आत्मा
From Wikipedia, the free encyclopedia
आत्मा या आत्मन् पद भारतीय दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों (विचार) में से एक है। यह उपनिषदों के मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में आता है। जहाँ इससे अभिप्राय व्यक्ति में अन्तर्निहित उस मूलभूत सत् से किया गया है जो कि शाश्वत तत्त्व है तथा मृत्यु के पश्चात् भी जिसका विनाश नहीं होता। जबलग जगभर
आत्मा का निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या गीता में किया गया है। आत्मा को शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, अग्नि उसे जला नहीं सकती, जल उसे गीला नहीं कर सकता और वायु उसे सुखा नहीं सकती।[1] जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है।[2]
इस संसार में अनगिनत ज्ञानी पुरुष हुए है जिन्होंने अपनी आत्मा पाई और आत्मा को पाने के रास्ते बताये है। कृष्ण, बुद्ध, येशु, अष्टावक्र, राजा जनक , संत कबीर, मीरा बाई, गुरु नानक, साई बाबा आदि ।
सभी ज्ञानी पुरुषो ने एक मत से यह कहा कि आत्मा अमर है, नाहीं कभी जन्म लेती, नाहीं उसकी मृत्यु होती। आत्मा सनातन है। आत्मा एक उर्जा का रुप हैं जिसे आत्म ज्ञान और परमात्म ज्ञान के समय देखा जा सकता है।
कई धार्मिक, दार्शनिक और पौराणिक परंपराओं में, आत्मा एक जीवित प्राणी का निराकार सार है।
सुकरात, प्लेटो और अरस्तू जैसे यूनानी दार्शनिकों ने समझा कि आत्मा में एक तार्किक क्षमता होनी चाहिए, जिसका अभ्यास मानव क्रियाओं में सबसे दिव्य था।[3]
यहूदी धर्म में और कुछ ईसाई संप्रदायों के अनुसार केवल मनुष्यों के पास अमर आत्माएं होती हैं (हालांकि यहूदी धर्म के भीतर अमरता विवादित है और अमरता की अवधारणा प्लेटो से प्रभावित हो सकती है)। उदाहरण के लिए, कैथोलिक धर्मशास्त्री थॉमस एक्विनास ने सभी जीवों को "आत्मा" (एनिमा) के लिए जिम्मेदार ठहराया लेकिन तर्क दिया कि केवल मानव आत्माएं अमर हैं[4]। अन्य धर्मों (विशेष रूप से हिंदू धर्म और जैन धर्म) का मानना है कि सबसे छोटे जीवाणु से लेकर सबसे बड़े स्तनधारियों तक सभी जीवित चीजें स्वयं आत्माएं हैं (आत्मान, जीव) और दुनिया में उनके भौतिक प्रतिनिधि (शरीर) हैं। वास्तविक स्वयं आत्मा है, जबकि शरीर उस जीवन के कर्म का अनुभव करने के लिए केवल एक तंत्र है। इस प्रकार यदि कोई बाघ को देखता है तो उसमें (आत्मा) रहने वाली एक आत्म-चेतन पहचान है, और दुनिया में एक भौतिक प्रतिनिधि (बाघ का पूरा शरीर, जो देखने योग्य है) है। कुछ सिखाते हैं कि गैर-जैविक संस्थाओं (जैसे नदियाँ और पहाड़) में भी आत्माएँ होती हैं। इस विश्वास को जीववाद कहा जाता है।[5]