गुर्जर-प्रतिहार राजवंश
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गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन एवं मध्यकालीन दौर के संक्रमण काल में साम्राज्य स्थापित करने वाला एक राजवंश था जिसके शासकों ने मध्य-उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर मध्य-८वीं सदी से ११वीं सदी के बीच शासन किया। इस राजवंश का संस्थापक प्रथम नागभट्ट था, जिनके वंशजों ने पहले उज्जैन और बाद में कन्नौज को राजधानी बनाते हुए एक विस्तृत भूभाग पर शासन किया।[1] नागभट्ट द्वारा ७२५ ईसवी में साम्राज्य की स्थापना से पूर्व भी गुर्जर-प्रतिहारों द्वारा मंडोर, मारवाड़ इत्यादि इलाकों में सामंतों के रूप में ६ठीं से ९वीं सदी के बीच शासन किया गया किंतु एक संगठित साम्राज्य के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय नागभट्ट को जाता है।
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गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य | |||||||||||||||||||||
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८वीं शताब्दी–१०३६ ई० | |||||||||||||||||||||
अपने सर्वाधिक क्षेत्रविस्तार के समय गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य (हरे रंग में) | |||||||||||||||||||||
Status | साम्राज्य | ||||||||||||||||||||
राजधानी | कन्नौज | ||||||||||||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | संस्कृत, प्राकृत | ||||||||||||||||||||
धर्म | हिन्दू | ||||||||||||||||||||
सरकार | राजतंत्र | ||||||||||||||||||||
ऐतिहासिक युग | पूर्व-मध्यकालीन भारत | ||||||||||||||||||||
• स्थापित | ८वीं शताब्दी | ||||||||||||||||||||
१००८ ई० | |||||||||||||||||||||
• अंत | १०३६ ई० | ||||||||||||||||||||
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अब जिस देश का हिस्सा है | भारत |
उमय्यद ख़िलाफ़त के नेतृत्व में होने वाले अरब आक्रमणों का नागभट्ट और परवर्ती शासकों ने प्रबल प्रतिकार किया। कुछ इतिहासकार भारत की ओर इस्लाम के विस्तार की गति के इस दौर में धीमी होने का श्रेय इस राजवंश की सबलता को देते हैं। दूसरे नागभट्ट के शासनकाल में यह राजवंश उत्तर भारत की सबसे प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गया था। मिहिर भोज और उसके परवर्ती महेन्द्रपाल प्रथम के शासन काल में यह साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा और इस समय इस साम्राज्य की सीमाएँ पश्चिम में सिंध से लेकर पूर्व में आधुनिक बंगाल तक और हिमालय की तलहटी से नर्मदा पार दक्षिण तक विस्तृत थीं। यह विस्तार मानों गुप्तकाल के अपने समय के सर्वाधिक राज्यक्षेत्र से स्पर्धा करता हुआ सा था। इस विस्तार ने तत्कालीन भारतीय उपमहाद्वीप में एक त्रिकोणीय संघर्ष को जन्म दिया जिसमें गुर्जर-प्रतिहारों के अलावा राष्ट्रकूट और पाल वंश शामिल थे। इसी दौरान इस राजवंश के राजाओं ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
गुर्जर-प्रतिहार विशेषकर शिल्पकला के लिए जाने जाते हैं। इनके शासन काल में उत्कीर्ण पटलों वाले और खुले द्वारांगन वाले मंदिरों का निर्माण हुआ। इस शैली का चरमोत्कर्ष हमें खजुराहो के मंदिरों में देखने को मिलता है जिन्हें आज यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल किया जा चुका है।
प्रतिहारों की शक्ति राज्य के लिए आपसी संघर्ष के चलते क्षीण हुई। इसी दौरान इनकी शक्ति और राज्यक्षेत्र में पर्याप्त ह्रास की वज़ह राष्ट्रकूट राजा तृतीय इन्द्र का आक्रमण भी बना। इन्द्र ने लगभग ९१६ में कन्नौज पर हमला करके इसे ध्वस्त कर दिया। बाद में अपेक्षाकृत अक्षम शासकों के शासन में प्रतिहार अपनी पुरानी प्रभावशालिता पुनः नहीं प्राप्त कर पाए। इनके अधीन सामंत अधिकाधिक मज़बूत होते गए और १०वीं सदी आते आते अधीनता से मुक्त होते चले गये। इसके बाद प्रतिहारों के पास गंगा-दोआब के क्षेत्र से कुछ ज़्यादा भूमि राज्यक्षेत्र के रूप में बची। आख़िरी महत्वपूर्ण राजा राज्यपाल को महमूद गजनी के हमले के कारण १०१८ में कन्नौज छोड़ना पड़ा। उसे चंदेलों ने पकड़ कर मार डाला और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को एक प्रतीकात्मक राजा के रूप में राज्यारूढ़ करवाया। इस वंश का अंतिम राजा यशपाल था जिसकी १०३६ में मृत्यु के बाद यह राजवंश समाप्त हो गया।