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इलैक्ट्रॉनिक्स
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विज्ञान के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉनिक्स, वैद्युतकशास्त्र, अथवा इलेक्ट्रॉनिकी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का वह क्षेत्र है जो विभिन्न प्रकार के माध्यमों (निर्वात, गैस, धातु, अर्धचालक, नैनो-संरचना आदि) से होकर आवेश (मुख्यतः इलेक्ट्रॉन) के प्रवाह एवं उन पर आधारित युक्तिओं का अध्ययन करता है। [1]

प्रौद्योगिकी के रूप में इलेक्ट्रॉनिकी वह क्षेत्र है जो विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों (प्रतिरोध, संधारित्र, इन्डक्टर, इलेक्ट्रॉन ट्यूब, डायोड, ट्रान्जिस्टर, एकीकृत परिपथ (IC) आदि) का प्रयोग करके उपयुक्त विद्युत परिपथ का निर्माण करने एवं उनके द्वारा विद्युत संकेतों को वांछित तरीके से बदलने (manipulation) से संबंधित है। इसमें तरह-तरह की युक्तियों का अध्ययन, उनमें सुधार तथा नयी युक्तियों का निर्माण आदि भी शामिल है।
ऐतिहासिक रूप से इलेक्ट्रॉनिकी एवं वैद्युत प्रौद्योगिकी का क्षेत्र समान रहा है और दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं माना जाता था। किन्तु अब नयी-नयी युक्तियों, परिपथों एवं उनके द्वारा सम्पादित कार्यों में अत्यधिक विस्तार हो जाने से एलेक्ट्रानिक्स को वैद्युत प्रौद्योगिकी से अलग शाखा के रूप में पढाया जाने लगा है। इस दृष्टि से अधिक विद्युत-शक्ति से सम्बन्धित क्षेत्रों (पावर सिस्टम, विद्युत मशीनरी, पावर इलेक्ट्रॉनिकी आदि) को विद्युत प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत माना जाता है जबकि कम विद्युत शक्ति एवं विद्युत संकेतों के भांति-भातिं के परिवर्तनों (प्रवर्धन, फिल्टरिंग, मॉड्युलेश, एनालाग से डिजिटल कन्वर्शन आदि) से सम्बन्धित क्षेत्र को इलेक्ट्रॉनिकी कहा जाता है।
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इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी के भाग
सारांश
परिप्रेक्ष्य
परिपथों के आधार पर इलेक्टानिक प्रौद्योगिकी को मुख्यतः दो भागों में बांटकर अध्ययन किया जाता है:
एनालाग इलेक्ट्रॉनिकी
इन परिपथों में विद्युत संकेत सतत (अनालॉग) होते हैं और उनका प्रसंस्करण करने के बाद भी वे सतत ही बने रहते हैं। उदाहरण के लिये ट्रान्जिस्टर-प्रवर्धक एक एनालाग सिस्टम है। ऑपरेशनल एम्प्लिफायर के विकास एवं आई-सी के रूप में इसकी उपलब्धता से एनालाग एलेक्ट्रानिक्स में एक क्रान्ति आ गयी।
डिजिटल या अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी
इसमें विद्युत संकेत अंकीय होते हैं। अंकीय संकेत बहुत तरह के हो सकते हैं किन्तु बाइनरी डिजिटल संकेत सबसे अधिक उपयोग में आते हैं। शून्य/एक, ऑन/ऑफ, हाँ/नहीं, लो/हाई आदि बाइनरी संकेतों के कुछ उदाहरण हैं। जबसे एकीकृत परिपथों (इन्टीग्रेटेड सर्किट) का प्रादुर्भाव हुआ है और एक छोटी सी चिप में लाखों करोंड़ों इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ भरी जाने लगीं हैं तब से डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है। आधुनिक व्यक्तिगत कम्प्यूटर Archived 2023-11-29 at the वेबैक मशीन (पीसी) तथा सेल-फोन, डिजिटल कैमरा आदि डिजिटल इलेक्ट्रॉनिकी की देन हैं। अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी ने सिगनल-प्रोसेसिंग को एक नया आयाम दिया है जिसे डिजिटल सिग्नल प्रोसेसिंग (अंकीय संकेत प्रक्रमण) कहते हैं। एनालाग सिगनल प्रोसेसिंग की तुलना में यह बहुत ही सुविधाजनक व प्रभावकारी है।
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इलेक्ट्रॉनिकी का इतिहास
सारांश
परिप्रेक्ष्य
इलेक्ट्रॉनिकी का आधुनिक रूप रेडियो एवं दूरदर्शन के विकास के रूप में सामने आया। साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध में प्रयुक्त रक्षा उपकरणों एवं रक्षा-तन्त्रों से भी इसका महत्त्व उभरकर सामने आया। किन्तु इलेक्ट्रॉनिकी की नीव बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी।
इलेक्ट्रॉनिकी के विकास की मुख्य घटनायें एवं चरण संक्षेप में इस प्रकार हैं:
- १८८३ - थॉमस अल्वा एडिसन ने पाया कि निर्वात में इलेक्ट्रान धातु के एक चालक से दूसरे चालक में प्रवाहित हो सकते हैं। बाद में इसी सिद्धान्त पर निर्वात डायोड और ट्रायोड बने।
- १८९३ में निकोलाई टेस्ला द्वारा रेडियो संचार का प्रदर्शन
- १८९६ में मारकोनी ने रेडियो संचार का व्यावहारिक प्रदर्शन करके दिखाया।
- १९०४ में जॉन अम्ब्रोस फ्लेमिंग ने पहला डायोड बनाया जिसे रेडियो ट्यूब कहा गया।
- १९०६ में रॉबर्ट बान लीबेन और ली डी फारेस्ट ने स्वतन्त्र रूप से ट्रायोड का निर्माण किया जो प्रवर्धक (एम्प्लिफायर) का काम करने में सक्षम थी। इसी के साथ इलेक्ट्रॉनिकी के विकास का दौर आरम्भ हुआ। इलेक्ट्रान ट्यूबों का पहला उपयोग रेडियो संचार में हुआ।
- १९४७ में बेल प्रयोगशाला में कार्यरत विलियम शाक्ले ने ट्रांजिस्टर का आविष्कार किया। इस आविष्कार के फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनिकी निर्वात-नलिका पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों से हटकर एक नये युग में प्रवेश कर गयी। अब छोटे-छोटे रेडियो आने लगे।
- १९५९ में एकीकृत परिपथ का आविष्कार हुआ। इसके पहले इलेक्ट्रॉनिक परिपथ अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों को जोड़कर बनाये जाते थे जिससे अधिक जगह घेरते थे, अधिक सविद्युत शक्ति लेते थे, विश्वसनीयता कम थी। आई-सी के पदार्पण ने नयी सम्भावनायें खोल दीं। आधुनिक पीसी, एवं मोबाइल आदि आई-सी के आविष्कार के बिना इतने छोटे, सस्ते एवं इतने कार्यक्षम नहीं हो सकते थे।
- १९६८ में माइक्रोप्रोसेसर का विकास (इन्टेल में कार्यरत मार्सिअन हॉफ (Marcian Hoff) द्वारा)
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सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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