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वैज्ञानिक प्रबन्धन (जिसे टेलरवाद और टेलर पद्धति भी कहते हैं) प्रबन्धन का एक सिद्धान्त है जो कार्य-प्रवाह (workflow) का विश्लेषण एवं संश्लेषण करती है और इस प्रकार श्रमिक उत्पादकता को बढ़ाने में सहायता करती है। इसके मूल सिद्धान्त १८८० एवं १८९० के दशकों में फ्रेडरिक विंस्लो टेलर द्वारा प्रतिपादित किये गये जो उनकी रचनाओं "शॉप मैनेजमेन्ट" (१९०५) तथा "द प्रिन्सिपल्स ऑफ साइन्टिफिक मैनेजमेन्ट" (१९११) के द्वारा प्रकाश में आये। टेलर का मानना था कि परिपाटी और "रूल ऑफ थम्ब" पर आधारित निर्णय के स्थान पर ऐसी तरीकों/विधियों का उपयोग किया जाना चाहिये जो कर्मिकों के कार्य का ध्यानपूर्बक अध्ययन के फलस्वरूप विकसित किये गये हों।
वस्तुत: टेलरवाद, दक्षता वृद्धि का दूसरा नाम है। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त एवं बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में मानव-जीवन में दक्षता बढ़ाने, बर्बादी कम करने, प्रयोगाधारित विधियों का उपयोग करने आदि की बहुत चर्चा हुई। टेलरवाद को इनका ही एक अंश माना जा सकता है।
औद्योगिक क्रांति के प्रारंभिक दिनों में, जबकि कारखाना संगठन की कोई स्थापित पद्धति मीमांशा नहीं थी, कारखाना मालिक अथवा प्रबंधक प्रबंध कार्य करते हुए आने वाली समस्याओं का समाधान करते समय अधिकांश व्यक्तिगत निर्णयों पर ही निर्भर करते थे। इसे अंगूठा टेक नियम कहा जाता है। अंगूठा टेक नियम अपनाने पर कारखानों का प्रबंध करते समय प्रबंधक परिस्थिति के अनुसार कार्य कर सकते थे लेकिन उन्हें प्रयत्न एवं मूल की पद्धति की सीमाओं का सामना करना पड़ता था। उनके अनुभव को विशिष्टता प्रदान करने के लिए यह जानना महत्त्व रखता था कि कौन कार्य को करता है तथा यह ऐसा क्यों करता है? इसके लिए जिस मार्ग पर चलना था, वह वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित थी अर्थात् समस्या को परिभाषित करना, वैकल्पिक समाधानों का विकास करना, परिणामों का पूर्वानुमान लगाना, प्रगति को मापना एवं परिणाम निकालना आदि। इस परिदृश्य में टेलर वैज्ञानिक प्रबंध के जनक के रूप में उभर कर आए। उन्होंने अंगूठा टेक के स्थान पर वैज्ञानिक प्रबंध सुझाया। उन्होंने मानवीय क्रियाओं को छोटे-छोटे भागों में बाँटा तथा यह पता किया कि वह इसे कम समय एवं अधिक उत्पादकता से किस प्रकार से कर सकता है। इसमें व्यावसायिक क्रियाओं को स्तरीय उपकरण, (उत्पादन में वृद्धि हेतु, पद्धतियों एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा करना, गुणवत्ता में सुधार करना एवं लागत तथा बर्बादी को कम करना निहित था)।
टेलर के शब्दों में
बैथलहम स्टील कंपनी, जिसमें टेलर स्वयं कार्यरत थे, में वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांतों को लागू करने से उत्पादकता में तीन गुणा वृद्धि हुई। इसलिए इन सिद्धांतों पर विचार करना उचित ही होगा।
टेलर ने प्रबंध के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धति को लागू करने की पहल की। हम पहले ही प्रबंध अंगूठा टेक नियम की सीमाओं की चर्चा कर चुके हैं। अब क्योंकि सभी प्रबंधक अपने-अपने अंगूठा टेक नियमों को अपनाएँगे इसलिए स्वभाविक है कि सभी समान रूप से प्रभावी नहीं होंगे। टेलर का विश्वास था कि अधिकतम कार्यक्षमता में वृद्धि केवल एक ही सर्वोत्तम विधि थी। इस पद्धति को अध्ययन एवं विश्लेषण के द्वारा विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार से विकसित पद्धति को पूरे संगठन में ‘अंगूठा टेक नियम’ के स्थान पर लागू करना चाहिए। वैज्ञानिक पद्धति में प्रारंभिक प्रणालियों का कार्य अध्ययन, सर्वश्रेष्ठ तरीकों का एकीकरण एवं स्तरीय पद्धति के विकास के माध्यम से जाँच पड़ताल सम्मिलित थी, जिसे कि पूरे संगठन में अपनाया जाना चाहिए। टेलर के अनुसार लोहे की छड़ों को डब्बाबंद गाड़ियों में लादने की छोटी सी उत्पादन क्रिया को भी वैज्ञानिक ढंग से नियोजित किया जा सकता है एवं उसका प्रबंधन किया जा सकता है। इससे मानवीय शक्ति एवं समय तथा माल की बर्बादी में भारी बचत होगी। जितनी अधिक व्यवस्थित प्रक्रिया होगी उतनी ही अधिक बचत होगी।
वर्तमान संदर्भ में इंटरनेट का प्रयोग आंतरिक कार्यकुशलता एवं ग्राहक की संतुष्टि में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया है।
उत्पादन की कारखाना प्रणाली में प्रबंधक, मालिक एवं श्रमिकों के बीच की कड़ी होते हैं। प्रबंधकों को श्रमिकों से कार्य पूरा कराने का अधिकार मिला होता है इसलिए आप सरलता से समझ सकते हैं कि एक प्रकार वे वर्ग भेद अर्थात् प्रबंधक बनाम श्रमिक, की सदा संभावना बनी रहती है। टेलर ने पाया कि इस टकराव से, श्रमिक, प्रबंधक अथवा कारखाना मालिक किसी को लाभ नहीं पहुँचाता है। उसने प्रबंध एवं श्रमिकों के बीच पूरी तरह से सहयोग पर जोर दिया। दोनों को समझना चाहिए कि दोनों का ही महत्त्व है। इस स्थिति को पाने के लिए टेलर ने प्रबंधक एवं श्रमिक दोनों में संपूर्ण मानसिक क्रांति का आहवान किया। इसका अर्थ था कि प्रबंधक एवं श्रमिक दोनों की सोच में बदलाव आना चाहिए। ऐसा होने पर श्रमिक संगठन भी हड़ताल करने आदि की नहीं सोचेंगे। यदि कंपनी को लाभ होता है तो प्रबंधकों को चाहिए कि वह इसे कर्मचारियों में बाँटे। कर्मचारियों को भी चाहिए कि कंपनी की भलाई के लिए वह परिश्रम करें एवं परिवर्तन को अपनाएँ। टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि दोनों का हित समान है, कर्मचारियों की समृद्धि के बिना प्रबंधकों की समृद्धि और इसके विपरीत प्रबंधकों की समृद्धि के बिना कर्म श्रमिकों की समृद्धि भी अधिक समय तक नहीं रह सकती। जापानियों की कार्य संस्कृति इस स्थिति का उत्कृष्ट उदाहरण है। जापानी कंपनियों में पितृवत्त शैली का प्रबंध होता है। प्रबंधक एवं श्रमिकों के बीच कुछ भी छुपा नहीं होता। श्रमिक यदि हड़ताल करते हैं तो वह काले बिल्ले लगा लेते हैं लेकिन प्रबंध की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए सामान्य घंटों से भी अधिक कार्य करते हैं।
व्यक्तिवाद के स्थान पर श्रम एवं प्रबंध में पूर्णरूप सहयोग होना चाहिए। यह सहयोग, न कि टकराव के सिद्धांत का विस्तार है। प्रतियोगिता के स्थान पर सहयोग होना चाहिए। दोनों को समझना चाहिए कि दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यक है कि यदि कर्मचारियों की ओर से कोई रचनात्मक सुझाव आता है तो उस पर ध्यान देना चाहिए। यदि उनके सुझाव से लागत में पर्याप्त कमी आती है तो उन्हें इसका पुरस्कार मिलना चाहिए। उनकी प्रबंध में भागीदारी होनी चाहिए और जब भी कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया जाए तो श्रमिकों को विश्वास में लेना चाहिए। इसके साथ-साथ श्रमिकों को भी चाहिए कि वह हड़ताल न करें तथा प्रबंध से अनुचित माँग न करें। वास्तव में यदि खुली संप्रेषण व्यवस्था एवं आपस में विश्वास होगा तो श्रम संगठन की आवश्यकता ही नहीं होगी। जापानी कंपनियों के समान पितृवत शैली का प्रबंध होगा जिसमें नियोक्ता कर्मचारियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखेगा। टेलर के अनुसार श्रमिक एवं प्रबंध के बीच कार्य एवं उत्तरदायित्व का लगभग समान विभाजन होगा। पूरे समय प्रबंध कर्मचारियों के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेगा। उनकी सहायता करेगा, प्रोत्साहित करेगा एवं उनका मार्ग प्रशस्त करेगा।
औद्योगिक कार्य क्षमता अधिकांश रूप से कर्मचारियों की योग्यताओं पर निर्भर करती है। वैज्ञानिक प्रबंध भी कर्मचारियों के विकास को मान्यता देता है। वैज्ञानिक तरीके से कार्य करने के परिणामस्वरूप जो श्रेष्ठतम पद्धति विकसित की गई उसको सीखने के लिए कर्मचारियों का प्रशिक्षण आवश्यक था। टेलर का विचार था कि कार्यकुशलता की नींव कर्मचारी चयन प्रक्रिया में ही पड़ जाती है। प्रत्येक व्यक्ति का चयन वैज्ञानिक रीति से होना चाहिए। जो कार्य उसे सौंपा जाता है वह उसकी शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक योग्यताओं के अनुरूप होना चाहिए। उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि के लिए उनको आवश्यक प्रशिक्षण मिलना चाहिए। कार्यकुशल कर्मचारी दोनों की अधिकतम कार्यकुशलता एवं समृद्धि सुनिश्चित होगी।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि टेलर व्यवसाय के उत्पादन में वैज्ञानिक पद्धति का कट्टर समर्थक था।
टेलर द्वारा निर्धारित तकनीकें उसके अपने कैरियर/जीवन वृत्ति के दौरान किए गए शोध कार्यों पर आधारित हैं।
कारखाना प्रणाली में फोरमैन वह प्रबंधक होता है, जिसके सीधे सर्म्पक में श्रमिक प्रतिदिन आते हैं। इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में आपने पढ़ा कि फोरमैन निम्नतम स्तर कर प्रबंधक और उच्चतम श्रेणी का श्रमिक होता है। वह केंद्र बिंदु होता है जिसके चारों ओर पूरा उत्पादन नियोजन, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण घूमता है। टेलर ने कारखाना ढाँचे में इस भूमिका के निष्पादन के सुधार पर ध्यान दिया। वास्तव में एक अच्छे फोरमैन/पर्यवेक्षक की योग्यताओं की सूची तैयार की लेकिन पाया कि कोई भी व्यक्ति इनको पूरा नहीं कर सका इसलिए उसने आठ व्यक्तियों के माध्यम से क्रियात्मक फोरमैनशिप का सुझाव दिया।
टेलर ने नियोजन एवं उसके क्रियान्वयन को अलग-अलग रखने की वकालत की। इस अवधारणा को कारखाने के निम्नतम् स्तर बढ़ा दिया गया। यह क्रियात्मक फोरमैनशिप कहलाता है। कारखाना प्रबंधक के अधीन योजना अधिकारी एवं उत्पादन अधिकारी थे। नियोजन अधिकारी के अधीन चार कर्मचारी कार्य कर रहे थे_ जिनके नाम हैं निर्देशन कार्ड क्लर्क, कार्यक्रम क्लर्क, समय एवं लागत क्लर्क, एवं कार्यशाला अनुशासक। यह चार क्रमशः कर्मचारी, कर्मचारियों के लिए निर्देश तैयार करेंगे, उत्पादन का कार्यक्रम तैयार करेंगे, समय एवं लागत सूची तैयार करेंगे एवं अनुशासन सुनिश्चित करेंगे।
उत्पादन अधिकारी के अधीन जो कर्मचारी कार्य करेंगे वे हैं-गतिनायक, टोलीनायक, मरम्मत नायक एवं निरीक्षक। ये क्रमशः कार्य समय ठीक से तैयार करने, श्रमिकों द्वारा मशीन उपकरणों को कार्य के योग्य रखने एवं कार्य की गुणवत्ता की जाँच करने के लिए उत्तरदायी होते हैं। क्रियात्मक फोरमैनशिप श्रमविभाजन एवं विशिष्टीकरण के सिद्धांत का निम्नतम स्तर तक विस्तार है। प्रत्येक श्रमिक को उत्पादन कार्य अथवा संबंधित प्रक्रिया के इन आठ फोरमैनाें से आदेश लेने होंगे। फोरमैन में बुद्धि, शिक्षा, चातुर्थ, स्थिरता, निर्णय, विशिष्ट ज्ञान, शारीरिक दक्षता एवं ऊर्जा, ईमानदारी तथा अच्छा स्वास्थ्य। क्योंकि यह सभी गुण किसी एक व्यक्ति में नहीं मिल सकते इसलिए टेलर ने आठ विशेषज्ञों की टीम का सुझाव दिया। प्रत्येक विशेषज्ञ को उसकी अपनी योग्यतानुसार कार्य सौंपा जाता है। उदाहरण के लिए, जो तकनीकी में सिद्धस्थ हैं, बुद्धिमान हैं एवं स्थिर मस्तिष्क के हैं उनको नियोजन कार्य सौंपा जा सकता है। जो ऊर्जावान हैं एवं अच्छा स्वास्थ्य लिए हैं उनको क्रियान्वयन कार्य सौंपा जा सकता है।
टेलर प्रमापीकरण के जबरदस्त पक्षधर थे। उसके अनुसार अगूंठा टेक नियम के अंतर्गत उत्पादन पद्धतियों के विश्लेषण के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अपनाना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ प्रणाली को प्रमाप के विकास के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है तथा उसमें और सुधार किया जा सकता है जिसे पूरे संगठन में उपयोग में लाया जाना चाहिए। इसको कार्य अध्ययन तकनीकों के माध्यम से किया जा सकता है जिसमें समय अध्ययन, गति अध्ययन, थकान अध्ययन एवं कार्यविधि अध्ययन सम्मिलित हैं तथा जिनका वर्णन इसी अध्याय में आगे किया गया है। ध्यान रहे कि व्यावसायिक प्रक्रिया के समकालीन तकनीक पुनः इंजीनियरिंग, कैमेन (निरंतर सुधार) एवं मील का पत्थर काभी लक्ष्य कार्य का प्रमापीकरण होता था।
प्रमापीकरण से अभिप्राय प्रत्येक व्यावसायिक क्रिया के लिए मानक निर्धारण प्रक्रिया से है। प्रमापीकरण प्रक्रिया, कच्चा माल, समय, उत्पाद, मशीनरी, कार्य पद्धति अथवा कार्य-शर्तों का हो सकता है। यह मानक मानदंड होते हैं, उत्पादन के दौरान जिनका पालन करना होता है।
प्रमापीकरण के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
सरलीकरण का उद्देश्य व्यर्थ किस्मों, आकार एवं आयामों को समाप्त करना होता है, जबकि प्रमापीकरण का अर्थ है वर्तमान किस्मों के स्थान पर नयी किस्में तैयार करना। सरलीकरण में उत्पादन की अनावश्यक अनेकताओं को समाप्त किया जाता है। इससे श्रम, मशीन एवं उपकरणों की लागत की बचत होती है। इसमें मालरहित या कम रखना, उपकरणों का संपूर्ण उपयोग एवं आवर्त में वृद्धि सम्मिलित हैं।
अधिकांश बड़ी कंपनियाँ जैसे नोकिया, टोयोटा, एवं माइक्रोसॉफ्रट आदि ने प्रमापीकरण एवं सरलीकरण का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया है। अपने-अपने बाजार में इनकी भारी हिस्सेदारी से यह स्पष्ट है।
कार्य पद्धति अध्ययन का उद्देश्य कार्य को करने की सर्वश्रेष्ठ पद्धति को ढूँढ़ना है। किसी कार्य को करने की कई पद्धतियाँ होती हैं। सर्वश्रेष्ठ मार्ग के निर्धारण के कई प्राचल (Parameters) हैं। कच्चा माल प्राप्त करने से लेकर तैयार माल को ग्राहक तक पहुँचाने तक प्रत्येक क्रिया कार्य पद्धति अध्ययन के अंतर्गत आती है। टेलर ने कार्य पद्धति अध्ययन के माध्यम से कई क्रियाओं को एक साथ जोड़ने की अवधारणा का निर्माण किया। फोर्ड मोटर कंपनी ने इस अवधारणा का सफलतापूर्वक उपयोग किया। आज भी ऑटो कंपनियाँ इसको अपना रही हैं।
इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य उत्पादन लागत को न्यूनतम रखना एवं ग्राहक को अधिकतम गुणवत्ता एवं संतुष्टि प्रदान करना है। इसके लिए कई तकनीकों का प्रयोग होता है जैसे, प्रक्रिया चार्ट एवं परिचालन अनुसंधान आदि का प्रयोग। एक कार का डिजाइन तैयार करने के लिए समुच्य रेखा का अर्थ है परिचालन क्रियाओं, कर्मचारियों का स्थान, मशीन एवं कच्चा माल आदि का क्रम निर्धारित करना। यह सभी कुछ कार्यविधि अध्ययन का भाग है।
गति अध्ययन में विभिन्न मुद्राओं की गति, जो किसी विशेष प्रकार के कार्य को करने के लिए की जाती है, का अध्ययन किया जाता है जैसा कि उठाना, रखना, बैठना या फिर स्थान बदलना आदि। अनावश्यक चेष्टाओं को समाप्त किया जाता है जिससे कि कार्य को भली-भाँति पूरा करने में कम समय लगता है। उदाहरण के लिए, टेलर एवं उसका सहयोगी फ्रैंक गिलबर्थ ईंट बनाने की चेष्टाओं को 18 से 5 तक घटा लाए। टेलर ने यह दिखा दिया कि इस प्रक्रिया को अपनाने से उत्पादकता चार गुणा बढ़ गई।
यदि शरीर की मुद्राओं का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो पता लगेगा कि-
विभिन्न मुद्राओं की पहचान करने के लिए टेलर ने स्टॉपवाच, विभिन्न चिह्नों एवं रंगों का प्रयोग किया, गति अध्ययन की सहायता से टेलर ऐसे उपकरण डिजाइन करने में सफल रहा जो श्रमिकों को उनके प्रयोग के संबंध में शिक्षित करने में उपयुक्त थे। इसके जो परिणाम निकले वह वास्तव में अद्भुत थे।
भली-भाँति परिभाषित कार्य को पूरा करने के लिए यह मानक समय का निर्धारण करता है। कार्य के प्रत्येक घटक के लिए समय मापन विधियों का प्रयोग किया जाता है। कई बार माप कर पूरे कार्य का मानक समय निश्चित किया जाता है। समय अध्ययन की पद्धति कार्य की मात्र एवं बारंबारता, परिचालन की समय चक्र एवं समय मापन की लागत पर निर्भर करेगी। समय अध्ययन का उद्देश्य कर्मियों की संख्या का निर्धारण, उपयुक्त प्रेरक योजनाओं को तैयार करना एवं श्रम लागत का निर्धारण करना है। उदाहरण के लिए बार-बार के अवलोकन से यह तय किया गया कि एक कार्ड बोर्ड के बक्से को तैयार करने के लिए एक कर्मचारी का मानक समय 20 मिनट है। इस प्रकार से एक घंटे में वह तीन बक्से तैयार करेगा। यह मानकर चलते हैं कि एक श्रमिक एक पारी में 8 घंटे कार्य करता है। जिसमें से एक घंटा दोपहर के भोजन एवं आराम का निकाल देते हैं। इस प्रकार से तीन बक्से प्रति घंटे की दर से सात घंटे के कार्य में वह इक्कीस बक्से तैयार करेगा। अब यह एक कर्मी का मानक कार्य हुआ। इसके अनुसार मजदूरी का निर्धारण किया जाएगा।
कोई भी व्यक्ति कार्य करते-करते शारीरिक रूप से एवं मानसिक रूप से थकान अनुभव करने लगेगा। समय-समय पर आराम मिलने पर व्यक्ति आंतरिक बल पुनः प्राप्त कर लेगा तथा पूर्व क्षमता से कार्य कर सकेगा। इससे उत्पादकता में वृद्धि होगी। थकान अध्ययन किसी कार्य को पूरा करने के लिए आराम के अंतराल की अवधि एवं बारंबारता का निर्धारण करता है। उदाहरण के लिए, किसी संयंत्र में सामान्यतः आठ घंटे की एक पारी के हिसाब से तीन पारियों में कार्य होता है। यदि कार्य एक पारी में हो रहा है तो श्रमिक को भोजन आदि के लिए कुछ आराम का समय देना होगा। यदि कार्य भारी शारीरिक श्रम वाला है तो श्रमिक को कई बार थोड़ी-थोड़ी अवधि का आराम देना होगा। जिससे कि उसकी ऊर्जा की क्षतिपूर्ति हो जाए और वह अपना अधिकतम योगदान दे सके।
थकान के कई कारण हो सकते हैं जैसे लंबे कार्य के घंटे, अनुपयुक्त कार्य करना, अपने अधिकारी से संबंधों में माधुर्य की कमी अथवा कार्य की खराब परिस्थितियाँ आदि। अच्छे कार्य निष्पादन में आने वाली अड़चनों को दूर कर देना चाहिए।
टेलर विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली का जबरदस्त पक्षधर था। वह कुशल एवं अकुशल कारीगर में अंतर करना चाहता था। मानक अवधि एवं अन्य मानदंड का ऊपर वर्णित कार्य-अध्ययन के आधार पर निर्धारण करना चाहिए। कारीगरों को इन प्रमापों के आधार पर कुशल एवं अकुशल वर्गों में बाँटा जा सकता है। वह चाहता था कि कुशल कर्मचारियों को पारितोषिक मिलना चाहिए। इसलिए उसने प्रमापित कार्यों को पूरा करने के लिए भिन्न तथा प्रमापित से कम करने पर भिन्न मजदूरी दर प्रारंभ की। उदाहरण के लिए यह निर्धारित किया गया कि मानक उत्पादन प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 10 इकाई है एवं जो इस मानक को प्राप्त कर लेंगे अथवा इससे अधिक कार्य करेंगे उनको 50 रुपए प्रति इकाई से मजदूरी मिलेगी जबकि इससे नीचे कार्य करने पर 40 रुपए प्रति इकाई से मजदूरी प्राप्त होगी। इस प्रकार से एक कुशल कर्मचारी को 11×50 = 550 रुपए प्रतिदिन भुगतान मिलेगा जबकि अकुशल कर्मचारी, जिसने इकाई तैयार की है, को 9 ×40 = 360 रुपए प्रतिदिन मिलेगा।
टेलर के अनुसार 190 रुपए का अंतर एक अकुशल कर्मचारी के लिए कार्य को और अधिक श्रेष्ठता से करने के लिए पर्याप्त अभिप्रेरक है। अपने स्वयं के अनुभव से टेलर ने "ैबीउपकप" नाम के कर्मचारी का उदाहरण दिया है जो बैथलेहम स्टील में कार्य करता था। उसने, वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकों के अनुसार कार्य करते हुए प्रतिदिन बॉक्स-कार में कच्चे लोहे के लदान में 12-5 टन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से बढ़ाकर 47 टन प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन वृद्धि कर दी जिससे आय में 1-15 डॉलर से 1-85 डॉलर वृद्धि होने से 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकों पर एक बार फिर से निगाह डालना महत्त्वपूर्ण होगा क्योंकि यह कार्यकुशलता, टेलर के सभी तरीकों को एकीकृत कर संपूर्णता लिए हुए है। कार्यकुशलता की खोज के लिए एक सर्वश्रेष्ठ पद्धति की खोज करनी होती है तथा चयन की गई पद्धति दिन के उचित कार्य के निर्धारण में सहायक होती है। जो दिन के उचित कार्य को पूरा कर लेते हैं अथवा उससे भी अधिक कर लेते हैं उनको दूसरों से अलग से मानने के लिए क्षतिपूर्ति की प्रणाली होनी चाहिए। यह विभेदात्मक पद्धति इस धारणा पर आधारित होनी चाहिए कि कार्यकुशलता प्रबंधक एवं श्रमिक दोनों के संयुक्त प्रयत्न का परिणाम होती है। इसलिए उन्हें आधिक्य में हिस्सेदारी पर विवाद नहीं करना चाहिए बल्कि उत्पादन को सीमित रखने के स्थान पर उसमें वृद्धि करने के लिए पारस्परिक सहयोग करना चाहिए। स्पष्ट है कि टेलर के विचारों का सार/वैज्ञानिक प्रबंध के तकनीक एवं सिद्धांतों के अलग-अलग वर्णन में नहीं है, बल्कि मानसिक धारणा के परिवर्तन में है जिसे ‘मानसिक क्रांति’ कहते हैं। मानसिक क्रांति कर्मचारी एवं प्रबंध के एक दूसरे के प्रति व्यवहार में परिवर्तन को कहते हैं अर्थात् प्रतियोगिता के स्थान पर सहयोग। दोनों को समझना चाहिए कि उन्हें एक दूसरे की आवश्यकता है दोनों के लक्ष्य आधिक्य में वृद्धि करना होना चाहिए। इससे किसी भी प्रकार के आंदोलन की आवश्यकता नहीं होगी। प्रबंध को आधिक्य के कुछ भाग को कर्मचारियों के बीच बाँटना चाहिए। कर्मचारियों को भी अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिए जिससे कि कंपनी अधिकाधिक लाभ कमाएँ। यह दृष्टिकोण दोनों पक्ष एवं कंपनी के हित में होगा। दीर्घ काल में कर्मचारियों की भलाई ही व्यवसाय की समृद्धि को सुनिश्चित करेगी।
हम वैज्ञानिक प्रबंध की वर्तमान स्थिति की भी जाँच कर सकते हैं। वर्तमान युग में वैज्ञानिक प्रबंध के क्रम में कई नयी तकनीकों का विकास किया गया है। युद्ध सामग्री की अधिकतम तैनाती के लिए परिचालन अनुसंधान (ऑपरेशन्स रिसर्च) का विकास किया गया। इसी प्रकार से टेलर ने क्रमिक संयोजन की खोज की जिसका फोर्ड मोटर कंपनी ने जनसाधारण के लिए ‘मॉडल टी’ के विनिर्माण में सफलतापूर्वक प्रयोग किया। इस अवधारणा का अब बहुत अधिक प्रयोग हो रहा है। वैज्ञानिक प्रबंध में एकदम नया विकास विनिर्माण है। आजकल उत्पादन एवं अन्य व्यावसायिक गतिविधियों में रोबोट्स एवं कंप्यूटर का उपयोग किया जा रहा है। इन क्रियाओं का यह वैज्ञानिक प्रबंध स्वरूप है। इससे उत्पादन स्तर में वृद्धि हुई है। परिचालन अनुसंधान के तकनीकों का विकास किया गया है तथा वैज्ञानिक प्रबंध के कारण इनका उपयोग किया जा रहा है।
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