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विस्फोटक (explosives) कुछ यौगिक या मिश्रण ऐसे होते हैं जिनमें आग लगाने पर या अघात करने पर बड़े धमाके के साथ वे विस्फुटित होते हैं। धमाके का कारण बड़े अल्प काल में बहुत बड़ी मात्रा में गैसों का बनना होता है। ऐसे पदार्थों को "विस्फोटक" कहते हैं। आज बहुत बड़ी मात्रा में विस्फोटकों का निर्माण होता है।
विस्फोटकों के दो उद्देश्य होते हैं :
(1) शांतिकाल में उनसे चट्टानों को उड़ाया और कोयले और अन्य खनिजों को कम खर्च में खानों से निकाला जाता है तथा
(2) युद्धकाल में विस्फोटको से शत्रुओं को हानि पहुँचाकर अपनी रक्षा की जाती है।
जिस तीन मील लंबी सुरंग के बनाने में तीन हजार व्यक्ति 11 वर्षों तक काम में लगे थे, वही सुरंग आधुनिक मशीनों और विस्फोटकों की सहायता से केवल 100 व्यक्तियों द्वारा दस मास में बन सकती है।
विस्फोटक रासायनिक पदार्थ का मिश्रण होता है, जिसे हथौड़े से आघात करने या ज्वाला से छूने, या विद्युत् स्फुलिंग से एकाएक ऊष्मा के विकास के साथ बहुत बड़ी मात्रा में गैस बनने के कारण विस्फोटन होता है। यदि किसी बंद कक्ष में विस्फोटन हो, तो कक्ष की दीवारें छिन्न भिन्न हो जाती है। पर लाभकारी विस्फोटक अपेक्षया निष्क्रिय होते हैं, ताकि उनका निर्माण और परिवहन निरापद हो सके। कुछ विस्फोटक ऐसे होते हैं कि पंख से छूने पर भी वे विस्फुटित हो जाते हैं। ऐसे विस्फोटक किसी उपयोगी काम के नहीं होते। उपयोगी विस्फोटकों में कुछ उच्च विस्फोटक होते हैं और कुछ सामान्य या मंद विस्फोटक। यह विभेद उनकी सुग्राहिता के आधार पर नहीं किया जाता, वरन् उनके छिन्न भिन्न करने की क्षमता पर किया जाता है। कुछ विस्फोटक, जैसे मर्करी फल्मिनेट तथा लेड ऐज़ाइड (Lead azide), जो बड़े सुग्राही होते हैं, प्राथमिक विस्फोटक के रूप में न्यून सुग्राही विस्फोटक के विस्फोटन में उपयुक्त होते हैं। कुछ प्रमुख विस्फोटक ये हैं:
1. डायनामाइट -- तीव्र विस्फोटक, शांतिकाल के लिए
2. विस्फोटक जिलेटिन -- तीव्र विस्फोटक, शांतिकाल के लिए
3. टीएनटी (TNT) -- तीव्र विस्फोटक, युद्ध के लिए
4. पिक्रिक अम्ल -- तीव्र विस्फोटक युद्ध के लिए
5. अमोनियम नाइट्रेट -- तीव्र विस्फोटक युद्ध के लिए
6. धूमहीन चूर्ण -- मंद विस्फोटक, युद्ध के लिए
7. कालाचूर्ण या बारूद -- मंद विस्फोटक, शांति और युद्ध दोनों के लिए
8. मर्करी फल्मिनेट --- सहायक विस्फोटक, युद्ध के लिए
9. लेड ऐज़ाइड --- सहायक विस्फोटक, युद्ध के लिए
डायनामाइट के निर्माण में नाइट्रोग्लिसरीन प्रयुक्त होता है। नाइट्रोग्लिसरीन आवश्यकता से अधिक सुग्राही होता है। इसकी सुग्राहिता को कम करने के लिए कीज़लगर का उपयोग होता है। अमरीका में कीज़लगर के स्थान में काठ चूरा, या काठ समिता और सोडियम नाइट्रेट का उपयोग होता है। डायनामाइट में नाइट्रोग्लिसरीन की मात्रा 20, 40, या 60 75 प्रति शत रहती है। इसकी प्रबलता नाइट्रोग्लिसरीन की मात्रा पर निर्भर करती है। 75 प्रतिशत नाइट्रोग्लिसरीन वाला डायनामाइट प्रबलतम होता है। कीज़लगर, या काष्ठचूर्ण, या समिता के प्रयोग का उद्देश्य डायनामाइट का संरक्षण होता है, ताकि यातायात में वह विस्फुटित न हो जाए। नाइट्रोग्लिसरीन 13 डिग्री सें. पर जम जाता है। जम जाने पर यह विस्फुटित नहीं होता। अत: ठंढी जलवायु में जमकर वह निकम्मा न हो जाए, इससे बचाने के लिए उसमें 20 भाग ग्लिसरीन डाइनाइट्रोमोनोक्लो-रहाइड्रिन मिलाया जाता है। यह जमावरोधीकारक का काम करता है। इसससे नाइट्रोग्लिसरीन -30 डिग्री सें. तक द्रव रहता है। नाइट्रोग्लिसरीन के स्थान में नाइट्रोग्लाइकोल का उपयोग अब होने लगा है।
विस्फोटक जिलेटिन में 90 प्रतिशत ग्लिसरीन और 10 प्रतिशत नाइट्रोसेलुलोस रहता है। टी एन टी ट्राइनाइट्रोटोल्विन है। यह 81 डिग्री सें. पर पिघलता है। डी एन टी के साथ अमोनियम नाइट्रेट के मिले रहने से टी एन टी अधिक प्रबल विस्फोटक हो जाता है। पिक्रिक अम्ल विस्फोटक है। फिनोल के नाइट्रेटीकरण से यह बनता है। यह पीला ठोस है, जो 121 डिग्री सें. पर पिघलता है। इसका सीस लवण पिक्रिक अम्ल से 5 गुना अधिक सुग्राही होता है। स्वय पिक्रिक अम्ल खोल में भरा जाता है। अमोनियम नाइट्रेट टी एन टी के साथ मिलाकर प्रयुक्त होता है। यह आक्सीकारक का भी कार्य करता है। स्वयं यह कठिनता से प्रस्फोटिन (detonate) होता है।
धूमहीन चूर्ण में नाइट्रोसेलुलोस रहता है। यह ऐसीटोन से जिलेटिनीकृत किया रहता है। स्थायित्वकारी (stabilizer) के रूप में अल्प मात्रा में डाइफेनिलेमिन और यूरिया प्रयुक्त होते हैं।
विस्फोटकों की क्षमता दो बातों, प्रस्फोट की तीव्रता और प्रस्फोट के संचारण के वेग पर निर्भर करती है। इन दोनों गुणों पर ही छिन्न भिन्न करने की क्षमता आधारित है। तीव्रता गैसों और ऊष्मा के उन्मुक्त होने पर निर्भर करती है। इसके लिए विस्फोटक के एक ज्ञात भार की सीस निपिंड (block) की गुहा में रखकर, विस्फुटित करते हैं। इससे सीस निपिंड की गुहा का उत्तनन (distension) हो जाता है। गुहा के आयतन की माप विस्फोटक की प्रबलता की माप है। एक दूसरी विधि में 500 पाउंड मॉर्टर (छोटे तोप) को लोलक के रूप में लटकाते है और उससे 36 पाउंड का गोला छोड़ते हैं। इससे मॉर्टर का प्रतिक्षप (recoil) होता है। मॉर्टर का यही प्रतिक्षेप प्रबलता की माप है। दोनों विधियों से प्राय: एक से ही परिणाम प्राप्त होते है। कठोर चट्टानों को उड़ाने के लिए प्रबल और उच्च वेगवाले विस्फोटकों की आवश्यकता पड़ती है और कम कठोर चट्टानों के लिए कम प्रबल और मंद वेग वाले विस्फोटकों से काम चल जाता है। विस्फोटक के महत्व का एक गुण उसकी सुग्राहिता है। सुग्राहिता का परीक्षण विस्फोटक पर भार गिराकर किया जाता है। जितना ही अधिक ऊँचाई से गिरकर वह विस्फुटित होता है, उतना ही कम सुग्राही वह होता है। जो विस्फोटक कोयले की खानों में व्यवहृत होते हैं, उनका परीक्षण एक विशेष प्रकार से होता है, क्योकिं कोयले की खानों में ज्वलनशील गैसें रह सकती हैं। ऐसी गैसों में जो विस्फोटक विस्फुटित नहीं होते, वे ही खानों में प्रयुक्त होते हैं। ऐसे विस्फोटकों की ज्वाला छोटी और अल्पकालिक होती है। ज्वाला की लंबाई और समयावधि फोटोग्राफी से नापी जाती है। बारूद की समयावधि 0.077 सेकंड और ज्वाला की लंबाई 110 मिमी. (100 ग्राम का) तथा गनकॉटन (guncotton) की समयावधि 0.0013 सेकंड और ज्वाला की लंबाई 97 मिमी. होती है। पिक्रिक अम्ल अमोनियम नाइट्रेट की समयावधि एवं ज्वाला लंबाई इससे बहुत छोटी होती है। गनकॉटन की तोपकक्ष में विस्फुटित करने से प्रति वर्ग इंच लगभग 3 टन का दबाव उत्पन्न होता है।
युद्ध में काम आनेवाले विस्फोटक दो प्रकार के होते हैं :
(1) प्रणोदक (propellent), जो कारतूसों में भरे जाते हैं, तथा
(2) वे जो गोल खोल में भरे जाते हैं।
राइफल के कारतूस में भी एक प्रणोदक और दूसरी बुलेट या गोली जा यशद-ताम्र मिश्रधातु की बनी होती है, सीस के निचोल में रखी होती है। टैंकमार (antitank) राइफलों में इस्पात की गोलियाँ होती हैं। हथगोले में कोई प्रणोदक नहीं होता।
रेशे के रूप में नाइट्रोसेलूलोस (गनकॉटन) उच्च विस्फोटक होता है, किंतु जिलेटनीकृत हो जाने पर मंद विस्फोटक बन जाता है। अकेले या अन्य पदार्थों के साथ मिलाकर, यही प्रधानतया मंद विस्फोटक के रूप में व्यवहृत होती है। गोली के खोल में टी एन टी, या एमेटोल (टी एन टी के साथ एमोनियम नाइट्रेट मिला हुआ), पिक्रिक अम्ल, या इसके लवण, रहते हैं। इसका काम होता है निदिष्ट स्थान पर पहुँचकर, तीव्रगामी टुकड़ों में चूर चूर हो जाना और वास्तविक मिसाइल या अस्त्र बन जाना। खोल में रोज़िन या बारूद से बँधा हुआ गेंद रहता है। ऐसे खोल को "श्रेप्नेल शेल" (Shrapnel shell) कहते हैं। गेंद के स्थान में युद्ध गैस भी रह सकती है। खोल को पलीते (fuse) द्वारा जलाया जाता है। खोल इस्पात का बना होता है। बहुधा उसमें ऐलुमिनियम की नाकनुमा धार लगी रहती है।
विस्फोटक में प्रयुक्त होनेवाले नाइट्रोसेलुलोज में नाइट्रोजन 12.8 प्रतिशत रहता है। रखने पर धूमहीन चूर्ण का ह्रास होता है। अत: बीच बीच में उसका परीक्षण करते रहना आवश्यक होता है। कॉर्डाइट में नाइट्रोसेलुलोज और नाइट्रोग्लिसरीन दोनों रहते हैं। इनकी आपेक्षिक मात्रा निश्चित नहीं रहती। एक कॉर्डाइट में नाइट्रोसेलुलोज 65 भाग, नाइट्रोग्लिसरीन 30 भाग और खनिज जेली 0.5 भाग रहते हैं। एक दूसरे कॉर्डाइट में नाइट्रोसेलुलोज 37 भाग, नाइट्रोग्लिसरीन 58 भाग और जेली 0.5 भाग रहते हैं। ऐसीटोन जिलेटिनीकारक के रूप में प्रयुक्त होता है। पोटैशियम क्लोरेट, पोटैशियम परवलोरेट, नाइट्रोग्वेनिडिन, मर्करी फल्मिनेट, लेड ऐज़ाइह, नाइट्रो स्टार्च, द्रव ऑक्सीजन और काष्ठ कोयला भी विस्फोटक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
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