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सामान्य आपेक्षिकता

आइंस्टीन द्वारा प्रदत गुरुत्व की ज्यामितिक वैज्ञानिक अवधारणा विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

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सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत या सामान्य सापेक्षता सिद्धांत, जिसे अंग्रेजी में जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी कहते हैं, एक वैज्ञानिक सिद्धांत है जो कहता है कि ब्रह्माण्ड में किसी भी वस्तु की तरफ़ जो गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव देखा जाता है उसका असली कारण है कि हर वस्तु अपने मान और आकार के अनुसार अपने इर्द-गिर्द के दिक्-काल (स्पेस-टाइम) में मरोड़ पैदा कर देती है। बरसों के अध्ययन के बाद जब १९१६ में अल्बर्ट आइंस्टीन ने इस सिद्धांत की घोषणा की तो विज्ञान की दुनिया में तहलका मच गया और ढाई-सौ साल से क़ायम आइज़क न्यूटन द्वारा १६८७ में घोषित ब्रह्माण्ड का नज़रिया हमेशा के लिए उलट दिया गया।[1] भौतिक शास्त्र पर इसका इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि लोग आधुनिक भौतिकी (माडर्न फ़िज़िक्स) को शास्त्रीय भौतिकी (क्लासिकल फ़िज़िक्स) से अलग विषय बताने लगे और अल्बर्ट आइंस्टीन को आधुनिक भौतिकी का पिता माना जाने लगा।

आइंस्टीन का "विशेष सापेक्षता का सिद्धांत" सब से पहले साल 1905 में प्रस्तावित किया गया....

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दिक्-काल (स्पेस-टाइम)

सारांश
परिप्रेक्ष्य
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पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का असली स्रोत दिक्-काल का मुड़ाव है, ठीक एक चादर के बीच में रखे एक भारी गोले की तरह
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आइनस्टाइन क्रॉस एक ऐसे क्वासर का नाम है जिसके आगे एक बड़ी आकाशगंगा एक गुरुत्वाकर्षक लेंस बन कर उसकी चार छवियाँ दिखाती है- ग़ौर से देखने पर पता लगता है कि यह चारों वस्तुएं वास्तव में एक ही हैं

दिक् संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है इर्द-गिर्द की जगह। इसे अंग्रेजी में "स्पेस" कहते हैं। मनुष्य दिक् के तीन पहलुओं (आयामों या डिमॅनशनों) को भाप सकने की क्षमता रखते हैं- ऊपर-नीचे, आगे-पीछे और दाएँ-बाएँ। आम जीवन में मनुष्य दिक् में कोई बदलाव नहीं देखते। न्यूटन की भौतिकी कहती थी कि अगर अंतरिक्ष में दो वस्तुएँ एक-दूसरे से एक किलोमीटर दूर हैं और उन दोनों में से कोई भी न हिले, तो वे एक-दूसरे से एक किलोमीटर दूर ही रहेंगी। हमारा रोज़ का साधारण जीवन भी हमें यही दिखलाता है। लेकिन आइनस्टाइन ने कहा कि ऐसा नहीं है। दिक् खिच और सिकुड़ सकता है। ऐसा भी संभव है कि जो दो वस्तुएँ एक-दूसरे से एक किलोमीटर दूर हैं वे स्वयं न हिलें, लेकिन उनके बीच का दिक् कुछ परिस्थितियों के कारण फैल कर सवा किलोमीटर हो जाए या सिकुड़ के पौना किलोमीटर हो जाए।

न्यूटन की शास्त्रीय भौतिकी में यह कहा जाता था कि ब्रह्माण्ड में हर जगह समय (काल) की रफ़्तार एक ही है। अगर आप एक जगह टिक कर बैठे हैं और आपका कोई मित्र प्रकाश से आधी गति की रफ़्तार पर दस साल का सफ़र तय करे तो, उस सफ़र के बाद, आपके भी दस साल गुज़र चुके होंगे और आपके दोस्त के भी। लेकिन आइनस्टाइन ने इस पर भी कहा कि यह विश्वास ग़लत​ है। जब कोई चीज़ गति से चलती है, उसके लिए समय धीरे हो जाता है और वह जितना तेज़ चलती है, समय उतना ही धीरे हो जाता है। आपका मित्र अगर अपने हिसाब से दस वर्ष तक रोशनी से आधी गति पर यात्रा कर के लौट आए, तो उसके तो दस साल गुज़रेंगे लेकिन आपके साढ़े ग्यारह साल गुज़र चुके होंगे।

आइनस्टाइन ने सापेक्षता सिद्धांत में दिखाया कि वास्तव में दिक् के तीन और काल का एक मिलाकर ब्रह्माण्ड में चार पहलुओं वाला दिक्-काल है जिसमे सारी वस्तुएं और उर्जाएँ स्थित होतीं हैं। यह दिक्-काल स्थाई नहीं है- न दिक् बिना किसी बदलाव के होता है और न यह ज़रूरी है कि समय का बहाव हर वस्तु के लिए एक जैसा हो। दिक्-काल को प्रभावित कर के उसे मरोड़ा, खींचा और सिकोड़ा जा सकता है और ऐसा ही ब्रह्माण्ड में होता है। इस सिद्धान्त के माध्यम से ही समय यात्रा की अवधारणा निर्मित हुई है।

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मनुष्यों को दिक्-काल में बदलाव क्यों नहीं प्रतीत होता

दिक्-काल में बदलाव हर वस्तु और हर रफ़्तार पैदा करती है लेकिन बड़ी वस्तुएं और प्रकाश के समीप की रफ्तारें अधिक बदलाव पैदा करती हैं। मनुष्यों का आकार इतना छोटा और उसकी रफ़्तार इतनी धीमी है कि उन्हें सापेक्षता सिद्धांत के असर अपने जीवन में नज़र ही नहीं आते, लेकिन जब वह ब्रह्माण्ड में और चीज़ों का ग़ौर से अध्ययन करते हैं तो सापेक्षता के चिह्न कई जगहों पर पाते हैं। जब वस्तु का वेग प्रकाश के वेग का ५% भी हो जाए, तो सापेक्षता के सिद्धान्त के चिह्न हमे दिखाई देने लगते है।

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सापेक्षता और गुरुत्वाकर्षण

सारांश
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आइज़क न्यूटन का मानना था कि हर वस्तु में अपनी ओर खींचने की एक शक्ति होती है जिसे उसने गुरुत्वाकर्षण (ग्रेविटी) का नाम दिया। पृथ्वी जैसी बड़ी चीज़ में यह गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है, जिससे हम पृथ्वी से चिपके रहते हैं और अनायास ही उड़ कर अंतरिक्ष में नहीं चले जाते। लेकिन यह न्यूटन नहीं बता पाये कि गुरुत्वाकर्षण बल वास्तव में किस प्रकार कार्य करता है और क्यों कार्य करता है।

आइनस्टाइन ने कहा कि आपेक्षिकता के सिद्धान्त के अनुसार यह विचार कि भौतिक वस्तुएँ एक दूसर को आकर्षित करती हैं, एक भ्रम है, जो प्रकृति संबंधी गलत याँत्रिक धारणाओं के कारण पैदा हुआ है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी बड़ी है और उसकी वजह से उसके इर्द-गिर्द का दिक्-काल मुड़ गया है और अपने ऊपर तह हो गया है। हम इस खिचे-मुड़े दिक्-काल में रहते हैं और इस मुड़न की वजह से पृथ्वी के क़रीब धकेले जाते हैं। इसकी तुलना एक चादर से की जा सकती है जिसके चार कोनो को चार लोगों ने खींच के पकड़ा हो। अब इस चादर के बीच में एक भारी गोला रख दिया जाए, तो चादर बीच से बैठ जाएगी, यानि उसके सूत में बीच में मुड़न पैदा हो जाएगी। अब अगर एक हलकी गेंद हम चादर के कोने पर रखे तो वह लुड़क कर बड़े गोले की तरफ़ जाएगी। आइनस्टाइन ने कहा कि कोई अनाड़ी आदमी यह देख कर कह सकता है कि छोटी गेंद को बड़े गोले ने खींचा इसलिए गेंद उसके पास गई। लेकिन असली वजह थी कि गेंद ज़मीन की तरफ़ जाना चाहती थी और गोले ने चादर में कुछ ऐसी मुड़न पैदा की कि गेंद उसके पास चली गई। इसी तरह से उन्होंने कहा कि यह एक मिथ्या है कि गुरुत्वाकर्षण किसी आकर्षण की वजह से होता है। गुरुत्वाकर्षण की असली वजह है कि हर वस्तु जो अंतरिक्ष में चल रही होती है, वह दिक् के ऐसी मुड़न के प्रभाव में आकर किसी बड़ी चीज़ की ओर चलने लगती है।

वस्तुत: गुरुत्वाकर्षण जड़ता का एक भाग मात्र है, तारे और ग्रहों की गतिविधियाँ, उनके स्वभावगत जड़त्व (इनर्शिया) से उत्पन्न होतीं हैं और उनका मार्ग दिक्-काल-सतति (स्पेस-टाइम-कॉन्टिनुअम) के वृत्तीय तत्वों पर निर्भर करता है। जिस प्रकार चुम्बक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र होता है उसी प्रकार खगोलीय वस्तु अपने चारों ओर के आकाश में एक क्षेत्र बिखेरती है। जिस तरह चुंबकीय क्षेत्र में एक लोहे के टुकड़े की गतिविधि क्षेत्र की बनावट से निर्देशित होती है उसी तरह गुरुत्वीय क्षेत्र में किसी वस्तु का मार्ग उस क्षेत्र की ज्यामितिक अवस्था से निर्धारित होता है।

आइंस्टाइन का गुरुत्वाकर्षण संबंधी नियम दिक्काल सतति के क्षेत्रीय तत्वों की जानकारी देता है। मुख्यत: इस नियम का एक भाग गुरुत्वाकर्षणजन्य वस्तु के चारों ओर के क्षेत्र के ढांचे से संबंध व्यक्त करता है।

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गुरुत्वाकर्षण और प्रकाश

सारांश
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एक गैलेक्सी के आगे एक बड़ा ब्लैक होल (काला छिद्र) है - जैसे-जैसे गैलेक्सी उसके पीछे से निकलती है, उसका प्रकाश ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षक लेंस के प्रभाव से मुड़ता है

आइनस्टाइन के इस सनसनी फैला देने वाले सिद्धांत का एक बहुत बड़ा प्रमाण रोशनी पर गुरुत्वाकर्षण का असर देखने से आया। न्यूटन की भौतिकी में सिद्धांत था कि दो वस्तुएं एक-दूसरे को दोनों के द्रव्यमान (अंग्रेजी में "मास") के अनुसार खींचती हैं। लेकिन प्रकाश का तो द्रव्यमान होता ही नहीं, यानि शून्य होता है। तो न्यूटन के मुताबिक़ जिस चीज़ का कोई द्रव्यमान या वज़न ही नहीं उसका किसी दूसरी वस्तु के गुरुत्वाकर्षण से खिचने का सवाल ही नहीं बनता चाहे दूसरी वस्तु कितनी भी बड़ी क्यों न हो। प्रकाश हमेशा एक सीधी लकीर में चलता ही रहता है। लेकिन अगर आइनस्टाइन सही है और किसी बड़ी वस्तु (जैसे कि ग्रह या तारा) की वजह से दिक् ही मुड़ जाए, तो रोशनी भी दिक् के मुड़ने के साथ मुड़ जानी चाहिए। यानि ब्रह्माण्ड में स्थित बड़ी वस्तुओं को लेंस का काम करना चाहिए- जिस तरह चश्मे, दूरबीन या सूक्ष्मबीन का लेंस प्रकाश मोड़ता है उसी तरह तारों और ग्रहों को भी मोड़ना चाहिए।

१९२४ में एक ओरॅस्त ख़्वोलसन नाम के रूसी भौतिकविज्ञानी ने आइनस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत को समझकर भविष्यवाणी की कि ऐसे गुरुत्वाकर्षक लेंस ब्रह्माण्ड में ज़रूर होंगे। पचपन साल बाद, १९७९ में पहली दफ़ा यह चीज़ देखी गई जब ट्विन क्वासर नाम की वस्तु की एक के बजाए दो-दो छवियाँ देखी गई। उसके बाद काफ़ी दूर-दराज़ वस्तुओं की ऐसी छवियाँ देखी जा चुकी हैं जिनमें उन वस्तुओं और पृथ्वी के बीच कोई बहुत बड़ी अन्य वस्तु रखी हो जो पहली वस्तु से आ रही प्रकाश की किरणों पर लेंसों का काम करे और उसकी छवि को या तो मरोड़ दे या आसमान में उसकी एक से ज़्यादा छवि दिखाए।

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सन्दर्भ

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