चंदेरी का युद्ध
मुगल राजपूत युद्ध / From Wikipedia, the free encyclopedia
चंदेरी का युद्ध 29 जनवरी 1528 ई. में मुग़लों तथा राजपूतों के मध्य लड़ा गया था।
[ खानवा का युद्ध | खानवा युद्ध ] के पश्चात् राजपूतों की शक्ति पूरी तरह नष्ट नहीं हुई थी, इसलिए बाबर ने चंदेरी का युद्ध शेष राजपूतों के खिलाफ लड़ा। इस युद्ध में राजपूतों की सेना का नेतृत्त्व ‘मेदिनी राय खंगार’ ने किया। युद्ध इतना भीषण था कि किले के भीतर और बाहर के नरसंहार के कारण चारों तरह रक्त ही रक्त व्याप्त हो गया था। किले के बाहरी परकोटे पर मौजूद एक दरवाजे पर तो इस कदर नरसंहार हुआ कि आज उसे ‘खूनी दरवाजा’ के नाम से संबोधित किया जाता है।
चंदेरी के इस युद्ध में राजा ’मेदिनी राय खंगार’ की पराजय हुई। राजा मेदिनी राय की मृत्यु की ख़बर जब रानी ‘मणिमाला’ तक पहुंची, तो उन्होंने 1600 से अधिक वीरांगनाओं के साथ मिलकर जौहर कुण्ड की अग्नि में अपने प्राणों की आहूति दे दी। कहा जाता है कि, बाबर को जब इस बात का पता चला कि रानी मणिमाला और 1600 से अधिक वीरांगनाओं ने जौहर किया है तो वह अपनी चौथी नंबर की बेगम ‘दिलाबर’ को लेकर जौहर कुण्ड की तरह चल दिया। जौहर कुण्ड में जब उसने उन वीरांगनाओं के स्वाभिमान की रक्षा करती उस धधकती ज्वाला को देखा तो वह घबरा गया, बेगम दिलाबर यह मंजर देखकर बेहोश हो गई।
स्थानीय लोगों की मानें तो, चंदेरी जौहर की धधकती ज्वाला और धुएं का गुबार उस समय 15 कोस दूर तक दिखाई दिया था।
आपको बता दें कि, रानी मणिमाला के जौहर की याद में ग्वालियर घराने ने ग्वालियर में ही एक स्मारक का निर्माण भी करवाया है, जो ‘मणिमाला स्मारक’ के नाम से प्रसिद्ध है।