सरस्वती नदी
वेदों और प्राचीन भारतीय महाकाव्यों में वर्णित नदी / From Wikipedia, the free encyclopedia
सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है। इसे प्लाक्ष्वती,वेद्समृति, वेदवती भी कहते है! ऋग्वेदमें सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। यह नदी सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर उत्पत्ति होती थी। कहते हैं, यह नदी हिमाचल में सिरमौरराज्य[1] के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला तथा कुरुक्षेत्र,कैथल होती हुई पटियाला राज्य में प्रविष्ट होकर सिरसा जिले की दृशद्वती (कांगार) नदी में मिल गई थी। प्राचीन काल में इस सम्मिलित नदी ने राजपूताना के अनेक स्थलों को जलसिक्त कर दिया था। यह भी कहा जाता है कि प्रयाग के निकट तक आकर यह गंगा तथा यमुना में मिलकर त्रिवेणी बन गई थी। कालांतर में यह इन सब स्थानों से तिरोहित हो गई, फिर भी लोगों की धारणा है कि प्रयाग में वह अब भी अंत:सलिला होकर बहती है। मनुसंहिता से स्पष्ट है कि सरस्वती और दृषद्वती के बीच का भूभाग ही ब्रह्मावर्त कहलाता था।
सरस्वती नदी (नदीतमा) | |
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महाभारत कालीन सरस्वती नदी। (हरे रंग से प्रदर्शित) | |
उद्गम स्थल: हिन्दू देवी सरस्वती | |
देश | भारत, पाकिस्तान |
राज्य | हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान |
क्षेत्र | भारत और पाकिस्तान |
लम्बाई | 1,600 कि.मी. (994 मील) |
विसर्जन स्थल | अरब सागर |
उद्गम | रूपण (सरस्वती) |
- स्थान | शिवालिक पर्वतमाला, हिमालय, उत्तराखंड, भारत |
मुख | |
- स्थान | आदिबद्री, यमुनानगर, उत्तर भारत, हरियाणा, भारत |
मुख्य सहायक नदियाँ | |
- वामांगी | दृषवती, हिरण्यवती |
इसरो द्वारा प्रेषित मानचित्र में सरस्वती नदी
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