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भोयरी

या पवारी, बैतूल, छिंदवाड़ा, पांढुर्णा और वर्धा जिलों में बोली जाने वाली राजस्थानी मालवी की एक बोल विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

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भोयरी या पवारी मध्य भारत की एक इंडो-आर्यन बोली है, जिसे विशेष रूप से क्षत्रिय पवार (पवार/भोयर पवार) जाती के लोग बोलते हैं। यह राजस्थानी मालवी भाषा की एक उपभाषा है। मुख्य रूप से यह बोली मध्य प्रदेश के बैतूल, छिंदवाड़ा, पांढुरना और महाराष्ट्र के वर्धा जिलों में पवार जाती के लोगों द्वारा बोली जाती है। यही भाषा पवार जाती के लोग राजस्थान और मालवा में अपने मूल निवास स्थान पर बोला करते थे। 16वीं से 18वीं शताब्दी के बीच, पवार जाति राजस्थान और मालवा से सतपुड़ा और विदर्भ क्षेत्रों की ओर पलायन कर गई और मुख्य रूप से बैतूल, छिंदवाड़ा, पांढुरना और वर्धा जिलों में बस गई। यह भाषा केवल पवार जाती के लोगों द्वारा बोली जाती है; अन्य जातियों के लोग इसे नहीं बोलते, जो पवारों के राजस्थान और मालवा से जुड़े होने का स्पष्ट प्रमाण है। [1][2][3][4][5][6][7][8][9][10][11][12]

वर्तमान में, इस राजस्थानी मालवी की उपभाषा पर बुंदेली, निमाड़ी और मराठी भाषाओं का थोड़ा-बहुत प्रभाव है। बैतूल, छिंदवाड़ा और पांढुरना जिलों में बोली जाने वाली पवारी पर बुंदेली का हल्का प्रभाव है, जबकि वर्धा जिले में इस पर मराठी का अधिक प्रभाव है। बैतूल, छिंदवाड़ा और पांढुरना जिलों की पवारी को सबसे शुद्ध माना जाता है, क्योंकि यह अन्य भाषाओं से अधिक प्रभावित नहीं है और इसमें केवल हल्का बुंदेली प्रभाव है। जबकि वर्धा जिले की पवारी मराठी से थोड़ा अधिक मिश्रित है। इसलिए, बैतूल, छिंदवाड़ा और पांढुरना की पवारी को अधिक प्रतिष्ठित और शुद्ध माना जाता है।[13][2][14][15][16][6][7][8][9][10][11][12]

पवारों के स्थान परिवर्तन के बावजूद, उन्होंने अपनी शुद्ध राजस्थानी मालवी भाषा को बनाए रखा है। कुछ विद्वानों के अनुसार, पवारी भाषा राजस्थानी मालवी की एक उपभाषा रंगड़ी की उपभाषा है, जिसमें मारवाड़ी, मेवाड़ी और गुजराती भाषाओं का हल्का मिश्रण है। यह पवारों के राजस्थान और मालवा से जुड़े होने का एक और प्रमाण है। यह न केवल उनके मूल स्थान को राजस्थान और मालवा साबित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भौगोलिक परिवर्तन और पूरी तरह से अलग संस्कृति और भाषा वाले लोगों के बीच रहने के बावजूद उन्होंने अपनी भाषा को कितनी अच्छी तरह संरक्षित किया है।[17][2][18][19][20][6][7][8][9][10][11][12]

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कुछ प्रसिद्ध शब्द

  • अखाड़ी - साल का पहला त्योहार |  
  • अलाव - तापने के लिए जलाया गया
  • अम्बाड़ी - सन प्रजाति का पौधा।  
  • अधाड़ घर - घर के बीच का भाग |
  • अधेला - उत्पादन का आधा।
  • अघाड़ी - आगे।
  • अघाना - तृप्त होना।
  • अंधड़ - आंधी।
  • अंगोछा - कंधे पर डालने वाला कपड़ा।
  • अरन पपय - पपीता।
  • अरण्डी - तिलहन |
  • अलोनी - नमक कम होना ।
  • अरबट - हठीला।  
  • अन्नाई को ढेकना - ऊधमी |
  • अष्टी चंगा - एक प्रकार का खेल |
  • अर्रना - चिल्लाना।
  • अवलट - उल्टा।
  • अंटी - गॉठ |
  • चंची -- कई जेब वाली कपड़े की थेली |
  • चरचराना - तेल सूखने के कारण चके की आवाज |
  • आटय - बुनना,बनाना
  • उकलय - खोलना। उपसना - निकालना।
  • रोण्टाई - धोखाधड़ी,गलत,छल |
  • सई - सेवई |
  • होम - हवन,पूजा |
  • होला - हरे भूने चने |
  • हाका - आवाज |
  • उभारनी - गाड़ी में लगी लकड़ी |
  • उबारा - आग की ज्वाला।
  • कागूर - पूर्वजों का पूजन पर्व।
  • खरय - फसल का ढेर
  • खखार - कफ ।
  • खाखरी - कटी टहनी
  • खिचड़ा - गेहूँ की खीर।
  • खीसा (सं) - जेब।
  • खुपसना - घुसाना।
  • खोड्या - दूसरे वर्ष की गन्ना बाड़ी |
  • खोर - जिसमें झूले में बच्चे को सुलाना |
  • गाटा - कीचड़ |
  • गाभा - पेड़ का कोमल भाग ।
  • गाव्हय - फसल निकालना।
  • गुहान - सार,जानवरों के चारा डालने का स्थान |
  • गुड़भात्या - फलदान |
  • घाना - गन्ने पेरने का कोल्हू।
  • घुंगरी - गेहूँ को उबालकर खाना।
  • चाटू - लकड़ी का चम्मच |
  • साजरी - अच्छी |
  • साजरो - अच्छा।
  • सामट - संकरी गली।
  • सुवारी - पूरी,पूड़ी |
  • सिलकय - दर्द होना।
  • छाबय - मिट॒टी से छाबना।
  • छाबना - खुदे घर,दीवार आदि को गीली मिट्टी लगाकर
  • ठीक करना।
  • छेना - कंडा।
  • जप - नींद।
  • जप - नींद।
  • जड़ - आगे की ओर भार का अधिक होना ।
  • जनवासा - बारात को ठहराने का स्थान |
  • जीवती - एक त्योहार
  • झट - ठोकर |
  • झिल्पा - लकड़ी के छोटे टुकड़े।
  • झोड़पा - पतली लकड़ी |
  • टिटवी - कुए की मिट्टी निकालने के लिए बैल हॉकना |
  • टिब्बा - ऊँचा स्थान।
  • भिलवा - एक प्रकार का फल।
  • भिंगरी - फिरकी |
  • भिन्‍नाय - आवेश में आना।
  • भीर - कुँआ।
  • भीत - दीवार ।
  • भूरसी - भूरी।
  • छबेला - बांस की कमची का बना ढक्‍्कन।
  • साटा - गन्ना
  • टोरी - महू का बीज
  • ठसक - मिर्ची आदि के जलने पर छींक आना |
  • ठसका - सूखी खांसी,खाते समय गले में अटकने पर
  • खांसना |
  • डगर नी जानूँ - छेड़ना नहीं ।
  • डंगेला - बोनी के पूर्व बखरना ।
  • डांड - पानी की नाली।
  • डीग - गोंद ।
  • डुकय - चुपचाप देखना ।
  • डुक्कर - सुअर ।
  • डुंगी - नीचला काला खेत।
  • डेंडू - केचुआ।
  • डोभन - पानी भरा गड्ढा |
  • डोभरी - पानी वाला खेत।
  • ढर्रा - पुरातनपंथी |
  • ढेपल्या - मिट्टी का ढेला।
  • ढेर - बहुत।
  • ढोर डंगर -- ढोर जानवर |
  • ढोडूर - सूखे तने में बना छेद |
  • ढोना -- जानवर के गले में बंधा टीन का घंटा।
  • ढोमना - मिट्टी की तश्तरी |
  • चीनवो-जानना
  • तढू - बिछायत |
  • तरथी - हथेली ।
  • तरिया - चप्पल |
  • तनफन - बात बात पर नाराज |
  • तिरपाल -+- टेंट।
  • तिराहित - पराया।
  • तोरा - तुम्हारा
  • तुमड़ी - लम्बी लौकी ।
  • थप्पी - अनाज का ढेर।
  • दरना - पिसाई किया।
  • दंगस - घास - फूस |
  • दराती - हसिया।
  • दायजा - दहेज ।
  • दावन - फसल से अन्न निकालना,
  • देवड़ी - पार,मिट्‌टी की बनी ऊँची बैठने की जगह |
  • देठ - डंठल |
  • दोभड़ी - दूब।
  • धुपार - दोपहर |
  • धुड़ला - धूल।
  • धौलो - न सफेद न भूरा।
  • नवतो - नया।
  • नरवट्‌टू - नारियल की खोल।
  • उन्हारा - हिवारा - गर्मी - सर्दी।
  • उम्बी - गेंहूँ की बाली।
  • भेदरा - छोटे खट्टे टमाटर।
  • मसना - आटा गूँथना।
  • रबना - काम करना,खपना |
  • हेवा - ईर्ष्या |
  • हेवा हिसकी - ईर्ष्याद्वेष |
  • निसानी - सीढ़ी ।
  • निसय - छिलना।
  • नोन तेल - नमक तेल |
  • परची - सिलगी,आग जलना।
  • पचड़ा - झमेला |
  • पस - मवाद |
  • पचपावली - महाशिवरात्रि।
  • पाई - अनाज नापने का एक सेर के बराबर का माप।
  • पाव्हना - मेहमान |
  • पालथी -- आसन |
  • पेरय - गन्ने का रस निकालना |
  • पेज - पतली दलिया।
  • पोला - बैलों का त्योहार ।
  • बइल - बैल |
  • बनिहार - मजदूर |
  • बरबस - झूठमूठ |
  • बगदा - बारीक भूसी।
  • बाहुड़ला - भुजलिए |
  • बाहयड़ो - चितकबरा |
  • बोक्या - बिल्ला |
  • भयसी - भैस |
  • बोम्लय - चिल्लाना |
  • भाकर - रोटी।
  • भिलवा - एक प्रकार का फल।
  • भिंगरी - फिरकी |
  • भिन्‍नाय - आवेश में आना।
  • भीर - कुँआ।
  • भीत - दीवार ।
  • भूरसी - भूरी।
  • होला - हरे भूने चने |[21]


पवारी पहेलियाँ ( पहलोड़ी)

  • खाल का भीतर बाल, बाल का भीतर दाना।
  • ऊप्पर सी गिरय धुम्म, तुम खाओ चुम।
  • दिखना म गॉठ-गठीला, खाना म खूब रसीला |
  • पत्थर ऊप्पर पानी बरसय, पत्थर ऊप्पर पैसा |
  • बिन पानी को महल बनायो,कारीगर वो कैसा |
  • माय चबरी, बेटी झबरी |
  • हरी थी मन भरी थी, लाल मोती जड़ी थी।
  • राजाजी का बाग म धुस्सा ओढ़ खड़ी थी।
  • एक थाली म दो अंडा, एक गरम एक ठंडा |
  • एकच्‌ जीव असली, न हड्डी,न पसली |


  • दो चलय,चार मिलय।
  • लाल गाय, लकड़ी खाय |
  • पानी ख देक्ख चमकत जाय।
  • नजर बचा ख ऊप्पर जाय।
  • मोती बन्ख, नीच्च आवय |
  • दिखना म्‌ नाटा,शरीर भर कॉटा।
  • भइया भरय एक बार,भाभी भरय बार-बार |
  • पेड़ न पत्ता, ऊप्पर बड़ो छत्ता |
  • मॉस न खून, कान देख ख्‌ सून ।
  • हाथ म हिरवो, मुंढा म्‌ लाल |
  • कांधा आवय, कांधा जाय, नेंग नेंग म पीट्यो जाय |
  • एक कुआं म घाट हजार,घाट-घाट प चौकीदार ।
  • एक डाक्टर रात म आवय,बिन पूछ्या सुई लगावय |
  • फूक सी बूझत नी, माचिस सी जलत नी।
  • एक पेड़ म्‌ एकच्‌ पत्ता |
  • दादा अऊर पोता एक रात म्‌ जन्मय |
  • टेडी-मेढ़ी बॉसुरी, बजावन वालो कोन,
  • बाई चली सासु घर्‌ह मनावन वालो कोन। [22]
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