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वामनावतार
विष्णु का अवतार विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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श्री वामन भगवान विष्णु के अवतार है। त्रेतायुग के प्रारम्भ होने में भगवान विष्णु ने बक्सर में मां गंगा के तट पर सिद्धाश्रम स्थल पर वामन रूप में देवी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। इसीलिए इस स्थान को वामन जन्मस्थली एवम वामनाश्रम भी कहते हैं। इसके साथ ही यह भगवान विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — बालक रूपी ब्राह्मण अवतार । दक्षिण भारत में इनके मूल नाम उपेन्द्र से जाना जाता है। इनके पिता प्रजापति कश्यप थे तथा माता अदिति थीं। इनके बड़े भाई विवस्वान् , इन्द्र, वरुण , पूषा , अर्यमा , भग , धाता , पर्जन्य , अंशुमान , त्वष्टा और मित्र थे।

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उत्पत्ति

भगवान वामन ऋषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे।[1] वह आदित्यों में बारहवें थे। ऐसी मान्यता है कि वह इन्द्र के छोटे भाई थे।
कथा
सारांश
परिप्रेक्ष्य

भागवत कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का देवलोक में अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक असुर राजा बलि ने हड़प लिया था। बलि विरोचन के पुत्र तथा विष्णु भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा शक्ति के माध्यम से बलि ने त्रिलोक पर आधिपत्य पा लिया था।[2] वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बलि के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन पग भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छत्र (छाता) था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने पर भी बलि ने वामन को वचन दे डाला।

भगवान वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही पग में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे पग में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात् ब्रह्मा ने अपने कमण्डल के जल से वामन के पाँव धोये। इसी जल से गंगा उत्पन्न हुयीं।[3] तीसरे पग के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। यतः राजा बलि के दादा प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम् भक्त थे, भगवान वामन (विष्णु) ने बलि को सुुताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा पग बलि के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बलि सुताल में पहुँच गये।
एक और कथा के अनुसार वामन ने बलि के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया।[4] विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबलि की उपाधि प्रदान की क्योंकि बलि ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा सिद्ध कर दिया था। विष्णु ने महाबलि को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।[4]

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बलि का विवरन
बलि के १०० पुत्र थे. ज्येष्ठ पुत्र का नाम था बाणासुर .
प्रतीकात्मकता

वामनावतार के रूप में विष्णु ने बलि को यह पाठ दिया कि दम्भ तथा अहंकार से जीवन में कुछ नहीं मिलता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बलि प्रतिपदा पर राजा बलि धरती पर आगमन करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा सुखी रहे। [4]
रामायण में
अध्यात्म रामायण के अनुसार राजा बलि भगवान वामन के सुतल लोक में द्वारपाल बन गये[5][6] और सदैव बने रहेंगे।[7] तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है।[8]
सन्दर्भ
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