शल्कपंखी
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शल्कपंखी या लेपिडॉप्टेरा (Lepidoptera), कीटों का एक विशाल गण है, जिसमें तितलियाँ एवं शलभ (moths) के अतिरिक्त बहुत से कीट सम्मिलित हैं। कीटों के वर्गीकरण के लिए लेपिडॉप्टेरा शब्द का उपयोग सर्वप्रथम लिनिअस (Linnaeus) ने किया। यह शब्द लैटिन के लेपिडॉस (lepidos = शल्क) तथा टिरॉन (pteron = पंख) के मिलने से बना है। इस गण में अनुमानतः 174,250 प्रजातियाँ हैं।
शल्कपंखी Lepidoptera | |
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एक तितली और एक पतंगा | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | युआर्थ्रोपोडा (Euarthropoda) |
अश्रेणीत: | पैनक्रस्टेशिया (Pancrustacea) |
उपसंघ: | षटपाद (Hexapoda) |
वर्ग: | इन्सेक्टा (Insecta) |
गण: | शल्कपंखी (Lepidoptera) लीनियस, 1758 |
उपगण | |
इस गण के कीटों की पहचान बड़ी सरल है। तितलियों ने सुंदर होने के कारण मनुष्य का ध्यान सदा से अपनी ओर आकर्षित किया है। सुंदरता के कारण ही मनुष्य तितलियों को अपने संग्रहालय में रखने के लिए लालायित रहता है। इनके पक्ष तथा लगभग संपूर्ण शरीर शल्कों से ढके रहते हैं, अत: इन्हें शल्किपक्षा भी कहते हैं। जब हम इन कीटों को पकड़ते हैं, तो हमारी अँगुलियों पर कुछ धूल सी चिपक जाती है। यदि इस धूल को सूक्ष्मदर्शी से देखा जाए, तो ज्ञात होगा कि यह धूल नहीं अपितु अनेक शल्क हैं। इन शल्कों का एक निश्चित आकार होता है। लेपिडॉप्टेरा की जिह्वा घड़ी की कमानी के आकार की होती है, जिससे ये अपना भोजन चूसते हैं। इनमें पूर्ण रूपांतरण होता है। इनके डिंभ इल्ली (caterpillar) कहलाते हैं। प्यूपा रेशम से बने कोए में या मिट्टी की कोष्ठिका में रहता है। तितलियों और शलभों की लगभग १,२०,००० जातियाँ अभी तक ज्ञात हो चकी हैं। इनमें से लगभग २०,००० जातियाँ भारत में पाई जाती हैं। यह गण मनुष्य की सबसे अधिक हानि पहुँचाता है। सदस्यों की अधिकतम संख्या की दृष्टि से इस गण का स्थान दूसरा है।