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लक्ष्मण

श्रीराम के छोटे और सबसे प्रिय भाई, शेषनाग के अवतार विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

लक्ष्मण
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भगवान लक्ष्मण रामायण के एक आदर्श पात्र हैं। इनको शेषनाग का अवतार माना जाता है। रामायण के अनुसार, राजा दशरथ के तीसरे पुत्र थे, उनकी माता सुमित्रा थी। वे भगवान राम के छोटे भाई थे । इनकी पत्नी उर्मिला थी जो की सीता की छोटी बहन थी । इन दोनों भाईयों राम-लक्ष्मण में अपार प्रेम था। उन्होंने राम-सीता के साथ १४ वर्षों का वनवास भोगा था | कौशल्या और कैकेयी इनकी सौतेली माता थीं | इन सभी चारों भाइयों की एक बड़ी बहन जो कौशल्यानंदिनी देवी शांता थी । उनके अन्य भाई भरत और शत्रुघ्न थे। भगवान लक्ष्मण हर कला में निपुण थे, चाहे वो मल्लयुद्ध हो या धनुर्विद्या। यद्यपि भारत में भगवान लक्ष्मण जी का अलग सा मंदिर विरल या बहुत कम है । क्युकी मंदिरों में श्री राम तथा सीता जी के साथ सदैव लक्ष्मण जी की भी पूजा होती है। भगवान लक्ष्मण जी की विशेष पूजा में उन्हें नीलकमल पुष्प अर्पित करना चाहिए । अपने परिश्रम से कमाए हुए धन का छोटा सा भाग या चाँवल के कुछ दाने श्रद्धा और विश्वास से भगवान लक्ष्मण को अर्पित करने से अपने भक्त की सदैव रक्षा करते हैं । [1][2]

सामान्य तथ्य लक्ष्मण, अन्य नाम ...
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जन्म

लक्ष्मण के जन्म के समय सूर्य ने सुबह कर्क राशि में प्रवेश किया व चंद्रमा ने रात को अश्लेष नक्षत्र में।[3]

नामकरण

लक्ष्मण का नामकरण, संत वशिष्ठ ने जन्म के १२वें दिन किया था।[4]

आदर्श भाई

भगवान लक्ष्मण एक आदर्श अनुज हैं। राम को पिता ने वनवास दिया किंतु लक्ष्मण राम के साथ स्वेच्छा से वन गमन करते हैं - ज्येष्ठानुवृति, स्नेह तथा धर्मभाव के कारण। श्रीराम के साथ उनकी पत्नी सीता के होने से उन्हें आमोद-प्रमोद के साधन प्राप्त है किन्तु लक्ष्मण जी ने समस्त आमोदों का त्याग कर केवल सेवाभाव को ही अपनाया। वास्तव में लक्ष्मण जी का वनवास श्रीराम के वनवास से भी अधिक महान है। लक्ष्मण जी सीता स्वयंवर में अपने बड़े भाई राम पर परशुराम के क्रोध को स्वयं में समाहित कर लिए थे, और वाद- विवाद में परशुराम के क्रोध और घमंड को चकनाचूर कर दिये थे । जिसमें लक्ष्मण जी का तर्क था की शिवधनुष के लिए अगर परशुराम प्रहार करेंगे तो श्री राम की रक्षा के लिए लक्ष्मण भी प्रहार करेंगे । यह प्रसंग आज के आधुनिक युग में बहुत सार्थक सिद्ध होती है की हमें अपने से अधिक शक्तिशाली लोगों के दबाव में नहीं रहना चाहिए और जहाँ विरोध करना स्वभाविक हो अवश्य विरोध करना चाहिए ।

प्रसिद्ध श्लोक - श्री राम बिन सुनी अयोध्या ,लक्समन बिन ठकुरायी |

भाई के लिये बलिदान की भावना का आदर्श

अपने बाल्यकाल से श्रीराम की परछाई बने रहने की परीक्षा तब सामने आयी जब श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ । यद्यपि भगवान लक्ष्मण को वनवास नहीं हुआ था परंतु वे फिर भी वन को साथ गए थे । इसके अतिरिक्त दुर्वाशा ऋषि के आगमन पर श्री राम के वचन बंधन के कारण लक्ष्मण जी को मृत्यु दण्ड मिला तब राजदरबार में हनुमान जी के परामर्श पर श्री राम ने मृत्युदण्ड के स्थान पर लक्ष्मण जी का त्याग किया । परंतु लक्ष्मण जी ने बड़े भाई के वचन का मान रखने के लिए सरयू नदी में जलसमाधि ले ली थी । वाल्मीकि रामायण के अनुसार दानव कबंध से युद्ध के अवसर पर लक्ष्मण राम से कहते हैं, "हे राम! इस कबंध दानव का वध करने के लिये आप मेरी बलि दे दीजिये। मेरी बलि के फलस्वरूप आप सीता तथा अयोध्या के राज्य को प्राप्त करने के पश्चात् आप मुझे स्मरण करने की कृपा बनाये रखना।"

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सदाचार का आदर्श

सीता की खोज करते समय जब मार्ग में सीता के आभूषण मिलते हैं तो राम लक्ष्मण से पूछते हैं "हे लक्ष्मण! क्या तुम इन आभूषणों को पहचानते हो?" लक्ष्मण ने उत्तर में कहा "मैं न तो बाहों में बंधने वाले केयूर को पहचानता हूँ और न ही कानों के कुण्डल को।मैं तो प्रतिदिन माता सीता के चरण स्पर्श करता था। अतः उनके पैरों के नूपुर को अवश्य ही पहचानता हूँ।" सीता के पैरों के सिवा किसी अन्य अंग पर दृष्टि न डालने सदाचार का आदर्श है। [5]

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वैराग्य और धर्म की मूर्ति

बड़े भाई के लिये चौदह वर्षों तक पत्नी से अलग रहना वैराग्य का आदर्श उदाहरण है। यद्यपि भगवान लक्ष्मण को अत्यधिक भ्राताप्रेमी होने का आरोप लगाया जाता है परंतु भगवान लक्ष्मण धर्मयोगी और निष्पक्ष थे । और इसका प्रमाण उनके जीवनकाल के कई घटनाओं को तर्कपूर्ण विचार करने से ज्ञात होता है । जैसे माता सीता के अग्निपरीक्षा के समय श्री राम पर उनका क्रोध और विद्रोह करना उनके निष्पक्षता को प्रमाणित करता है । अपनी पत्नी उर्मिला को वन के कष्टों से दूर रख राजकुमारी की तरह अयोद्धा में छोड़ना, 14 वर्ष के वनवास काल में ब्रम्हचर्य का पालन करना उनकी सच्चे प्रेम की निशानी है । अपनी माताओं के सेवा हेतु पत्नी उर्मिला को अयोद्धा में छोड़ना मातृप्रेम को दर्शाता है । मेघनाथ (इंद्रजीत) जैसे योद्धा जिसने स्वयं लक्ष्मण सहित राम और हनुमान को भी युद्ध में पराजित किया था, उस योद्धा से दो बार पराजित होने के बाद भी युद्ध करना और विजय प्राप्त करना भगवान लक्ष्मण की निडरता, सामर्थता और श्रेष्ठ युद्धकौशल को इंगित करता है ।

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लक्ष्मण के वंशज

सारांश
परिप्रेक्ष्य

लक्ष्मण के अंगद तथा चन्द्रकेतुमल्ल नामक दो पुत्र हुये जिन्होंने क्रमशः अंगदीया पुरी तथा कुशीनगर की स्थापना की। चन्द्रकेतु मल्ल युद्ध में निपुण थे इसलिए चन्द्रकेतु द्वारा शासित राज्य को 'मल्ल देश' या 'मल्ल भूमि' या 'मल्ल राष्ट्र' कहा जाने लगा। और यही बाद में मल्ल महाजनपद नाम से जाना जाने लगा। मल्लों की दो शाखाएँ थीं। एक की राजधानी कुशीनारा थी जो वर्तमान कुशीनगर है तथा दूसरे की राजधानी पावा थी जो वर्तमान फाजिलनगर है। देश के राजा महाराज विश्वसेन के वंशज राजा भीम मल्ल ने सन् १३०० के आसपास मझौली राज की स्थापना की और ये मल्ल कुल चन्द्रकेतु के वंशज हैं और अपना उपनाम 'मल्ल विशेन' लिखते हैं मल्ल उपनाम के लोग भारत के उत्तर प्रदेश,बिहार, उत्तराखंड सहित नेपाल में निवास करते हैं और महाराज विश्वसेन के नाम से बने यह क्षत्रिय समाज विशेन क्षत्रिय कहलाते हैं। [उद्धरण चाहिए] गुर्जर-प्रतिहार वंश की उत्पत्ति पर चर्चा करने वाला 837 CE का जोधपुर शिलालेख है, यह भी वंश का नाम बताता है, जैसा कि प्रतिहार लक्ष्मण से पूर्वजों का दावा करते हैं, जिन्होंने अपने भाई रामचंद्र के लिए द्वारपाल के रूप में काम किया था। इसका चौथा श्लोक कहता है,

[6][7]

मनुस्मृति में, प्रतिहार शब्द, एक प्रकार से द्वारपाल या देश की रक्षक शब्द का पर्यायवाची है. [उद्धरण चाहिए] वे सूर्यवंशी वंश के क्षत्रिय हैं। लक्ष्मण के पुत्र अंगद, जो करपथ (राजस्थान और पंजाब) के शासक थे, इस राजवंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिचंद्र प्रतिहार का उल्लेख है (590 AD).[उद्धरण चाहिए]

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सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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