शीर्ष प्रश्न
समयरेखा
चैट
परिप्रेक्ष्य

वाग्भट

विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

Remove ads

वाग्भट नाम से कई महापुरुष हुए हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है:

वाग्भट (१)

सारांश
परिप्रेक्ष्य

आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टांगसंग्रह तथा अष्टांगहृदय के रचयिता। प्राचीन संहित्यकारों में यही व्यक्ति है, जिसने अपना परिचय स्पष्ट रूप में दिया है। अष्टांगसंग्रह के अनुसार इनका जन्म सिंधु देश में हुआ। इनके पितामह का नाम भी वाग्भट था। ये अवलोकितेश्वर गुरु के शिष्य थे। इनके पिता का नाम सिद्धगुप्त था। यह सनातन धर्म में विश्वास करते थे। इत्सिंग ने लिखा है कि उससे एक सौ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने ऐसी संहिता बनाई जिसें आयुर्वेद के आठो अंगों का समावेश हो गया है। अष्टांगहृदय का तिब्बती भाषा में अनुवाद हुआ था। आज भी अष्टांगहृदय ही ऐसा ग्रंथ है जिसका जर्मन भाषा में अनुवाद हुआ है।

गुप्तकाल में पितामह का नाम रखने की प्रवृत्ति मिलती है : चंद्रगुप्त का पुत्र समुद्रगुप्त, समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त (द्वितीय) हुआ।

ह्वेन्साँग का समय 675 और 685 शती ईसवी के आसपास है। वाग्भट इससे पूर्व हुए हैं। वाग्भट की भाषा में कालिदास जैसा लालित्य मिलता है। छंदों की विशेषता देखने योग्य है (संस्कृत साहित्य में आयुर्वेद, भाग 3.)। वाग्भट का समय पाँचवीं शती के लगभग है। ये ऋषि थे, यह बात ग्रंथों से स्पष्ट है (अष्टांगसग्रंह की भूमिका, अत्रिदेव लिखित)। वाग्भट नाम से व्याकरण शास्त्र के एक विद्वान् भी प्रसिद्ध हैं। वराहमिहिर ने भी बृहत्संहिता में (अध्याय 76) माक्षिक औषधियों का एक पाठ दिया है। यह पाठ अष्टांगसंग्रह के पाठ से लिया जान पड़ता है (उत्तर. अ. 49)। रसशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ रसरत्नसमुच्चय का कर्ता भी वाग्भट कहा जाता है। इसके पिता का नाम सिंहगुप्त था। पिता और पुत्र के नामों में समानता देखकर, कई विद्वान् अष्टांगसंग्रह और रसरत्नसमुच्चय के कर्ता को एक ही मानते हैं परंतु वास्तव में ये दोनों भिन्न व्यक्ति हैं (रसशास्त्र, पृष्ठ 110)। वाग्भट के बनाए आयुर्वेद के ग्रंथ अष्टांगसंग्रह और अष्टांगहृदय हैं। अष्टांगहृदय की जितनी टीकाएँ हुई हैं उतनी अन्य किसी ग्रंथ की नहीं। इनन दोनों ग्रंथों का पठन पाठन अत्यधिक है।

अन्य कृतियाँ

वाग्भट को अनेक अन्य आयुर्वेद ग्रन्थों का भी रचयिता माना जाता है।

  • रसरत्नसमुच्चय
  • अष्टाङ्गहृदयवैद्यूर्यकभाष्य -- अष्टाङ्गहृदयम का स्वरचित भाष्य
  • अष्टाङ्गहृदयदीपिका (भाष्य ग्रन्थ)
  • हृदयटिप्पण
  • अष्टाङ्गनिघण्टु
  • अष्टाङ्गसार
  • अष्टाङ्गावतार
  • भावप्रकाश
  • द्वादशार्थनिरूपण
  • कालज्ञान
  • पदार्थचन्द्रिका
  • शास्त्रदर्पण
  • शतश्लोकी
  • वाग्भट
  • वाग्भटीय
  • वाहटनिघण्टु
  • वमनकल्प
Remove ads

वाग्भट (२)

वाग्भटालंकार के रचयिता जैन संप्रदाय के विद्वान्। प्राकृत भाषा में इनका नाम "वाहट" था और ये "सोम" के पुत्र थे। इनके ग्रंथ के टीकाकार सिंहगणि के कथानुसार ये कवींद्र, महाकवि और राजमंत्री थे। ग्रंथ में उदाहृत पद्य ग्रंथकार द्वारा प्रणीत हैं जिसमें कर्ण के पुत्र जयसिंह का वर्णन किया गया है। वाग्भट का काल प्राप्त प्रमाणों के अधार पर 1121 से 1156 तक निश्चित है।

वाग्भटालंकार में कुल पाँच परिच्छेद हैं। प्रथम चार परिच्छेदों में काव्यलक्षण, काव्यहेतु, कविसमय, शिक्षा, काव्योपयोगी संस्कृत आदि चार भाषाएँ, काव्य के भेद, दोष, गुण, शब्दालंकार, अर्थालंकार और वैदर्भी आदि रीतियों का सरल विवेचन है। पाँचवें परिच्छेद में नव रस, नायक एवं नायिका भेद आदि का निरूपण है। इन्होंने चार शब्दालंकार और 35 अर्थालंकारों को मान्यता दी है। वाग्भटालंकार सिंहगणि की टीका के साथ काव्यमाला सीरीज से मुद्रित एवं प्रकाशित है।

Remove ads

वाग्भट (३)

काव्यानुशासन नामक ग्रंथ के रचयिता। इनका समय लगभग 14वीं सदी ई. हैं। इनके पिता का नाम नेमिकुमार और माता का नाम महादेवी था। यह ग्रंथ सूत्रों में प्रणीत है जिसपर ग्रंथकार ने ही "अलंकार तिलक" नाम की टीका भी की है। टीका में उदाहरण दिए गए हैं और सूत्रों की विस्तृत व्याख्या की गई है।

काव्यानुशासन पाँच अध्यायों में विभक्त है। इसमें काव्यप्रयोजन, कविसमय, काव्यलक्षण, दोष, गुण, रीति, अर्थालंकार, शब्दालंकार, रस, विभावादि का विवेचन और नायक-नायिका-भेद आदि पर क्रमबद्ध प्रकाश डाला गया है। ग्रंथकार ने अलंकारों के प्रकरण में भट्टि, भामह, दंडी और रुद्रट आदि द्वारा आविष्कृत कुछ ऐसे अलंकारों को भी स्थान दिया है जिनके ऊपर ग्रंथाकार के पूर्ववर्ती और अलंकारों के आविष्कारकों के परवर्ती मम्मट आदि विद्वानों ने कुछ भी विचार नहीं किया है। ग्रंथकार ने "अन्य" और "अपर" नाम के दो नवीन अलंकारों को भी मान्यता दी है। इस ग्रंथ का उपजीव्य काव्यप्रकाश, काव्यमीमांसा आदि ग्रंथ हैं। इन्होंने 64 अर्थालंकार और 6 शब्दालंकार माने हैं। ग्रंथ के प्रारंभ में ग्रंथकार ने स्वयं अपना परिचय दिया है और "वाग्भटालंकार" के प्रणेता का नामोल्लेख "इतिवामनवाग्भटादिप्रणीत दश काव्यगुणा:" कहकर किया है। अत: यह "वाग्भटालंकार" के प्रणेता वाग्भट से भिन्न और परवर्ती हैं।

वाग्भट (४)

नेमिनिर्वाण नामक महाकाव्य के रचयिता। ये हेमचन्द्र के समकालीन विद्वान् हैं। इनका समय ई. 1140 के लगभग है। नेमिनिर्वाण महाकाव्य में कुल 15 सर्ग हैं। जैसा नाम से ही प्रकट है, इस महाकाव्य में जैन तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के चरित्र का वर्णन किया गया है। इनकी कविता प्रसाद और माधुर्य गुणों से युक्त एवं सरस है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

Loading related searches...

Wikiwand - on

Seamless Wikipedia browsing. On steroids.

Remove ads