Loading AI tools
अधिक अनुकूल परिस्थितियों के लिए हवा के गुणों में फेरबदल की प्रक्रिया विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
किसी निश्चित क्षेत्र अथवा कक्षा के ताप, आर्द्रता, वायु की गति तथा वायुमंडल के स्तर के स्वतंत्र अथवा एक साथ की नियंत्रण क्रिया को वातानुकूलन (Air-conditoning) कहा जाता है।
वातानुकूलित क्षेत्र के ताप, आर्द्रता, वायु की गति तथा वायुमंडल के स्तर में विभिन्न कारकों का नियंत्रण आवश्यकतानुसार विभिन्न स्तरों पर किया जाता है। सामान्यतः वातानुकूलन का उद्देश्य शारीरिक सुख तथा औद्योगिक सुविधा प्रदान करना होता है। शारीरिक सुख के लिए ऊष्मा-संबंधी उपयुक्त एवं सुखप्रद परिस्थितियों को उत्पन्न करने में कक्ष के ताप, आर्द्रता, वायु की गति एवं वायुमंडल के स्तर को शरीरक्रिया विज्ञान की दृष्टि से निश्चित सीमाओं के भीतर नियंत्रित किया जाता है। जब औद्योगिक उद्देश्यों के लिए, जैसे विभिन्न संगृहीत पदार्थों की सुरक्षा के लिए, वस्त्र एवं सूत तथा संश्लिष्ट रेशों के उत्पादन में, अथवा छपाई में, वातानुकूलन का उपयोग होता है, उस समय प्रक्रम तथा औद्योगिक आवश्यकतानुसार विभिन्न स्तरों पर उपर्युक्त वातानुकूलन कारकों का निर्धारण किया जाता है।
सामान्य रूप में किसी व्यक्तिविशेष के लिए वायुमंडल एवं वातावरण का ताप, आर्द्रता, वायु की गति एवं वायुमंडल का स्तर शरीर के सुख तथा सुविधा की दृष्टि से सदा अनुकूल अथवा सुखप्रद नहीं होता। इन कारकों को सुखप्रद बनाने में वातानुकूलन करनेवाले संयंत्रों का आधुनिक युग में विशेष प्रचार हुआ है। वातानुकूलित वातावरण मनुष्य के लिए केवल सुखप्रद ही नहीं होता, वरन् उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि करनेवाला भी होता है। मनुष्य के शरीर में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं द्वारा एवं शारीरिक श्रम द्वारा ऊष्मा का उत्पादन होता है तथा शरीर द्वारा वायुमंडल एवं वातावरण में ऊष्मा का निष्कासन होता है। शरीरक्रिया विज्ञान की दृष्टि से यदि शरीर में ऊष्मा का उत्पादन तथा शरीर द्वारा ऊष्मा के निष्कासन की गति समान होती है, तो यह दशा, मनुष्य के लिए सुखप्रद होती है। वातानुकूलन का यह प्रमुख उद्देश्य होता है कि वायुमंडल एवं वातावरण के उन सभी कारकों का इस प्रकार से नियंत्रण हो कि शरीर में ऊष्मा का उत्पादन एवं उसके द्वारा ऊष्मा निष्कासन की गति प्राय: समान हो जाए। मनुष्य के लिए शारीरिक दृष्टि से सुखप्रद वातावरण का ताप 21रू-24रू सें. तथा सापेक्ष आर्द्रता 50 प्रतिशत होनी चाहिए। इसी प्रकार 15 से 25 फुट प्रति मिनट वायु की गति शरीर के लिए सुखप्रद होती है। वातानुकूलन के उपर्युक्त कारकों को सभी ऋतुओं में समान स्तर पर रखने पर अधिकतम सुख प्राप्त नहीं होता। ग्रीष्म ऋतु में ताप 24रू सेंटीग्रेड होना अधिक उपर्युक्त होता है।
वातानुकूलन करनेवाले संयंत्रों में सामान्यत: एक वायुशीतक (एअरकूलर) तथा एक वायुतापक (एअर-हीटर) संयंत्र होता है। वायुतापक संयंत्र वायु के ताप को निश्चित बिंदु से कम होने पर तापन के द्वारा बढ़ाता है तथा वायुशीतक संयंत्र ताप अधिक होने पर वायु को शीतलन की क्रिया के द्वारा निर्धारित स्तर पर लाता है। वायुशीतक यंत्र संपीड़न प्रकार (compressor type) का यांत्रिक प्रशीतन एकक होता है। इसके यांत्रिक संपीड़ तंत्र के अधिशोषण संयंत्र में संघनक, विस्तारणकारक एवं वाष्पक यंत्र लगे होते हैं। वातानुकूलन संयंत्रों में बाह्य वायुमंडल की वायु छन्ने के द्वारा भीतर प्रवेश करती हैं। इस छन्ने से वायु के धूल के कण इत्यादि संयंत्र के भीतर प्रवेश नहीं कर पाते हैं। यांत्रिक प्रशीतक में वायुछन्ने का प्रमुख कार्य वायु के साथ प्रवेश करने वाले ठोस कणों की मात्रा को कम करना होता है, परंतु इस क्रिया में प्रवेश के दबाव तथा निष्कासन दबाव में दबाव का ह्रास न्यूनतम होना चाहिए। दबाव के ह्रास से वायुसंचालन में अधिक बिजली खर्च होती है। वायुछन्ने की क्रियाशीलता संबंधी क्षमता वायु के साथ प्रवेश करनेवाले कणों के आकार पर तथा वायु में कणों की सांद्रता एवं वायु के प्रवेश की गति पर निर्भर करती है। इस प्रकार से छनकर आई हुई वायु को यांत्रिक शीतक में अथवा अधिशोषण शीतक में पूर्वनिर्धारित ताप तक शीतल किया जाता है।
सामान्यत: वायु को शीतल करने में संवेदी-ऊष्मा (sensible heat), अथवा आंतरिक ऊष्मा की ऊर्जा का, गरम वायु से अपेक्षाकृत कम तापवाले स्तर, अथवा माध्यम, में प्रत्यक्ष संवहन (convection) द्वारा स्थानांतारण होता है। ऊष्मा का यह स्थानांतरण, द्रववाष्प के सम्मिश्रण के द्वारा ऊष्मापरिषण स्तर से परिवाही शीतल द्रव, अथवा कम दबाव पर वाष्पन से होता है। वायुशीतलन की इस पद्धति में द्रववाष्प का सम्मिश्रण शीतल द्रव अथवा वाष्प द्रव में परिवर्तित होते हुए वायु की ऊष्मा को ग्रहण करता है। ऊष्मा-स्थानांतरण की एक अन्य पद्धति में, प्रवेश करनेवाली वायु की ऊष्माका स्थानांतरण किसी भीगे हुए स्तरयुक्त वायुशीतलक में होता है। इस पद्धति को वायु का आर्द्रशीतलन कहा जाता है। वायु शीतलन की उपर्युक्त दोनों ही पद्धतियों में वायु की संचित आंतरिक गतिज ऊर्जा वायु को त्याग कर, ऊष्मा-ग्रहण-स्तर में पहुंचकर, संचित हो जाती है, अथवा ऊष्मा-ग्रहण-स्तर के आंतरि गतिज ऊर्जा में वृद्धि करती है, जिससे स्तर के ताप में वृद्धि होती है अथवा स्थिर ताप वाष्पन प्रक्रम में आंतरिक स्थितिक ऊर्जा के रूप में संचित हो जाती है।
वातानुकूलन में वायु को शीतल करने में जब ऊष्मा स्थानांतरण के लिए शुष्क स्तर का उपयोग होता है, तो गुप्त ऊष्मा में परिवर्तन नहीं होता तथा इस प्रावस्था में संवेदी ऊष्मा की हानि संपूर्ण ऊष्मा की हानि के बराबर होती है। जैसे-जैसे ऊष्मा के स्थानान्तरण स्तर का ताप कम होने लगता है तथा वह निर्धारित आर्द्रता पर ओसांक बिंदु (dewpoint) के समीप होने लगता है संवेदी ऊष्मा की हानि में वृद्धि होने लगती है। वातानुकूलन की आद्र्र-शीतन रीति में ऊष्मा-स्थानांतरण-स्तर के ताप का इस प्रकार से नियंत्रण होता है कि संवेदी ऊष्मा की हानि तथा संपूर्ण ऊष्मा की हानि का अनुपात वायु-अनुकूलन-अधिष्ठापन की आवश्यक भार-परिस्थिति को वहन कर सके। निर्धारित आर्द्रता की परिस्थितियों में ऊष्मास्थानांतरण-स्तर का ताप यदि ओसांक बिंदु से नीचे पहुंच जाता है (अर्थात् प्रवेश करनेवाली वायु के वाष्प के सम्मिश्रण के ओसांक विंदु से नीचे पहुँच जाता है), तो उस प्रावस्था में संपूर्ण ऊष्मा की हानि में वृद्धि हो जाती है, तथा साथ ही साथ संवेदी ऊष्मा की हानि तथा संपूर्ण ऊष्मा की हानि के अनुपात में कमी उत्पन्न हो जाती है।
वातानुकूलन संयंत्र में यांत्रिक संपीड़न व्यवस्था से, ऊष्मा ऊर्जा के विद्युत-स्थानांतरण में शक्ति का प्रयोग उच्च ताप की वायु से कम ताप वाले ऊष्मा स्थानांतरण स्तर में उपर्युक्त रीति से होता है। ऊष्मा अवशोषणा की पद्धति में यांत्रिक संपीडन पद्धति के संघनक, विस्तारण कारक तथा वाष्पक संयंत्रों का प्रयोग होता है, परंतु वायुशीतलक द्रव के संतृप्त दबाव में वृद्धि उत्पन्न होने से, यंत्र की कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है। वातानुकूलन की इस रीति में गौण अवशोषक द्रव का प्रयोग होता है। वाष्प रूप में होने पर इस द्रव में वातानुकूलक के शीतलक द्रव के प्रति बंधुता होती है। जल अमोनिया अवशोषण पद्धति में द्रव रूप में जल का उपयोग अमोनिया के वाष्प के अवशोषण के लिए किया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त शीतल तथा सांद्र अमोनिया के विलयन को उच्च दवाब की स्थिति में लाने पर तथा ताप में वृद्धि के कारण पुन: वाष्पीकरण होता है।
वातानुकूलन संयंत्र में शीतलक यंत्र के अतिरिक्त तापक यंत्र भी लगा हुआ होता है। प्रवेश करनेवाली वायु के ताप के कम होने पर इलेक्ट्रॉनिक (electronic) अभिचालन पद्धति स्वत: चालित हो जाती है, जिससे तापक कार्य करने लगता है और वातानुकूलन संयंत्र से निकलनेवाली वायु का ताप निर्धारित सीमा तक हो जाता है। इस प्रकार से शीतलक तथा तापक यंत्रों के संयुक्तिकरण द्वारा किसी कक्ष अथवा क्षेत्र के ताप को पूर्वनिर्धारित सीमा पर स्थिर रखने के लिए यह आवश्यक होता है कि वातानुकूलन संयंत्र में कक्ष की वायु का संतत परिवहन होता रहे। अत: संयंत्र में ऐसी व्यवस्था होती है कि कक्ष की वायु का चूषण होता रहता है तथा शीतलन अथवा निश्चित ताप पर इस वायु का, अथवा बाह्य वायुमंडल की वायु का, संयंत्र से कक्ष के भीतर मंद गति से (15 से 25 फुट प्रति मिनट) प्रवाह होता रहता है। इससे कक्ष के ताप के नियंत्रण के साथ साथ वायु में कार्बन डाइऑक्साइड (श्वसन द्वारा निष्कासित) की मात्रा अधिक नहीं होने पाती तथा कक्ष की वायु में यदि कोई दुर्गंध हो, तो उसका भी निष्कासन होता रहता है। वातानुकूलन में ताप का नियंत्रण ही सर्वांधिक महत्वपूर्ण होता है। संयंत्र में प्रवेश करनेवाली वायु को आद्र्र स्तर से होकर जाने से जल के वाष्पन का नियंत्रण होता है तथा इसके फलस्वरूप कक्ष की आर्द्रता का भी उचित स्तर पर नियंत्रण होता है। इस प्रकार से कक्ष अथवा क्षेत्र के ताप, आर्द्रता, वायु की गति तथा वातावरण के स्तर का पृथक् एवं संयुक्त रूप में निश्चित स्तर पर नियंत्रण होता है। इस प्रकार के कक्ष को वातानुकूलित कहा जाता है। वातानुकूलन की इस क्रिया में वायुमंडल तथा वातावरण के उपर्युक्त कारकों को शारीरिक सुख एवं औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए वातानुकूलन की रीति से अनुकूलतम बनाया जाता है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.