काशी
भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक / From Wikipedia, the free encyclopedia
काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे संसार के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है। भारत की यह जगत्प्रसिद्ध प्राचीन नगरी गंगा के वाम (उत्तर) तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगा संगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्राय: चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर इस नगरी की स्थिति है। इस नगर का प्राचीन 'वाराणसी' नाम लोकोच्चारण से 'बनारस' हो गया था जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय रूप से पूर्ववत् 'वाराणसी' कर दिया है। जिसके राजा राज ऋषि राम कोल नागवंशीय थे
काशी | |
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महानगर व तीर्थस्थल | |
बायें से दक्षिणावर्त: अहिल्या घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर, नया काशी विश्वनाथ मंदिर, गंगा नदी, वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रवेशद्वार, बीच में बनारसी साड़ी (ऊपर), काशी करवट-सिंधिया घाट, (नीचे) | |
निर्देशांक: 25.319°N 83.012°E / 25.319; 83.012 | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
जिला | वाराणसी जिला |
शासन | |
• प्रणाली | नगर निगम |
• सभा | वाराणसी नगर निगम |
क्षेत्र | 82 किमी2 (32 वर्गमील) |
• महानगर | 163.8 किमी2 (63.2 वर्गमील) |
ऊँचाई | 80.71 मी (264.80 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• महानगर व तीर्थस्थल | 12,12,610 |
• महानगर | 14,32,280 |
वासीनाम | बनारसी |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी, भोजपुरी |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 221 001 से 221 0xx |
दूरभाष कोड | 0542 |
वाहन पंजीकरण | UP-65 |
लिंगानुपात | 0.926 ♂/♀ |
साक्षरता दर | 80.31% |
एच डी आई | 0.645 |
वेबसाइट | varanasi |
विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:'। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। जहां श्रीहरिके आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। काशी में माधव गोपियो के साथ पूजे जाते हैं, इस तीर्थ का नाम गोपी गोविंद है,
इसी स्थान पर गायो को भगवान शंकर ने लिंग स्वरूप में और मां गौरी ने मूर्ति स्वरूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ साक्षात दर्शन दिए, गौओ के इस प्रकार शंकर और मा गौरी के प्रत्यक्ष दर्शन से गोप्रेक्षेश्वर नाम हुआ। ऐसी एक कथा है कि जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया, तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया।