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जैन धर्म(दिगम्बर) अनुयायियों द्वारा आदर्श अवस्था में अपनाये जाने वाले गुणों विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
जैन धर्म के दिगम्बर अनुयायियों द्वारा आदर्श अवस्था में अपनाये जाने वाले गुणों को दशलक्षण धर्म कहा जाता है। इसके अनुसार जीवन में सुख-शांति के लिए उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य दशलक्षण धर्मों का पालन हर मनुष्य को करना चाहिए
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दिगंबर समाज के दसलक्षण महापर्व का जैन ग्रन्थ, तत्त्वार्थ सूत्र में १० धर्मों का वर्णन है। यह १० धर्म है:
दसलक्षण पर्व पर इन दस धर्मों को धारण किया जाता है।
भाद्रमाह के सुद पंचमी से दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व शुरू होते है यह पहला दिन होता है ईस दिन ऋषि पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है॥
भाद्रमाह के सुद छठ को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का दूसरा दिन होता है
यह सब चीजें नाशवंत है यह सब चीजें एक दिन आप को छोड देंगी या फिर आपको एक दिन जबरन ईन चीजों को छोडना ही पडेगा ॥ नाशवंत चीजों के पिछे भागने से बेहतर है कि अभिमान और परिग्रह सब बूरे कमॅ में बढोतरी करते है जिनको छोडा जाये और सब से विनम्र भाव से पेश आए सब जिवो के प्रति मैत्री भाव रखे क्योंकि सभी जिवो को जिवन जिने का अधिकार है ॥
सभी को एक न एक दिन जाना हि है तो फिर यह सब परिग्रहो का त्याग करे और बेहतर है कि खूद को पहचानो और परिग्रहो का नाश करने के लिए खूदको तप, त्याग के साथ साधना रुपी भठठी में झोंक दो क्योंकि इनसे बचनेका और परमशांति मोक्ष को पाने का साधना ही एकमात्र विकल्प है ॥
भाद्रमाह के सुद सप्तमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का तिसरा दिन होता है
आत्मा ज्ञान, खुशी, प्रयास, विश्वास जैसे असंख्य गूणो से सिंचित है उस में ईतनी ताकत है कि केवल ज्ञान को प्राप्त कर सके॥ उत्तम आजॅव धर्म हमें सिखाता है कि मोह-माया, बूरे कमॅ सब छोड छाड कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ॥
भाद्रमाह के सुद अष्टमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का चौथा दिन होता है
उत्तम शौच धमॅ हमे यही सिखाता है कि शुद्ध मन से जितना मिला है उसी में खूश रहो परमात्मा का हमेशा शुक्रिया मानों और अपनी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥
भाद्रमाह के सुद नवमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का पाँचवाँ दिन होता है
उत्तम सत्य धमॅ हमे यही सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है और इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥ अपने मन आत्मा को सरल और शुद्ध बना लें तो सत्य अपने आप ही आ जाएगा ॥
भाद्रमाह के सुद दशमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का छठा दिन होता है ईस दिन को धूप दशमी के रूप में मनाया जाता है लोग ईस दिन बैंड बाजो के साथ घर से धूप लेकर जाते है और मंदिर में भगवान के दर्शन के साथ धूप चढा कर खूशबू फैलाते है और कामना करते हैं कि ईस धूप की तरह ही हमारा जीवन भी हमेशा महकता रहें॥
पसंद नापसंद ग़ुस्से का त्याग करना। इन सब से छुटकारा तब ही मुमकिन है जब अपनी आत्मा को इन सब प्रलोभनों से मुक्त करे और स्थिर मन के साथ संयम रखें ॥ ईसी राह पर चलते परम आनंद मोक्ष की प्राप्ति मुमकिन है ॥
भाद्रमाह के सुद ग्यारस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का सातवाँ दिन होता है
हमारे तीर्थंकरों जैसी तप साधना करना इस जमाने में शायद मुमकिन नहीं है पर हम भी ऐसी ही भावना रखते है और पर्यूषण पवॅ के 10 दिनों के दौरान उपवास (बिना खाए बिना पिए), ऐकाशन (एकबार खाना-पानी) करतें है और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करने की राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं ॥
भाद्रमाह के सुद बारस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का आठवाँ दिन होता है
छोडने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है क्योंकि जैन संत सिफॅ घरबार नहीं यहां तक कि अपने कपडे भी त्याग देता है और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतित करता है ॥ ईनसान की शक्ति इससे नहीं परखी जाती की उसके पास कितनी धन दौलत है बल्कि इससे परखी जाती है कि उसने कितना छोडा कितना त्याग किया है !
भाद्रमाह के सुद तेरस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का नौवाँ दिन होता है
सब मोह पप्रलोभनों और परिग्रहो को छोडकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥
भाद्रमाह के सुद चौदस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का दसवाँ दिन होता है इस दिन को अनंत चतुर्दशी कहते है ईस दिन को लोग परमात्मा के समक्ष अखंड दिया लगाते है
जैसे जमीन पर सोना न कि गद्दे तकियों पर, जरुरत से ज्यादा किसी वस्तु का उपयोग न करना, व्यय, मोह, वासना ना रखते सादगी से जीवन व्यतित करना ॥ कोई भी संत ईसका पालन करते है और विशेषकर जैनसंत शरीर, जुबान और दिमाग से सबसे ज्यादा इसका ही पालन करते हैं ॥
ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओ के गुलाम हि हैं ॥
अनंत चतुर्दशी के दिन शाम को मंदिर में सभी लोग भक्त जन एक साथ प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल मे किये गए पाप और कटू वचन से किसी के दिल को जानते और अनजाने ठेस पहुंची हो तो क्षमा याचना करते है ॥ एक दूसरे को क्षमा करते है और एक दूसरे से क्षमा माँगते है और हाथ जोड कर गले मिलकर मिच्छामी दूक्कडम करते है॥ जो लोग उपस्थित नहीं थे उन्हें दूसरे दिन क्षमा याचना करते है॥
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