरी
Remove ads

सफ़ेद बारादरी (उर्दू: سفید بارادری) (जिसका अर्थ है, 'श्वेत वर्ण का बारह द्वारों वाला महल') उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कैसरबाग मोहल्ले में स्थित एक श्वेत रंग का महल है जिसका निर्माण वाजिद अली शाह ने करवाया था। सफ़ेद बारादरी का निर्माण अवध के तत्कालीन नवाब वाजिद अली शाह ने मातमपुर्सी के महल के रूप में १८४५ में करवाया था और इसका नाम कस्र-उल-अज़ा रखा था। इसको इमाम हुसैन के लिये अज़ादारी अर्थात् मातमपुर्सी हेतु इमामबाड़ा रूप में करवाय़ा था।[1] कुछ अन्य सूत्रों के अनुसार नवाब ने इसका निर्माण १८४८ में आरम्भ करवाया था जो १८५० में पूरा हुआ। इनके अनुसार इसको मुख्यतः नवाब वाजिद अली शाह के हरम में रहने वाली महिलाओं के लिए करवाया गया था।[2]

सामान्य तथ्य सफ़ेद बारादरी, अन्य नाम ...
Remove ads

इतिहास

सारांश
परिप्रेक्ष्य

नवाब वाजिद अली शाह के समय के इतिहासकारों के अनुसार सैयद मेहदी हसन ने ईराक के कर्बला से लौटते हुए एक जरीह (हजरत हुसैन के मकबरे से उनकी एक निशानी) लेते आये थे जो पवित्र खाक-ए-शिफ़ा (हजरत हुसैन की शहादत की भूमि की मिट्टी) से बनी थी। मान्यतानुसार इस जरीह में चिकित्सकीय गुण थे, जिनके कारण इसे कर्बला दायनात-उद-दौला में रखा गया था। जब नवाब साहब को इस शिफ़ा का ज्ञान हुआ तो वे अपने सामन्तों सहित काले वस्त्रों में हजरत हुसैन का मातम करने गये थे। कालान्तर में नवाब वाजिद अली ने अपने सामन्तों को आदेश दिया कि इस जरीह को शाही जलूस के साथ सफ़ेद बारादरी लाया जाए और वहीं सहेज कर रखा जाए जिससे वहां मातम मनाया जा सके। इसके साथ ही नवाब ने मेहदी हसन को खिल्लात की पदवी दी व साथ ही बहुत से उपहार व रुपये भी दिये।[3]

१८५६ में अवध के अधिग्रहण उपरान्त, बारादरी का प्रयोग ब्रिटिश द्वारा अपदस्थ नवाब के शासन के लोगों व रिश्तेदारों के निवेदन व शिकायतें सुनने हेतु दरबार के रूप में किया जाने लगा था। १८५७ में इस इमारत का प्रयोग १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिये मन्त्रणाएं एवं बैठक करने के लिये प्रयोग किया जाने लगा व नवाब की बेगम, बेगम हजरत महल ने इसका अधिग्रहण कर लिया था।[3]

कालान्तर में १९२३ के लगभग इसको ब्रिटिश महारानी द्वारा स्वामिभक्ति एवं प्रशंसा के तोषण स्वरूप अवध के तालुकदारों को उनके अञ्जुमन नाम के संघ को दे दिया गया था। इन संघ का नाम बाद में बदलकर ब्रिटिश असोसिएशन ऑव अवध नाम कर दिया गया था। बारादरी उन्हीं के नियन्त्रण में रही।

Remove ads

इमारत

बारादरी का परिसर बागों, फव्वारों, मस्जिदों, महलों, हरम और आंगन से घिरा हुआ था। बारादरी का अर्थ बारह दरवाजे वाला एक खूबसूरत बना मंडप होता है। कैसरबाग बारादरी वर्गाकार मण्डप है जो महल परिसर के मध्य में बना है और इसमें विभिन्न आकारों के कई स्तम्भावली युक्त मंडप शामिल हैं। केंद्र में सफेद बारादरी स्थित है, एक भव्य सफेद रंग की इमारत है जिसे पहले चांदी के साथ प्रशस्त किया गया था।। इस संरचना में दो लक्खी द्वार और पूर्व शाही निवास हैं।[2]

बारादरी के मुख्य हाल में बलरामपुर के दो महाराजा मानसिंह एवं दिग्विजय सिंह की मूर्तियां स्थापित हैं। ये दोनों ही इस संघ के संस्थापक थे। [4][5] सर मान सिंह की मूर्ति को लंदन के फ़ार्मर एवं ब्रिण्डले द्वारा २००० की लागत से बनवाया गया था। इसका अनावरण १३ अगस्त १९०२ को सर जेम्स जौन डिग्ग्स ला टूश, लेफ्टिनेंट गवर्नर संयुक्त प्रान्त आगरा एवं अवध द्वारा किया गया था।[6] बारादरी के बाहर मुख्य प्रवेशद्वार के किनारे दो स्तंभों पर दो पीतल की मूर्तियां दाएं व बाएं प्रकाशदीप लिये खडी हैं। बारादरी कैसरबाग के पूर्वी एवं पश्चिमी द्वारों के बीच बनी है।

इसके निकट ही कई अन्य दर्शनीय इमारतें भी हैं नवाब सआदत अली खां का मकबरा, बेगम हजरत महल पार्क एवं मकबरा, शाह नजफ़ इमामबाडा, आदि।

Remove ads

प्रचलित मीडिया में

इस इमारत के सुन्दर स्थापत्य एवं गौरवमय इतिहास ने बहुत से फ़िल्म निर्माताओ को इस ओर आकर्षित किया है। यहां ढेरों बाॅलीवुड फ़िल्मों का फ़िल्मांकन हुआ है जिनमें से कुछ प्रमुख हैं - उमराव जान, शतरंज के खिलाडी, जुनून एवं गदर। इनके बाद भी यहां तनु वेड्स मनु, इशकजादे एवं बुलटराजा आदि फ़िल्मों की शूटिंग यहां हुई है। आजकल यहां बहुत से कला एवं शिल्प प्रदर्शनियां, कार्यशालाएं और विवाह समारोहों का आयोजन भी होता है जिनसे प्राप्त आय से स्मारक के अनुरक्षण में भी सहयोग मिलता है।[3]

चित्र दीर्घा

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

Loading related searches...

Wikiwand - on

Seamless Wikipedia browsing. On steroids.

Remove ads