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हल्दी

(टर्मरिक) भारतीय खाद्य वनस्पति विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

हल्दी
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हल्दी (टर्मरिक) भारतीय वनस्पति है। यह अदरक की प्रजाति का ५-६ फुट तक बढ़ने वाला पौधा है जिसमें जड़ की गाठों में हल्दी मिलती है। हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा लौंगा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम, टर्मरिक नाम दिए गए हैं।

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हल्दी का पौधा : इसके पत्ते बड़े-बड़े होते हैं।

आयुर्वेद में हल्‍दी को एक महत्‍वपूर्ण औषधि‍ कहा गया है। भारतीय रसोई में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और धार्मिक रूप से इसको बहुत शुभ समझा जाता है। विवाह के एक दिन पूर्व वर और वधू दोनों के शरीर पर हल्दी का लेप करने की प्रथा है।

  • लैटि‍न नाम : करकुमा लौंगा (Curcuma longa)
  • अंग्रेजी नाम : टरमरि‍क (Turmeric)
  • पारि‍वारि‍क नाम : जि‍न्‍जि‍बरऐसे

हालांकि लंबे समय से आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है, जहां इसे हरिद्रा[1] के रूप में भी जाना जाता है, अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अनुसार[2][3], किसी भी बीमारी के इलाज के लिए हल्दी या उसके घटक, करक्यूमिन का उपयोग करने के लिए कोई उच्च गुणवत्ता वाला नैदानिक ​​प्रमाण नहीं है। हल्दी एक ऐन्टीसेप्टिक के रूप मे कार्य करती है।

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हल्दी का पौधा

हल्दी का पौधा महत्वपूर्ण और उपयोग पौधा है जो अदरक परिवार (ज़िंगिबेरासी) से संबंधित है। यह एक बारहमासी जड़ी बूटी है जो 60-90 सेमी ऊंचाई तक बढ़ जाती है। पत्तियाँ बहुत बड़ी होती हैं, गुच्छे में 1. 2 मीटर या उससे अधिक लंबी होती हैं, जिसमें पेटीओल भी शामिल है जो ब्लेड जितना लंबा, आयताकार भालाकार, और आधार से पतला होता है। हल्दी के फूल सफ़ेद,पीले होते हैं, जिनकी लंबाई 10- 15 सेंटीमीटर के बीच होती है और वे घने स्पाइक्स में एक साथ समूहित होते हैं, जो वसंत के अंत से मध्य सत्र तक दिखाई देते हैं। हल्दी के पौधे की विशेषता है यह कि इसके पौधे पर फल नहीं लगते।  इनकी जड़ें पीले-भूरे रंग की होती हैं, जिनका आंतरिक भाग नीरस नारंगी होता है जो सूखने के बाद चूर्ण करने पर चमकीले पीले रंग का दिखता है।  ये 2.5-7.0सेमी, और छोटे कंद शाखाओं के साथ 2.5सेमी व्यास के होते हैं।

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परिचय

हल्दी में उड़नशील तेल 5.8%, प्रोटीन 6.3%, द्रव्य 5.1%, खनिज द्रव्य 3.5%, और करबोहाईड्रेट 68.4% के अतिरिक्त कुर्कुमिन नामक पीत रंजक द्रव्य, विटमिन A पाए जाते हैं। हल्दी पाचन तन्त्र की समस्याओं, गठिया, रक्त-प्रवाह की समस्याओं, कैंसर, जीवाणुओं (बेक्टीरिया) के संक्रमण, उच्च रक्तचाप और एलडीएल कोलेस्ट्रॉल की समस्या और शरीर की कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत में लाभकारी है। हल्दी कफ़-वात शामक, पित्त रेचक व पित्त शामक है। रक्त स्तम्भन, मूत्र रोग, गर्भश्य, प्रमेह, त्वचा रोग, वात-पित्त-कफ़ में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी है। यकृत की वृद्धि में इसका लेप किया जाता है। नाड़ी शूल के अतिरिक्त पाचन क्रिया के रोगों अरुचि (भूख न लगना) विबंध, कमला, जलोधर व कृमि में भी यह लाभकारी पाई गई है। इसी प्रकार हल्दी की एक किस्म काली हल्दी के रूप में भी होती है। उपचार में काली हल्दी पीली हल्दी के मुक़ाबले अधिक लाभकारी होती है।

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हल्दी की गांठ
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हल्दी चूर्ण
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हल्दी के औषधीय गुण

हल्दी को आयुर्वेदिक पदार्थ माना जाता है।[उद्धरण चाहिए] ऐसा मानने के पीछे इसमें मौजूद औषधीय गुण है। इसके औषधीय गुण कई बीमारियों से बचाएं रखने और उनसे राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा हल्दी को लेकर किए गए रिसर्च के मुताबिक, इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, केलोरेटिक, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीसेप्टिक, एंटी कैंसर, एंटीट्यूमर, हेपटोप्रोटेक्टिव (लिवर को सुरक्षित रखने वाला गुण), कार्डियोप्रोटेक्टिव (हृदय को सुरक्षित रखने वाला गुण) और नेफ्रोप्रोटेक्टिव (किडनी को नुकसान से बचाने वाला गुण) गुण होते हैं।

उपयोग

रसोई की शान होने के साथ-साथ हल्दी कई चामत्कारिक औषधीय गुणों से भरपूर है। आयुर्वेद में तो हल्‍दी को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि हल्दी गुमचोट के इलाज में तो सहायक है ही साथ ही कफ-खांसी सहित अनेक बीमारियों के इलाज़ में काम आती है। इसके अलावा हल्दी सौन्दर्यवर्धक भी मानी जाती है और प्रचीनकाल से ही इसका उपयोग रूप को निखारने के लिए किया जाता रहा है। वर्तमान समय में हल्दी का प्रयोग उबटन से लेकर विभिन्न तरह की क्रीमों में भी किया जा है।

हल्दी और करक्यूमिन (इसके घटकों में से एक) का विभिन्न मानव रोगों और स्थितियों के लिए कई नैदानिक ​​परीक्षणों में अध्ययन किया गया है; बड़े पैमाने पर या दोषपूर्ण तरीके से कमी, किसी ने भी उच्च गुणवत्ता के प्रमाण नहीं दिए हैं।[2][4][5] मनुष्यों पर नैदानिक ​​परीक्षणों से कोई उच्च गुणवत्ता का सबूत नहीं है कि कर्कुमिन (2020 तक) सूजन को कम करता है।[2][3]

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हल्दी का साग

कच्ची हल्दी की सब्जी राजस्थान की परम्परागत सब्जी है जो शादी या अन्य मांगलिक अवसरों पर बनाई जाती है। कच्ची हल्दी की सब्जी सर्दियों के मौसम में बनाई जाती है (कच्ची हल्दी आती ही सर्दियों के मौसम में है)। कच्ची हल्दी पीले रंग की अदरक की तरह गांठे होती हैं।

कच्ची हल्दी को देशी घी में तलकर सब्जी बनाते हैं ताकि उसका कड़वा स्वाद खाने में न आये। हल्दी की सब्जी बनाने में घी भी बहुत लगता है। हल्दी की सब्जी सिर्फ कच्ची हल्दी से बनाई जाती है। दूसरे तरीका में हल्दी के साथ सब्जी में मटर, गोभी दोनों, या केवल मटर भी तल कर डाले जा सकते हैं।

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सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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