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भगवान शिव को समर्पित मंत्र विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
ॐ नमः शिवाय के संबंध में डा. श्री प्रकाश बरनवाल राष्ट्रीय अध्यक्ष आध्यात्मिक परिषद् का कहना है कि यह सबसे लोकप्रिय हिन्दू मन्त्रों में से एक है और भोलेनाथ,भगवान शिव का महत्वपूर्ण मन्त्र है। नमः शिवाय का अर्थ "भगवान शिव को नमस्कार" या "उस मंगलकारी को प्रणाम!" है। इसे शिव पञ्चाक्षर मन्त्र या पञ्चाक्षर मन्त्र भी कहा जाता है, जिसका अर्थ "पाँच-अक्षर का मन्त्र" (ॐ को छोड़ कर) है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यह मन्त्र श्री रुद्रम् चमकम् और रुद्राष्टाध्यायी में "न", "मः", "शि", "वा" और "य" के रूप में प्रकट हुआ है। श्री रुद्रम् चमकम्, कृष्ण यजुर्वेद[1] का अंश है और रुद्राष्टाध्यायी, शुक्ल यजुर्वेद का भाग है।
यह मन्त्र कृष्ण यजुर्वेद के भाग श्री रुद्रम् चमकम् में उपस्थित है।[2][3] श्री रुद्रम् चमकम्, कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता की चौथी पुस्तक के दो अध्यायों (टी.एस. 4.5, 4.7) से मिल कर बना है। प्रत्येक अध्याय में ग्यारह स्तोत्र या भाग हैं।[4] दोनों अध्यायों का नाम नमकम् (अध्याय पाँच) एवं चमकम् (अध्याय सात) है।[5] ॐ नमः शिवाय मन्त्र बिना "ॐ" के नमकम् अध्याय के आठवे स्तोत्र (टी.एस. 4.5.8.1) में 'नमः शिवाय च शिवतराय च' (IAST: Namaḥ śivāya ca śivatarāya ca) के रूप में उपस्थित है। इसका अर्थ है "शिव को नमस्कार, जो शुभ है और शिवतरा को नमस्कार जिनसे अधिक कोई शुभ नहीं है। [6][7][8][9][10]
यह मन्त्र रुद्राष्टाध्यायी में भी उपस्थित है जो शुक्ल यजुर्वेद का भाग है। यह मन्त्र रुद्राष्टाध्यायी के पाँचवे अध्याय (जिसे नमकम् कहते हैं) के इकतालीसवे श्लोक में 'नमः शिवाय च शिवतराय च' (IAST: Namaḥ śivāya ca śivatarāya ca) के रूप में उपस्थित है।
नमः शिवाय का अर्थ "भगवान शिव को नमस्कार" या "उस मंगलकारी को प्रणाम!" है।
सिद्ध शैव और शैव सिद्धांत परम्परा जो शैव सम्प्रदाय का हिस्सा है, उनमें नमः शिवाय को भगवान शिव के पंच तत्त्व बोध और उनकी पाँच तत्वों पर सार्वभौमिक एकता को दर्शाता मानते हैं :
इसका कुल अर्थ है कि "सार्वभौमिक चेतना एक है"।
शैव सिद्धांत परम्परा में यह पाँच अक्षर इन निम्नलिखित का भी प्रतिनिधित्व करते हैं :
यह मन्त्र के मौखिक या मानसिक रूप से दोहराया जाते समय मन में भगवान शिव की अनन्त व सर्वव्यापक उपस्थिति पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। परम्परागत रूप से इसे रुद्राक्ष माला पर 108 बार दोहराया जाता है। इसे जप योग कहा जाता है। इसे कोई भी गा या जप सकता है, परन्तु गुरु द्वारा मन्त्र दीक्षा के बाद इस मन्त्र का प्रभाव बढ़ जाता है। मन्त्र दीक्षा के पहले गुरु आमतौर पर कुछ अवधि के लिए अध्ययन करता है। मन्त्र दीक्षा प्रायः मन्दिर अनुष्ठान जैसे कि पूजा, जप, हवन, ध्यान और विभूति लगाने का भाग होता है। गुरु, मन्त्र को शिष्य के दाहिने कान में बोलतें हैं और कब और कैसे दोहराने की विधि भी बताते हैं।
यह मन्त्र प्रार्थना, परमात्मा-प्रेम, दया, सत्य और परमसुख जैसे गुणों से जुड़ा हुआ है। सही ढंग से मन्त्र जप करने से यह मन को शान्त, आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि और ज्ञान लाता है । यह भक्त को शिव के पास भी लाता है। परम्परागत रूप से, यह स्वीकार किया गया है कि इस मन्त्र में समस्त शारीरिक और मानसिक बीमारियों को दूर रखने के शक्तिशाली चिकित्सकी गुण हैं। इस मन्त्र के भावपूर्ण पाठ करने से दिली शान्ति और आत्मा को प्रसन्नता मिलती है। कई हिन्दू शिक्षकों का विचार है कि इन पाँच अक्षरों का दोहराना शरीर के लिए साउण्ड थैरेपी और आत्मा के लिए अमृत के भाँति है। [21]
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