शीर्ष प्रश्न
समयरेखा
चैट
परिप्रेक्ष्य
हिरण्यकशिपु
राक्षस राजा विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
Remove ads
हिरण्यकशिपु (अंग्रेज़ी: Hiranyakashipu) एक दैत्य था जिसकी कथा पुराणों में आती है। उसका वध विष्णु अवतारी नृसिंह द्वारा किया गया। यह "हिरण्यकरण वन" नामक स्थान का राजा था৷ हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था जिसका वध वाराह रूपी भगवान विष्णु ने किया था। हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे जिनके नाम हैं प्रह्लाद , अनुहलाद , सह्ल्लाद और हल्लाद जिनमें प्रह्लाद सबसे वृद्ध और हलाद सबसे युवा था। उसकी पत्नी का नाम कयाधु और उसकी छोटी बहन का नाम होलिका था। हिरण्यकशिपु के अग्रजों के नाम वज्रांग , अरुण और हयग्रीव थे। हयग्रीव का वध हयग्रीव अवतार रूपी भगवान विष्णु ने और अरुण का वध भ्रामरी रूपी माता पार्वती ने किया था।
This article includes a list of references, but its sources remain unclear because it has insufficient inline citations. Please help to improve this article by introducing more precise citations where appropriate. (मई 2024) |

Remove ads
परिचय
सारांश
परिप्रेक्ष्य
विष्णुपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार सतयुग के अन्त में महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। दिति के बड़े पुत्र हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया।हिरण्यकशिपु के चार पुत्र थे उनके नाम थे प्रह्लाद , अनुहल्लाद , संहलाद और हल्लद थे। हिरण्यकशिपु का सबसे बड़ा पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकशिपु ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आए। वे खंभे से नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो न नर था न पशु ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र और उसका पेट चीर कर उसे मार डाला। [1] इस प्रकार हिरण्यकशिपु अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ।
Remove ads
फिल्म उल्लेख
महावतार नरसिंह फिल्म के निर्माताओं ने कथानक को आकार देने हेतु विभिन्न ऐतिहासिक और शास्त्रीय सन्दर्भों को सम्मिलित किया है—विशेषतः प्रह्लादपुरी मंदिर के खंडहर, हम्पी में स्थित पुनःस्थापित जली हुई धर्मस्थली, और अहोबिला नव नरसिंह स्वामी मंदिरों[2] जैसे पुरातात्विक स्थलों के अतिरिक्त विष्णु पुराण, नरसिंह पुराण, वराह पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण जैसे पवित्र ग्रंथों से प्रेरणा ली गई है। फिल्म की सफलता और दर्शकों से इसका गहरा जुड़ाव लेखक की पवित्र ग्रंथों के प्रति उसकी अटूट निष्ठा का प्रतिफल है।
Remove ads
नाम पर मतभेद
हिरण्यकश्यप के नाम के विषय में मतभेद है। कुछ स्थानों पर उसे हिरण्यकश कहा गया है और कुछ स्थानों पर हिरण्यकशिपु, श्रीम्दभागवत पुराण के अनुसार शुद्ध हिरण्यकशिपु है जहां "हिरण्य" का अर्थ "सोना" या "धन" है और "कशिपु" का अर्थ "नरम बिस्तर" या "आराम". ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः जन्म के समय उसका नाम हिरण्यकश्यप रखा गया किन्तु सबको प्रताड़ित करने के कारण (संस्कृत में कषि का अर्थ है हानिकारक, अनिष्टकर, पीड़ाकारक) उसको बाद में हिरण्यकशिपु से जाना गया। नाम पर जो भी मतभेद हों, उसकी मौत उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में हुई थी। इसका प्रमाण अभी भी यहाँ है और प्रतिवर्ष लाखो लोग यहाँ होलिका दहन में भाग लेते हैं।
पूर्व जन्म की कथा
सारांश
परिप्रेक्ष्य
ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष भगवान विष्णु के द्वारपाल दो भाई थे उनके नाम हैं जय और विजय । एक बार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र और भगवान विष्णु के प्रथम अवतार चार कुमार भगवान विष्णु के दर्शन करने बैकुण्ठ आए। जय और विजय ने उन्हें रोक दिया जिससे क्रोधित होकर चार कुमारों ने उन्हें श्राप दिया कि "हे मूर्खों भगवान विष्णु के साथ रहने का तुम में अभिमान हो गया है हम तुम्हें श्राप देते हैं कि तुम भगवान विष्णु से सदा के लिए दूर हो जाओगे। शोर सुनने पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी बैकुण्ठ से बाहर आए। भगवान विष्णु सब जानते थे और जय विजय से बोले कि चार कुमार ही तुम्हारे श्राप को कम कर सकते हैं क्योंकि दिया हुआ श्राप और वरदान कभी वापिस नहीं लिए जा सकते। जय विजय ने चार कुमारों से श्राप को कम करने का आग्रह किया। जिसके पश्चचात् चार कुमारों ने उन्हें दो विकल्प दिए। उन्होंने कहा कि "जय और विजय तुम या तो सात जन्म भगवान विष्णु के महान भक्त बनकर रहो जिनका नाम सदैव आदर सहित लिया जाएगा अथवा तीन जन्म भगवान विष्णु के घोर शत्रु। उन्होंने तीन जन्म भगवान विष्णु के शत्रु बनने का विकल्प चुना और कहा कि "हे चार कुमारों हम प्रभु के शत्रु बनकर तीन जन्म लेंगे ताकि हमें प्रभु से अधिक दूर ना रहना पड़े तब भगवान विष्णु ने सनकादि ऋषियों से कहा कि "ये तीन जन्म असुर जाति में रहेगे और मुझसे वैर रखते हुए भी मेरे ध्यान में लीन रहेगे मेरे द्वारा इनका सन्हार होने पर ये दोनों इस धाम में पुनः आ जाएंगे। इस श्राप के फल स्वरूप जय विजय सतयुग , त्रेता युग और द्वापर युग में असुर जाति में जन्मे।
सतयुग
सतयुग में जय हिरण्यकशिपु और विजय हिरण्याक्ष के रूप में धरती पर पैदा हुए। उस जन्म में इनके पिता महर्षि कश्यप और माता दिति थे। हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वराह के रूप में और हिरण्यकशिपु का वध नरसिंह रूप में किया।
त्रेतायुग
त्रेतायुग में जय रावण और विजय कुंभकर्ण के रूप में धरती पर पैदा हुए। उस जन्म में इनके पिता महर्षि विश्रवा और माता कैकसी थे। उस जन्म में इन दोनों का वध भगवान विष्णु ने राम रूप में किया था।
द्वापरयुग
द्वापर युग में जय का जन्म शिशुपाल के रूप में और विजय का जन्म दंतवक्र के रूप में हुआ था। उस जन्म में जय और विजय दोनों भगवान विष्णु के फुफरे भाइयों के रूप में पैदा हुआ। जय के उस जन्म के पिता राजा दंभघोष और माता सुतसुभा थे और विजय की माता का नाम श्रुतदेवी और पिता का नाम वृद्धशर्मा था। उस जन्म में इन दोनों का वध भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में किया था।
Remove ads
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Wikiwand - on
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Remove ads