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अमरीका के भौतिक वैज्ञानिक तथा १९३६ के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता थे विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
कार्ल डेविड ऐंडर्सन (Carl David Anderson (3 सितम्बर 1905 - 11 जनवरी 1991) अमरीका के भौतिक वैज्ञानिक तथा १९३६ के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता थे।
कार्ल डेविड ऐंडरसन | |
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जन्म |
3 सितंबर 1905,[1][2][3][4][5][6][7] 1905 न्यूयॉर्क नगर[8][9][10] |
मौत |
11 जनवरी 1991[1][2][3][11][4][5][6][7] |
आवास | न्यूयॉर्क नगर |
नागरिकता | संयुक्त राज्य अमेरिका[12][13] |
शिक्षा | कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी |
पेशा | भौतिक विज्ञानी,[14][15][16][17] विश्वविद्यालय शिक्षक |
संगठन | कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी |
पुरस्कार | भौतिकी में नोबेल पुरस्कार[18][19] |
इनका जन्म ३ सितंबर, सन् १९०५ ई. को न्यूयार्क में हुआ। उच्च शिक्षा इन्होंने कैलिर्फ़ोर्निया इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलाजी, पैसाडना में प्राप्त की। १९३० में इन्हें पी.एच.डा. उपाधि मिली। १९३३ में ये कैलिफ़ोनिया इंस्टिटयूट में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए, फिर १९३९ में प्रोफेसर बना दिए गए।
अनुसंधान कार्य - सन् १९२७ में जिन दिनों आपने अंतरिक्ष किरणों के बारे में अपना शोधकार्य आरंभ किया, उन दिनों इन किरणों के बारे में इस महत्वपूर्ण प्रश्न का हल ढूँढ़ा जा रहा था कि ये किरणें अत्यधिक ऊर्जावाले कणों से बनी हैं अथवा ये शक्तिशाली गामा किरणों की जाति की हैं। प्रोफेसर मिलिकन की प्रेरणा से ऐंडर्सन ने सुसंगठित योजना के अनुसार अपने प्रयोग आरंभ किए। इन प्रयोगों में मेघकक्ष (क्लाउड चेंबर) को चुंबकीय क्षेत्र में रखा गया था और इस बात का प्रबंध किया गया था कि एक लंबी अवधि तक प्रत्येक १५ सेकंड के अंतर पर कक्ष में प्रकट होनेवाले विद्युत्कणों की मार्गरेखा का फोटो अपने आप खिंचता रहे। इन मार्ग रेखाओं की वक्रता नापकर ऐंडर्सन ने निर्विवाद रूप से १९३२ में यह सिद्ध किया कि अंतरिक्ष किरणों की ऊर्जा जब पदार्थ में परिणत होती है तो एक इलेक्ट्रान के साथ-साथ उतनी ही धनविद्युत् मात्रावाला दूसरा कण भी उत्पन्न होता है, जिसे 'पाज़िट्रान' का नाम दिया गया। पाज़िट्रान का भार ठीक इलेक्ट्रान के भार के बराबर होता है। १९३६ में पाज़िट्रान की खोज के उपलक्ष में आपको नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
इन्हीं प्रयोगों के सिलसिले में ऐंडर्सन ने इस बात की भी संभावना बतलाई की अंतरिक्ष किरणों में एक नई जाति के विद्युत्कण भी विद्यमान रह सकते हैं जिनका भार इलेक्ट्रान और प्रोटान के भार के बीच होना चाहिए तथा जिनकी विद्युत आवेश इलेक्ट्रान के आवेश के बराबर ही ऋणात्मक या धनात्मक जाति की होनी चाहिए। ऐंडर्सन ने इन्हें 'मेसोट्रान' नाम दिया। बाद में ये ही कण मेसॉन कहलाए।
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