आंग्ल विधि के सन्दर्भ में सुविधाधिकार (Easements) का अर्थ है - 'एक व्यक्ति का दूसरे की भूमि पर अधिकार'।

परिचय

'सुविधाधिकार' शब्द फ्रेंच अथवा नॉर्मन उद्भव का प्रतीत होता है। सुविधाधिकार संभवत: उतना ही प्राचीन है जितना संपत्ति का अधिकार है। इसकी पहली परिभाषा 'Termes de Laley' नामक पुस्तक में दी गई है।

हिंदू और मुस्लिम दोनों कानूनों की पुस्तकों में सुविधाधिकारों की चर्चा मिलती है परंतु ब्रिटिश भारत के न्यायालय इनको लागू नहीं करते थे हालाँकि ऐसे व्यक्तिगत कानूनों को वे लागू कर सकते थे जो न्याय, साम्य और स्वच्छ अंत:करण के विरुद्ध नहीं थे या जो रूढ़ि अथवा प्रथा का रूप धारण कर चुके थे। भारत की भिन्न स्थिति को देखते हुए अंग्रेजी कानून के नियमों को भी यहाँ लागू नहीं किया जा सकता था। इसलिए भारत में, शुरू-शुरू में ही, इस विषय पर संहिताकृत कानून की आवश्यकता अनुभव की गई। सन्‌ 1882 में भारतीय सुविधाधिकार कानून पास किया गया। यह कानून मुख्यत: ह्विटले स्टोक्स के मसौदे पर आधारित था। आरंभ में यह कानून केवल मद्रास, कुर्ग और मध्य प्रांत (अब मध्य प्रदेश) ही में लागू किया गया परंतु समय-समय पर इसे अन्य क्षेत्रों में लागू किया जाता रहा। सुविधाधिकार विधेयक पास होने से पूर्व सुविधाधिकार संबंधी कानून इंडियन लिमिटेशन ऐक्ट 1877, में शामिल था।

भारतीय सुविधाधिकार विधेयक में सुविधाधिकार की यह परिभाषा दी गई है:

'यह अधिकार जो किसी भूमि के स्वामी अथवा अधिभोक्ता को उस भूमि के लाभकारी उपयोग के लिए किसी ऐसी भूमि में अथवा ऐसी भूमि पर या उसके संबंध में दिया गया है जो उसकी नहीं है-कुछ करने का अधिकार अथवा करते रहने का अधिकार या कुछ करने से रोकने का अधिकार अथवा रोके रहने का अधिकार।'

जिस भूमि के लाभकारी उपयोग के लिए यह अधिकार दिया जाता है उसे सुविधाधिकारी भूमि कहते हैं -उस भूमि के स्वामी अथवा अधिभोक्ता को सुविधाधिकारी स्वामी कहते हैं। जिस भूमि पर यह दायित्व लागू होता है उसे सुविधाभारित भूमि और उसके स्वामी अथवा अधिभोक्ता को सुविधाभारित स्वामी कहते हैं। 'क' नामक एक मकान-मालिक को 'ख' की भूमि पर जाकर वहाँ से अपने इस्तेमाल के लिए एक सोते से पानी लेने का अधिकार है- यह सुविधाधिकार कहलाएगा।

विविध प्रकार

सुविधाधिकार सकारात्मक हो सकता है अथवा नकारात्मक- यह निरंतर हो सकता है अथवा सविराम। सुविधाभारित भूमि पर कुछ करने का अधिकार करते रहने का अधिकार सकारात्मक सुविधाधिकार है-इस पर कुछ करने से रोकने का अधिकार अथवा रोके रहने का अधिकार नकारात्मक सुविधाधिकार है। निरंतर सुविधाधिकार वह है जिसका उपभोग अथवा निरंतर उपभोग मनुष्य द्वारा कुछ किए बिना ही होता रहता है जैसे रोशनी पाने का अधिकार। सविराम सुविधाधिकार वह है जिसके उपयोग के लिए मनुष्य का सक्रिय सहयोग अनिवार्य है, जैसे गुजरने के लिए रास्ते का उपयोग।

सुविधाधिकार प्रत्यक्ष हो सकता है अथवा अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष सुविधाधिकार वह है जिसमें इसके अस्तित्व का कोई दिखाई देने वाला स्थायी चिन्ह हो। अगर ऐसा कोई दिखाई देने वाला चिन्ह नहीं है, तो सुविधाधिकार अप्रत्यक्ष होगा।

सुविधाधिकार स्थायी हो सकता है अथवा नियतकालिक अथवा नियतकालिक बाधायुक्त। सुविधाधिकार केवल विशेष स्थान अथवा विशेष समय के लिए या किसी विशेष उद्देश्य के लिए भी हो सकता है।

सुविधाधिकार की प्राप्ति अभिव्यक्त अथवा ध्वनित अनुदान से हो सकती है या लंबे अर्से तक इसके उपयोग से हो सकती है; चिरभोग से हो सकती है अथवा इसके रूढ़ि बन जाने से हो सकती है। जहाँ सुविधाधिकार आवश्यक हो, वहाँ कानून ध्वनित सुविधाधिकार स्वीकार करता है, जैसे एक इमारत की अदला बदली या विभाजन के फलस्वरूप अगर इसे दो या दो से अधिक अलग हिस्सों में विभाजित किया जाए और इन हिस्सों में से कोई एक इस स्थिति में हो कि उसे जब तक अन्य हिस्सों पर कोई विशेषाधिकार नहीं दे दिया जाता, तब तक उसका सदुपयोग नहीं हो सकता, तो इस विशेषाधिकार चिरभोग को कानून स्वीकार करेगा और इसे ध्वनित विशेषाधिकार कहेंगे। चिरभोग द्वारा विशेषाधिकार की स्वीकृति के लिए यह अनिवार्य है कि पिछले बीस वर्ष से बगैर किसी बाधा के इस अधिकार का उपयोग किया गया हो। सुविधाधिकारी और सुविधाभारित के बीच हुए समझौते के फलस्वरूप अगर किसी अधिकार का उपभोग किया गया है तो उससे चिरभोग सुविधाधिकार की प्राप्ति नहीं होती। ऐसी बाधा से जिसे सुविधाधिकारी ने एक वर्ष तक मौन स्वीकृति न दी हो या ऐसी बाधा से जिसे सुविधाधिकारी और सुविधाभारित के बीच हुए समझौते में स्वीकार किया गया हो, उपभोग की निरंतरता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और इस तरह चिरभोग द्वारा सुविधाधिकार की प्राप्ति में कोई रुकावट नहीं पड़ती।

रूढ़ि द्वारा सुविधाधिकार की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि रूढ़ि प्राचीन, एकरूप और युक्तिसंगत हो। उसका निरंतर शांतिपूर्वक और खुलेआम उपभोग होता रहा हो।

रूढ़ि संबंधी सुविधाधिकारों अथवा अभिव्यक्त अनुदान से उत्पन्न सुविधाधिकारों को छोड़कर बाकी सुविधाधिकारों और सुविधाभारित स्वामियों के लिए भारतीय सुविधाधिकार विधेयक में कुछ सामान्य कर्तव्य और अधिकार निर्धारित किए गए हैं, जैसे सुविधाधिकारी को अपने अधिकार का उपभोग उस ढंग से करना चाहिए जो सुविधाभारित स्वामियों के लिए कम से कम दुर्भर हो; सुविधाधिकार के उपभोग के कर्म के फलस्वरूप अगर सुविधाभारित संपत्ति इत्यादि को कोई क्षति पहुँचती है, तो जहाँ तक संभव हो सुविधाधिकारों को उसकी पूर्ति करनी चाहिए।

विधेयक के अंतर्गत सुविधाधिकारी स्वामी से यह अधिकार छीन लिया गया है कि वह सुविधाधिकारी के रास्ते में डाली गई अनुचित बाधाओं का स्वयं शमन कर दे।

सुविधाधिकार की समाप्ति, निर्मुक्ति अथवा अन्यर्पण अथवा नियत अवधि की समाप्ति पर हो सकती है। इसके अतिरिक्त इससे संलग्न समाप्ति अवस्था के उत्पन्न हो जाने पर भी इसकी समाप्ति हो सकती है। आवश्यकता संबंधी सुविधाधिकार की समाप्ति उस आवश्यकता की समाप्ति पर हो सकती है जिसके लिए यह सुविधाधिकार दिया गया था।

सुविधाधिकारी संपत्ति के लाभकारी उपयोग के लिए ही सुविधाधिकार दिया जाता है, इसलिए सुविधाभारित स्वामी को इसे चालू रखने की माँग करने का अधिकार नहीं है।

अंग्रेजी कानून में परस्वभोग वर्ग में अधिकारों को स्वीकार किया गया है। भारतीय कानून में ऐसा नहीं है।

परस्वभोग अधिकार वे हैं जो पड़ोसी भूमि के लाभों में भाग लेने से संबद्ध हैं, जैसे चरागाह के अधिकार या शिकार अथवा मछली पकड़ने का अधिकार।

इन्हें भी देखें

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