𑂛𑂴𑂯 𑂦𑂰 𑂗𑂲𑂪𑂰 𑂢𑂱𑂨𑂩 𑂮𑂁𑂩𑂒𑂢𑂰 𑂔𑂵𑂯 𑂧𑂵𑂁 𑂥𑂸𑂠𑂹𑂡 𑂪𑂷𑂏 𑂍𑂵 𑂧𑂰𑂗𑂲 𑂨𑂰 𑂍𑂸𑂢𑂷𑂁 𑂃𑂫𑂬𑂵𑂭 𑂩𑂎𑂪 𑂯𑂷𑂪𑂰 From Wikipedia, the free encyclopedia
स्तूप ढूह या टीला नियर आकृति के एगो रचना होला जवना में (आमतौर पर बौद्ध) भिक्षु या भिक्षुणी लोग के शरीर के कौनों अवशेष गाड़ल गइल रहेला। एक तरह से ई भिक्षु लोग के समाधी भा यादगार होला। ई जगह धार्मिक रूप से पबित्र मानल जाले आ आसपास के जगह ध्यान लगावे खातिर इस्तेमाल होले।
सभसे पुरान स्तूप मध्य प्रदेश में साँची स्तूप हवे। भारत के अलावा ई अउरी अइसन देस सभ में भी बनावल गइल बाने जहाँ बौद्ध धरम के परभाव बा।
स्तूप के निर्माण के सुरुआत बुद्ध के समय से पहिले से हो चुकल रहे। श्रमण लोग के बइठल अवस्था में गाड़े खातिर चैत्य के निर्माण होखे। बुद्ध के निर्वाण के बाद उनुके जरा दिहल गइल आ राख के बाँट के आठ गो ढूह में समाधी बनावल गइल आ दू गो अउरी ढूह में अस्थि-अवशेष के समाधी दिहल गइल।
सभसे पुरान स्तूप सभ के पुरातत्व वाली जानकारी 4थी सदी ईपू के मिलेला। बौद्ध ग्रंथ सब के मोताबिक स्तूप के निर्माण बुद्ध के मरले के एक सदी बाद शुरू भइल। इहो मानल जाला कि पहिले ई चीज लकड़ी के बनावल जाय या फिर खाली भर माटी के ढेर एकट्ठा करि के गोल टीला के आकार दे दिहल जाय। बाद में ई पक्का ईंटा के बनावल जाए लागल।
अउरी बाद में, बौद्ध धर्म के बिस्तार के बाद, ई परंपरा भारत के बाहर के देसवन में पहुँचल। उदाहरण खातिर पूर्ब एशिया के देस सभ में बने वाला पैगोडा के एही स्तूप के निरखल रूप मानल जाला।
भारत के प्रमुख स्तूप में सारनाथ में धमेक स्तूप, साँची स्तूप, भरहुत स्तूप आ अमरावती स्तूप के गिनल जाला। सभसे ऊँच स्तूप थाईलैंड में फ्रा पथोमाचेदी स्तूप बाटे जवन 127 मीटर ऊँच बाटे। एकरे अलावा पाकिस्तान के स्वात घाटी में, श्रीलंका में आ अउरी बहुत सारा देसवन में पुरान स्तूप बाड़ें। सभसे बिस्तार से बनल स्तूप बोरोबुदुर में मौजूद बाटे जवन यूनेस्को द्वारा बिस्व विरासत स्थल घोषित बाटे।
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