कुलकर
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जैन धर्म में कुलकर उन बुद्धिमान पुरुषों को कहते हैं जिन्होंने लोगों को जीवन निर्वाह के श्रमसाध्य गतिविधियों को करना सिखाया।[1] जैन काल चक्र के अनुसार जब अवसर्पिणी काल के तीसरे भाग का अंत होने वाला था तब दस प्रकार के कल्पवृक्ष (ऐसे वृक्ष जो इच्छाएँ पूर्ण करते है) कम होने शुरू हो गए थे,[2] तब १४ महापुरुषों का क्रम क्रम से अंतराल के बाद जन्म हुआ। ये १४ महापुरुष ही १४ कुलकर कहलाये। अंतिम १४ वे कुलकर नाभिराज थे, जो इस हुण्डा अवसर्पिणी काल के प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता थे।