हरीतकी
पौधे की प्रजाति / From Wikipedia, the free encyclopedia
हरीतकी[2] (वानस्पतिक नाम:Terminalia chebula) एक ऊँचा वृक्ष होता है एवं भारत में विशेषतः निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल-आसाम तक पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है। हिन्दी में इसे 'हरड़' और 'हर्रे' भी कहते हैं। आयुर्वेद ने इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों से जाना जाता है। हरड़ का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है। [3] इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर लम्बे, डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे, पीताभ श्वेत लंबी मंजरियों में होते हैं। फल एक से तीन इंच तक लंबे और अण्डाकार होते हैं, जिसके पृष्ठ भाग पर पाँच रेखाएँ होती हैं। कच्चे फल हरे तथा पकने पर पीले धूमिल होते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। अप्रैल-मई में नए पल्लव आते हैं। फल शीतकाल में लगते हैं। पके फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल के मध्य किया जाता है।
टर्मिनेलिया चेब्यूला | |
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बक्सा बाघ अभयारण्य, जलपाइगुड़ी जिळा, पं.बं. में पत्ते-विहीन वृक्ष | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
विभाग: | मैग्नोलियोफाइटा |
वर्ग: | मैग्नोलियोप्सीडा |
गण: | Myrtales |
कुल: | Combretaceae |
वंश: | Terminalia |
जाति: | T. chebula |
द्विपद नाम | |
Terminalia chebula Retz. | |
पर्यायवाची[1] | |
Walp.
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कहा जाता है हरीतकी की सात जातियाँ होती हैं। यह सात जातियाँ इस प्रकार हैं: 1. विजया 2. रोहिणी 3. पूतना 4. अमृता 5. अभया 6. जीवन्ती तथा 7. चेतकी।[4]
हर के सेवन से समस्त रोगों का नाश होता है इसके सेवन से रक्त मांस अस्थि ताकतवर होते हैं। वीर में वृद्धि होती है। इसके लगातार सेवन से बाल काले हो जाते हैं। सूंघने की क्षमता में वृद्धि होती है और आंखें जल्दी खराब नहीं होती है ।.