पराशर
पाराशर मुनि का मंदिर फतेहपुर नौबस्ता घाट में है / From Wikipedia, the free encyclopedia
पाराशर ब्राह्मणों में विश्व के सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ गोत्र है जो की सनाद्य ब्राह्मणों का गोत्र है। इस गोत्र के लोग ज्योतिषीय गणनाएं न भी करें तो भविष्य देखने के प्रति और परा भौतिक दुनिया के प्रति अधिक झुकाव रखने वाले लोग होते हैं। भारद्वाज और कश्यप गोत्र की तुलना में ये लोग समस्याओं के समाधान एक साथ और स्थाई ढूंढने की कोशिश करते हैं और अधिकतर सांसारिक समस्याओं से पलायन करते हैं। ऐसे में परा से इन लोगों का अधिक संपर्क होता है। इसी कारण ओमेन में भी इन लोगों को अच्छा हाथ होता है।
- अन्य उपयोगों के लिए पराशर (बहुविकल्पी) देखें।
पराशरी शब्द भी इसी गोत्र से संभंधित है! पाराशर गोत्र का नाम महारिशी पराशर से आया है जो की महाऋषि वशिष्ठ के पौत्र हैं। ऋषि पाराशर ज्योतिष विद्या के पिता माने जाते हैं जिन्होंने पूरे विश्व के समस्त ज्योतिष ग्रंथ लिखे हैं और उनके अनंत ज्ञान के चलते समस्त संसार उनको विश्व के सबसे विद्वान ऋषियों में मानते हैं। कहा जाता है इनके बचपन में ही उनके पिता की हत्या एक राक्षस द्वारा किए जाने के चलते वे अपने दादाजी महारिषि वशिष्ठ से ही ज्ञान प्राप्त किया और असंख्य कलाओं में निपुड़ थे जिसके चलते वे भविष्य की घटनाओं का सटीक अंकल कर पाते और इसी प्रकार उन्होंने ज्योतिष विद्या को आम जनता के लिए जन्म दिया और आज समस्त ज्योतिष पुरान पराशर ऋषि की ही देन हैं। पाराशर ऋषि अपने पूर्वज भगवान परशुराम की ही तरह असंख्य ज्ञान, वीरता के साथ ही साथ क्रोध के कारण भी जाने जाते थे, जिन्होंने बड़े होने के बाद समस्त ज्ञान अर्जित करने के बाद एक बार अपने दादाजी से उनके पिताश्री को एक राक्षस द्वारा मारे जाने का सत्य सुनने के बाद इतने क्रोधित हुए जिससे वे अपने समस्त योग विद्या के साथ एक हवन करने बैठ गए जिससे वे अकेले ही मात्र एक हवन से विश्व के सारे रक्षाशो का सर्वनाश होने लगा, परंतु उनके दादाजी, अन्य ऋषियों और अंत में भोलेनाथ द्वारा समझाए जाने पर उन्होंने यज्ञ रोका और शांत हुए। पाराशर ऋषि के इकलौते पुत्र ऋषि वेद व्यास जी उनके शिष्य बने और एक महान ऋषि बने को एक महान शैविक और वैष्णव बने जिन्होंने भगवान की कृपा से सनातन हिंदू विश्व के सारे वेद, पुरान, उपपुराण, महाभारत और भागवत कथा लिखी। वेद व्यासजी के पुत्र सुखदेवजी जिन्होंने राजा परीक्षितजी को भागवत कथा का ज्ञान दिया और सनत सनंदन सनत कुमारों के साथ समस्त संसार में भागवत कथा का ज्ञान दिया। ऋषि वेदव्यास जी ने अपनी योग पाया से पांडू, धृतराष्ट्र और विदुर को भी जन्म दिया था, जिनमें पांडू पांडवो के पिता थे और धृतराष्ट्र कौरवों के पिता थे।