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सिद्धार्थनगर जिला
उत्तर प्रदेश का जिला विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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सिद्धार्थनगर ज़िला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक जिला है।[1][2]
यहां महात्मा बुद्ध के नाम से एक राजकीय विश्वविद्यालय यथा- "सिद्धार्थ विश्वविद्यालय" स्थित है।
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विवरण
जिले का मुख्यालय, सिद्धार्थनगर, नौगढ़ तहसील के अन्तर्गत आता है। यह जनपद ऐतिहासिक शाक्य जनपद के खण्डहरों के लिए प्रसिद्ध है, जो नौगढ़ से 18 कि॰मी॰ दूर पिपरहवा में है। सिद्धार्थनगर हिन्दू धर्मं की स्मृतियों का संग्रह है, जिनमें पल्टादेवी मंदिर शामिल है। यह शोहरतगढ़ तहसील के ग्राम पंचायत पल्टादेवी में अतिप्राचीन मंदिर है। सिद्धार्थनगर जिला बौद्ध धर्म का भी बहुत बड़ा पर्यटन स्थल है। यहां पर भगवान बुद्ध का राजमहल स्थित है। कहा जाता है कि जब भगवान बुद्ध की माता गर्भावस्था में थी तो वो सिद्धार्थनगर से अपने मायके नेपाल में जा रही थी तो वहीं रास्ते में लुम्बनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। इस जिले में ही सिद्धार्थ विश्वविद्यालय है। इस जिले की सीमा महाराजगंज, गोरखपुर, संतकबीरनगर, बस्ती, गोण्डा व बलरामपुर जिले से तथा नेपाल देश से मिलती हैं। इस जिले की प्रमुख नदियां राप्ती, बूढ़ी राप्ती, बाणगंगा आदि नदियां हैं। इस जिले में चार बड़े रेलवे स्टेशन सिद्धार्थनगर,बढ़नी,शोहरतगढ व उसका है। इस जिले में 5 तहसील, 14 व्लाक व 6 नगर हैं। यहां की मुख्य भाषा हिन्दी, अवधी, उर्दू व भोजपुरी है। मुख्य व्यवसाय कृषि है।उपजाऊ मिट्टी के पाये जाने के कारण यहां पर धान ( प्रसिद्ध कालानमक), गेहूं व गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
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इतिहास
सारांश
परिप्रेक्ष्य
जिले का इतिहास बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ा हुआ है। इस जनपद का नामकरण गौतम बुद्ध के बाल्यावस्था के नाम राजकुमार ”सिद्धार्थ“ के नाम पर हुआ है। अतीत काल में वनों से आच्छादित हिमालय की तलहटी का यह क्षेत्र साकेत अथवा कौशल राज्य का हिस्सा था। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में शाक्यों ने अपनी राजधानी कपिलवस्तु में बनायी और यहां एक शक्तिशाली गणराज्य की स्थापना की। काल के थपेडों से यह क्षेत्र फिर उजाड़ हो गया। यह पूरा भू-भाग पूर्व में जनपद गोरखपुर में समाहित था। सन् 1801 में जनपद गोरखपुर परिक्षेत्र को अवध के नबाव से ईस्ट इंडिया कम्पनी को स्थान्तरित होने के समय इसकी उत्तरी सीमा नेपाल में बुटवल तक, पूर्वी सीमा बिहार राज्य से एवं दक्षिणी सीमा जौनपुर, गाजीपुर व फैजाबाद ज़िलों तथा पश्चिमी सीमा गोण्डा व बहराइच ज़िलों से मिलती थी। सन् 1816 में युद्ध के उपरान्त एक समझौते के अन्तर्गत विनायकपुर व तिलपुर परगनों को नेपाल को सौंपा गया। अंग्रेजी शासन में अंग्रेज जमीदारों ने यहां पर पैर जमाया। सन् 1865 में मगहर परगने के अधिकांश भाग व परगना विनायकपुर के कुछ भाग को जनपद गोरखपुर से पृथक कर जनपद बस्ती का सृजन हुआ। जिससे यह क्षेत्र बस्ती जिले में आ गया। पिपरहवा स्तूप की खुदाई 1897-98 ई॰ में डब्ल्यू॰ सी॰ पेपे ने की थी। सन् 1898 ई0 में ही इसे जर्नल ऑफ रायल एशियटिक सोसायटी में प्रकाशित किया गया। तत्पश्चत 1973-74 में इस स्थल की खुदाई प्रो0 के0एम0 श्रीवास्तव के निर्देशन में हुई तथा खुदाई में प्राप्त अवशेषों से पिपरहवा को कपिलवस्तु होने पर मुहर लगायी गयी। गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं इसी क्षेत्र में घटित हुई। कपिलवस्तु में शाक्यों का राज प्रसाद और बुद्ध के काल में निर्मित बौद्ध बिहारों का खण्डहर तथा शाक्य मुनि के अस्थि अवशेष पाये गये है। कपिलवस्तु की खोज के बाद उत्तर प्रदेश सरकार, राजस्व अनुभाग-5 के अधिसूचना संख्या-5-4 (4)/76-135- रा0-5(ब) दिनांक 23 दिसम्बर, 1988 के आधार पर दिनांक 29 दिसम्बर 1988 को जनपद-बस्ती के उत्तरी भाग को पृथक कर सिद्धार्थनगर जिले का सृजन किया गया।
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दर्शनीय स्थल
भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय जिलों में से एक है जो तीर्थयात्रियों, पार्कों, मनोरंजन केंद्रों, शॉपिंग सेंटर, पिकनिक स्पॉट्स, घाट आदि जैसे सुविधाओं के लिए जाना जाता है। कई पर्यटक और विभिन्न धर्मों के अनुयायी हर साल सिद्धार्थनगर आते हैं। कई निजी एजेंसियों के साथ राज्य सरकार और केंद्र सरकार सिद्धार्थनगर आने वाले पर्यटकों का अभिनन्दन एवं स्वागत करता है । सिद्धार्थनगर में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अच्छी परिवहन सुविधा की आवश्यकता है।
पर्यटन स्थल
सारांश
परिप्रेक्ष्य
पिपरहवा स्तूप
पिपरहवा उत्तर प्रदेश राज्य के सिद्धार्थनगर जिले में बर्डपुर क़स्बा के पास एक गांव है। इस क्षेत्र में सुगंधित कालानमक चावल का उत्पाद होता है । पिपरहवा अपने पुरातात्विक स्थल एवं खुदाई के लिए जाना जाता है।
एक विशाल स्तूप और कई मठों के खंडहर का अवशेष अवस्थित है। कुछ विद्वानों का मत है कि पिपरहवा गंवरिया शाक्य साम्राज्य की राजधानी कपिलवस्तु के प्राचीन शहर की जगह है जहां भगवान बुद्ध ने अपने जीवन काल के पहले 29 साल व्यतीत किये थे।
भारतभारी मंदिर
भारत भारी मंदिर उत्तर प्रदेश राज्य के सिद्धार्थनगर जनपद के डुमरियागंज ब्लॉक में स्थित है। यह जिला मुख्यालय सिद्धार्थनगर से पश्चिम की ओर 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह डुमरियागंज से 05 किमी दूर और राज्य की राजधानी लखनऊ से 210 किमी की दूरी पर स्थित है। माधली (2 किमी), समदा (2 किमी), महुरा (4 किमी), औसान कुइयान (4 किमी), अजगरा (5 किमी), भग्गोभार (9 किमी) भारत भारी मंदिर के पास के गांव हैं। भारत भारी दक्षिण में रामनगर ब्लॉक उत्तर की ओर खुनियांव ब्लॉक, पूर्व की तरफ मिठवल ब्लॉक तथा दक्षिण की ओर रुधौली ब्लॉक है । यह स्थान सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले की सीमा पर स्थित है।
दी रॉयल रिट्रीट होटल:
दी रॉयल रिट्रीट होटल एक शाही बंगला है जो घने पेड़ों और हरी घास के मनमोहक दृश्य से घिरा हुआ है।
यह होटल मोहाना चौराहा के पास शिवपति नगर ग्राम में पर्यटकों के किये रुकने का एक अच्छा स्थल है जो प्रमुख बौद्ध स्थलों के नजदीक है।
यह होटल साल भर पर्यटकों से गुलज़ार रहता है।
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, सिद्धार्थनगर 17 जून 2015 को कपिलवस्तु, सिद्धार्थनगर में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित एक राज्य विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय ने 2015-16 में सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, संत कबीर नगर, बस्ती, श्रावस्ती और बलरामपुर के कॉलेजों में अपना पहला सत्र शुरू किया। ये कॉलेज पहले दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय और डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद से संबद्ध थे। प्रत्येक वर्ष यह विश्वविद्यालय मार्च के महीने में वार्षिक परीक्षा आयोजित करता है। वर्तमान में विश्वविद्यालय में बीकॉम विषय की पढाई शुरू की गयी है।
योगमाया मंदिर
जनपद सिद्धार्थनगर के जोगिया गांव में योगमाया मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है और यह माना जाता है कि देवी योगमाया माता का विशेष रूप से सोमवार और शुक्रवार को दर्शन करने से भक्तों की इच्छायें पूरी होती है | यहाँ पर बच्चों का मुंडन संस्कार भी होता है । मंदिर के पास स्थित नदी में डुबकी लगाने से सारें कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है।
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तहसीलें
- सिध्दार्थनगर(नौगढ़)
- शोहरतगढ़
- बांसी
- इटवा
- डुमरियागंज
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
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