स्वामी हरिदास (1480-1575) भक्त कवि[1], शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। वे प्राचीन शास्त्रीय संगीत के अद्भुत विद्वान एवम् चतुष् ध्रुपदशैली के रचयिता हैं। प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे। अकबर इनके दर्शन करने वृन्दावन गए थे। ‘केलिमाल’ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं। इनकी वाणी सरस और भावुक है।

स्वामी हरिदास का जन्म 1480 में हुआ था( सम्बत 1537। इनका जन्म स्थान। राजपुर ग्राम , वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) इनका जन्म स्थान माना जाता है।इनका जन्म संवत 1537 भाद्रपद शुक्ल आष्टमी बुधवार को हुआ, माता, चित्रा हैं और पिता गंगाधर हैं ।

ये महात्मा वृन्दावन में सखी संप्रदाय के संस्थापक थे और अकबर के समय में एक सिद्ध भक्त और संगीत-कला-कोविद माने जाते थे। कविताकाल सन् 1543 से 1560 ई. ठहरता है। प्रसिद्ध गायनाचार्य तानसेन इनका गुरूवत् सम्मान करते थे।

यह प्रसिद्ध है कि अकबर बादशाह साधु के वेश में तानसेन के साथ इनका गाना सुनने के लिए गया था। कहते हैं कि तानसेन इनके सामने गाने लगे और उन्होंने जानबूझकर गाने में कुछ भूल कर दी। इसपर स्वामी हरिदास ने उसी गाना को शुद्ध करके गाया। इस युक्ति से अकबर को इनका गाना सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। पीछे अकबर ने बहुत कुछ पूजा चढ़ानी चाही पर इन्होंने स्वीकार नहीं की।

यह शिलालेख पश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित श्री राधा कृष्णा भजन आश्रम के दिवार पर सन 1953 में वृन्दावन के निम्बार्क टाटिया स्थान, ललित कुञ्ज से दीक्षित विरक्त हरिदासीय संत श्री स्वामी श्री श्री 1008 श्री श्याम चरण दास जी महाराज द्वारा आश्रम के स्थापना के समय लगाया गया था। यह शिलालेख उस आश्रम के स्थापना के तिथि तथा वृन्दावन के संबंधों को दर्शाता है। इस से स्पष्ट होता है कि दिनांक 27 अक्टूबर 1953 को ही इस आश्रम का स्थापना स्वामी श्याम चरण दास जी महाराज द्वारा किया गया था।

हरिदासीय आश्रम (कोलकाता)

निम्बार्क सखी संप्रदाय एवं स्वामी हरिदास परंपरा के अंतर्गत एक स्थान पश्चिम बंगाल राज्य में कोलकाता के 14, ऑर्फनगंज रोड, कोलकाता - 700 023, थाना - वाटगंज के क्षेत्र में (कोलकाता नगर निगम का वार्ड संख्या 74) भी है जिसे "श्री राधा कृष्ण भजन आश्रम" के नाम से वृन्दावन के निम्बार्क टाटिया स्थान, ललित कुञ्ज से दीक्षित विरक्त हरिदासीय संत श्री स्वामी श्री श्री 1008 श्री श्याम चरण दास जी महाराज ने सन 1953 में स्थापित किया था। माना जाता है कि हरिदासीय परंपरा का यह आश्रम पश्चिम बंगाल के राज्य में और कहीं नहीं है। पश्चिम बंगाल में इस परंपरा से सम्बंधित यह एकमात्र स्थान है।

माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी की यह परंपरा लगभग 543 वर्षों पुराना है। जिनमें श्री स्वामी हरिदास जी महाराज ने श्रीधाम वृन्दावन में भगवान बांकेबिहारी जी को प्रकट किया था। स्वामी श्याम चरण दास जी इन्हीं की परंपरा के 18 वीं पीढ़ी के महंत श्री राधा चरण दास जी महाराज, टाटिया स्थान श्रीधाम वृन्दावन के परम कृपापात्र शिष्य थे। स्वामी श्याम चरण दास जी एक विरक्त संत थे व उनके गुरु श्री राधा चरण दास जी के ही आज्ञा से उन्होंने कोलकाता स्थित इस दिव्य एवं भव्य स्थान की स्थापना की थी।

  1. सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार एवं उत्तर भारत से वहां आने वाले संत वैष्णवजनों के ठहरने की उचित व्यवस्था हेतु ही उक्त आश्रम का निर्माण किया गया था। जिसमें यह स्थान मुख्य रूप से मकर संक्रांति को समर्पित था जो उत्तर भारत के हिन्दू एवं वैष्णवों के लिए आस्था का पर्व है माना जाता है और इस पर्व के शुभ अवसर पर उस क्षेत्र से आने वाले हमारे संत-महात्मा वहां ठहरते थे। क्योंकि यह स्थान गंगा घाट (आदि गंगा ) के किनारे स्थित था, पधारे संत महात्माओं के लिए बहुत अनुकूल था और स्वंय श्याम चरण दास जी इस स्थान का देख-रेख बहुत ही श्रद्धा के साथ करते रहे।
  2. स्वामी श्याम चरण दास जी का देहावसान : दिनांक 04 जुलाई 1987 में स्वामी श्याम चरण दास जी के दीर्घकालीन अस्वस्थता के कारण कोलकाता के सीएमआरआई में प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व देहांत हो जाने बाद से ही इस स्थान का देख-रेख तथा रख-रखाव कठिन हो गया तथा आश्रम का बहुत ही दयनीय अवस्था हो जाने के कारण यहाँ एक योग्य तथा विरक्त परंपरा से नियुक्त किये गए संत की बहुत आवश्यकता आन पड़ी।
  3. विग्रह : इस आश्रम का मुख्य आकर्षण यहाँ का मुख्य विग्रह है जो आश्रम के केंद्र में विराजमान है। यह निम्बार्कीय विग्रह अपने-आप में अद्वितीय तथा अद्भुत
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    ऑर्फनगंज रोड, कोलकाता - 700023, थाना वाटगंज स्थित श्री राधा कृष्ण भजन आश्रम के केंद्र में विराजमान यह विग्रह बहुत पुराना तथा बहुमूल्य है। इस आकर्षक विग्रह का निर्माण, बनावट, आकार, प्रकार, इत्यादि श्रीधाम वृन्दावन के निम्बार्कीय तथा हरिदासीय होने का प्रमाण है।
    है। बहुमूल्य राधा-कृष्ण का यह विग्रह उस ज़माने उन्हीं हरिदासीय परंपरा के निम्बार्कीय संप्रदाय द्वारा इसी प्रकार से बनाया जाता था। उसके आकर, प्रकार, प्रकृति, बनावट, ढांचा, रचना, इत्यादि से स्पष्ट समझा जा सकता है कि ऐसा विग्रह किस ज़माने में बनाया जाता था एवं किस परंपरा द्वारा इन विग्रहों का इस प्रकार से निर्माण किया जाता था। लगभग 1902 का निर्मित यह विग्रह बहुत ही सुन्दर एवं आकर्षक है तथा इसकी सुरक्षा तथा संरक्षण स्थानीय सरकार के लिए बहुत ही गंभीर चुनौती का विषय है। जिसको कहते हैं कि कासी बाबू खेड़िया के पिताजी श्री दुली चंद खेड़िया जी ने बनवाया। उन विशेष विग्रह के निर्माण के समय श्री स्वामी श्याम चरण दास जी महाराज उन दिनों वृन्दावन में तीन महीना रहे, और रह कर बनवाया था।
  4. गोरक्षा आंदोलन : 14, ऑर्फ़न गंज रोड स्थित इस भजन आश्रम का सर्वप्रथम गौ रक्षा आंदोलन सन 1953 में महा अनंत श्री श्री 1008 संकीर्तन मूर्ति श्री श्याम चरण दास जी महाराज के नेतृत्व में हुआ था। वर्ष 1962 में महानन्त श्री विभूषित श्री करपात्री जी महाराज, वर्तमान शंकराचार्य जी के पीठ से जगतगुरु स्वरूपानंद जी महाराज जी के उपस्थिति में यहाँ से गौ रक्षा का दूसरा आंदोलन हुआ। फिर 1967 में महामंडलेश्वर श्री श्री गंगेश्वर आनंद जी महाराज (अहमदाबाद गुजरात वेद मंदिर), श्री श्री रामचन्द्र जी वीर (राजस्थान), श्री श्री जगतगुरु पुरुषोत्तम आचार्य जी महाराज (सुग्रीव किला, अयोध्या), श्री श्री वल्लभाचार्य जी महाराज (मुम्बई), माता ललिताम्बा जी (हरिद्वार), जगतगुरु श्री श्री भगवान दास जी महाराज (श्रीधाम वृंदावन), श्री श्री ओंकार नंद जी महाराज (नागपुर), श्री श्री महामंडलेश्वर कृष्णानंद जी महाराज (सत्संग भवन, मालापाडा, कोलकाता) जो अहमदाबाद से थे, श्री श्री बाल ब्रह्मचारी जी महाराज (सोदपुर, कोलकाता), कठिया बाबा सोदपुर आश्रम (कोलकाता), अनंत श्री श्री विभूषित महामंडलेश्वर सदानंद जी महाराज गीता मंदिर (अहमदाबाद), श्री विद्यासागर द्विवेदी (कोलकाता), श्री राम प्रसाद राजगिरिया (कोलकाता), श्री सोहन लाल जी दूगड़ (कोलकाता), रुकमा नंद जी पोद्दार (कोलकाता), तथा अन्य स्थानीय विशिष्ट महानुभावों के उपस्थिति में तीसरा आंदोलन हुआ। उपरोक्त सभी कार्यक्रम महा अनंत श्री श्री 1008 श्री स्वामी श्याम चरण दास जी महाराज के नेतृत्व में हुए थे तथा उन सभी कार्यक्रमों में वर्तमान जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज तथा करपात्री जी महाराज की भी प्रत्यक्ष उपस्थिति थी। ये तो रहे गोरक्षा आंदोलन के वृतांत, वहीं दूसरी तरफ, बाबा ने यहां रह कर न जाने कितने हजार शिष्य बनाये, कई भव्य धार्मिक कार्यक्रम किए और स्थानीय समाज हेतु अनगिनत कल्याण कार्य किया, जिसका कोई लेखाजोखा नहीं और न वर्णन करना संभव है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में आनेजाने पर परंतु इनके योगदानों, संबंधों और आश्रम से जुड़े कई अद्भुत परोपकार, धार्मिक कार्यक्रम तथा कई अनोखी कहानी व किस्सों का पुराने लोगों के वर्णनों से विशाल तथा भव्य साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

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