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ख़ालिद बिन वलीद
सहाबी, कभी ना हारने वाला इस्लाम धर्म के पैग़म्बर मुहम्मद का सेनापति / From Wikipedia, the free encyclopedia
खालिद बिन वलीद; Khālid ibn al-Walīd: (अरबी: خالد بن الوليد ) रणनीति और कौशल के लिए विख्यात हैं ।[1] इनका जन्म 592 ईस्वी में अरब के एक नामवर परिवार में हुआ था खालिद बिन वलीद ने जब इस्लाम धर्म ग्रहण नही किया था तब इस्लाम के कट्टर शत्रु थे लेकिन 628 ईस्वी में इस्लाम स्वीकार किया इसके बाद हजरत मुहम्मद साहब के एक मुख्य मित्र (सहाबी) के रूप में पहचान बनायी । हजरत मुहम्मद साहब के दुनिया से जाने के बाद जब इस्लाम के उत्तराधिकारी जिन्हें राशीदुन खलीफा के रूप में जाना जाता है हजरत अबूबक्र और खलीफा उमर की खिलाफत में इन्हें इस्लामी सेना का कमांडर नियुक्त किया गया । 7 वीं शताब्दी में जो इस्लामी सेना को सफलता प्राप्त हुई उसका श्रेय खालिद बिन वलीद को दिया जाता है इन्होने अलग अलग दोसौ से अधिक युध्दों का नेत्तृव किया । रशीदुन सेना का नेत्तृव करते हुए रोमन सीरिया, मिस्त्र, फारस, मेसोपोटामिया पर इस्लामी सेना ने सफलतापूर्वक विजय प्राप्त की जिसके लिए खालिद बिन वालिद को सैफुल्लाह (अल्लाह की तलवार) के नाम से जाता है। इनकी मृत्यु सेना सेवा समाप्ति के चार वर्ष बाद 642 ईस्वी मे होम्स सीरिया में हुई थी इन्हे होम्स में ही दफनाया गया था, उस स्थान पर खालिद बिन वालिद के नाम से मस्जिद स्थित है। और जहाँ तक इस्लामी युध्द तथा लड़ाईयों पर चर्चा की जाये तो खालिद बिन वालिद का नाम प्रमुखता से लिया जाता क्योंकि हर युध्द में जांबाजी तथा पैंतरेबाजी बेमिसाल थी जिससे दुश्मन सेना के छक्के छूट जाते थे तथा दुनिया के एकमात्र ऐसे कमांडर हैं जिन्होंने अपने जीवन में एक भी युध्द या लड़ाई नहीं हारी।