औद्योगिक क्रांति
तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में बदलाव आना / From Wikipedia, the free encyclopedia
अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बड़ा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला प्रारम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया।[1]
औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ।जिसमे रोजगार, निवेश की गयी पूँजी और उत्पादित माल का मूल्य आदि की दृष्टि से वस्त्र उद्योग ही औद्योगिक क्रांति का सबसे प्रमुख उद्योग था। वस्त्र उद्योग में ही सबसे पहले उत्पादन की 'आधुनिक' विधियों का उपयोग हुआ।[2] इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने भाप की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी। विभिन्न इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं और इसके समाज पर प्रभाव के विषय में भी मतैक्य नहीं है। [3]कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं।
इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि पिछले दो वित्तीय वर्षों यानी वित्त वर्ष 2019-20 और वित्त वर्ष 2020-21 के लिए धुबरी और पांडु के बीच ब्रह्मपुत्र में न्यूनतम उपलब्ध गहराई 2.2 मीटर थी। हाल की एलएडी रिपोर्ट के अनुसार, यह गहराई जनवरी, 2022 khanabdulमें और कम होकर 1.5 मीटर तक आ गई। चिलमारी से दाइखावा तक, बिटवा ने 2.2 मीटर की आवश्यक गहराई की पुष्टि की।