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तेनजिन ग्यात्सो, चौदहवें दलाई लामा, (६ जुलाई, 1935 - वर्तमान) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। उनका जन्म ६ जुलाई १९३५ को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले ये ओमान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13 वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन भी कहा जाता है।
परमपावन ने अपनी मठवासीय शिक्षा छह वर्ष की अवस्था में प्रारंभ की। २३ वर्ष की अवस्था में वर्ष १९५९ के वार्षिक मोनलम ;प्रार्थनाद्ध उत्सव के दौरान उन्होंने जोखांग मंदिर, ल्हासा में अपनी फाइनल परीक्षा दी। उन्होंने यह परीक्षा ऑनर्स के साथ पास की और उन्हें सर्वोच्च गेशे डिग्री ल्हारम्पा ; बौध दर्शन में पी. एच. डी. प्रदान की गई।
वर्ष १९४९ में तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा से कहा गया कि वह पूर्ण राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में ले लें। १९५४ में वह माओ जेडांग, डेंग जियोपिंग जैसे कई चीनी नेताओं से बातचीत करने के लिए बीजिंग भी गए। लेकिन आखिरकार वर्ष १९५९ में ल्हासा में चीनी सेनाओं द्वारा तिब्बती राष्ट्रीय आंदोलन को बेरहमी से कुचले जाने के बाद वह निर्वासन में जाने को मजबूर हो गए। इसके बाद से ही वह उत्तर भारत के शहर धर्मशाला में रह रहे हैं जो केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का मुख्यालय है। तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा ने संयुक्त राष्ट्र से तिब्बत मुद्दे को सुलझाने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस संबंध में १९५९, १९६१ और १९६५ में तीन प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं।
१९६३ में परमपावन दलाई लामा ने तिब्बत के लिए एक लोकतांत्रिक संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया। इसके बाद परमपावन ने इसमें कई सुधार किए। हालांकि, मई १९९० में तक ही दलाई लामा द्वारा किए गए मूलभूत सुधारों को एक वास्तविक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में वास्तविक स्वरूप प्रदान किया जा सका। इस वर्ष अब तक परमपावन द्वारा नियुक्त होने वाले तिब्बती मंत्रिमंडल; काशग और दसवीं संसद को भंग कर दिया गया और नए चुनाव करवाए गए। निर्वासित ग्यारहवीं तिब्बती संसद के सदस्यों का चुनाव भारत व दुनिया के ३३ देशों में रहने वाले तिब्बतियों के एक व्यक्ति एक मत के आधार पर हुआ। धर्मशाला में केंद्रीय निर्वासित तिब्बती संसद में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष सहित कुल ४६ सदस्य हैं।
१९९२ में परमपावन दलाई लामा ने यह घोषणा की कि जब तिब्बत स्वतंत्र हो जाएगा तो उसके बाद सबसे पहला लक्ष्य होगा कि एक अंतरिम सरकार की स्थापना करना जिसकी पहली प्राथमिकता यह होगी तिब्बत के लोकतांत्रिसंविधान के प्रारूप तैयार करने और उसे स्वीकार करने के लिए एक संविधान सभा का चुनाव करना। इसके बाद तिब्बती लोग अपनी सरकार का चुनाव करेंगे और परमपावन दलाई लामा अपनी सभी राजनीतिक शक्तियां नवनिर्वाचित अंतरिम राष्ट्रपति को सौंप देंगे। वर्ष २००१ में परमपावन दलाई लामा के परामर्श पर तिब्बती संसद ने निर्वासित तिब्बती संविधान में संशोधन किया और तिब्बत के कार्यकारी प्रमुख के प्रत्यक्ष निर्वाचन का प्रावधान किया। निर्वाचित कार्यकारी प्रमुख अपने कैबिनेट के सहयोगियों का नामांकन करता है और उनकी नियुक्ति के लिए संसद से स्वीकृति लेता है। पहले प्रत्यक्ष निर्वाचित कार्यकारी प्रमुख ने सितम्बर २००१ में कार्यभार ग्रहण किया।
१९८७ में परमपावन ने तिब्बत की खराब होती स्थिति का शांतिपूर्ण हल तलाशने की दिशा में पहला कदम उठाते हुए पांच सूत्रीय शांति योजना प्रस्तुत की। उन्होंने यह विचार रखा कि तिब्बत को एक अभयारण्य-एशिया के हृदय स्थल में स्थित एक शांति क्षेत्र में बदला जा सकता है जहां सभी सचेतन प्राणी शांति से रह सकें और जहां पर्यावरण की रक्षा की जाए। लेकिन चीन परमपावन दलाई लामा द्वारा रखे गए विभिन्न शांति प्रस्तावों पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया देने में नाकाम रहा।
पांच सूत्रीय शांति योजना -- २१ सितंबर, १९८७ को अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए परमपावन दलाई लामा ने पांच बिन्दुओं वाली निम्न शांति योजना रखीः
हर तिब्बती परमपावन दलाई लामा के साथ गहरा व अकथनीय जुड़ाव रखता है। तिब्बतियों के लिए परमपावन समूचे तिब्बत के प्रतीक हैं: भूमि के सौंदर्य, उसकी नदियों व झीलों की पवित्रता, उसके आकाश की पुनीतता, उसके पर्वतों की दृढ़ता और उसके लोगों की ताकत का। तिब्बत की मुक्ति के लिए अहिंसक संघर्ष जारी रखने हेतु परमपावन दलाई लामा को वर्ष 1989 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने लगातार अहिंसा की नीति का समर्थन करना जारी रखा है, यहां तक कि अत्यधिक दमन की परिस्थिति में भी। शांति, अहिंसा और हर सचेतन प्राणी की खुशी के लिए काम करना परमपावन दलाई लामा के जीवन का बुनियादी सिधांत है। वह वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं पर भी चिंता प्रकट करते रहते हैं। परमपावन दलाई लामा ने ५२ से अधिक देशों का दौरा किया है और कई प्रमुख देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और शासकों से मिले हैं। उन्होंने कई धर्म के प्रमुखों और कई प्रमुख वैज्ञानिकों से मुलाकात की है।
परमपावन के शांति संदेश, अहिंसा, अंतर धार्मिक मेलमिलाप, सार्वभौमिक उत्तरदायित्व और करूणा के विचारों को मान्यता के रूप में १९५९ से अब तक उनको ६० मानद डॉक्टरेट, पुरस्कार, सम्मान आदि प्राप्त हुए हैं। परमपावन ने ५० से अधिक पुस्तकें लिखीं हैं। परमपावन अपने को एक साधारण बौध भिक्षु ही मानते हैं। दुनियाभर में अपनी यात्राओं और व्याख्यान के दौरान उनका साधारण व करूणामय स्वभाव उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति को गहराई तक प्रभावित करता है। उनका संदेश है प्यार, करूणा और क्षमाशीलता।
दलाई लामा के संदेश निम्नलिखित हैं :---
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