तत्त्वमीमांसा
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तत्त्वमीमांसा या पराभौतिकी(अंग्रेज़ी-metaphysics) दर्शनशास्त्र की वह शाखा है,जो वास्तविकता के सिद्धांत एवं यथार्थ व स्वत्व/सत्ता की मूलभुत-मौलिक प्रकृति, अस्तित्व, अस्मिता, परिवर्तन, दिक् और समय, कार्य-कारणता,अनिवार्यता तथा संभावना के प्रथम (आद्य) सिद्धांतों (मूलनियम) का अध्ययन करती है।[1] इसमें चेतना की प्रकृति और मन और पुद्गल (matter) के बीच संबंध , द्रव्य (substance) और गुण (property) के बीच, और क्षमता और वास्तविकता के बीच संबंध के बारे में प्रश्न शामिल हैं ।
तत्वमीमांसा(μετὰφυσικά) | |
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विद्या विवरण | |
अधिवर्ग | दर्शनशास्त्र |
विषयवस्तु | यथार्थ के मूलभुत प्रकृति की विवेचना, परम् सत्(ultimate reality) का अध्ययन। |
शाखाएं व उपवर्ग | ब्रह्माण्डविद्या (कॉस्मोलॉजी), सत्तामीमांसा (आन्टोलॉजी), ईश्वरमीमांसा, मन-दर्शनशास्त्र, अस्तित्ववाद, वेदांत, सांख्य दर्शन, ब्रह्मविद्या, ताओ-दर्शन |
प्रमुख विद्वान् | प्लेटो,अरस्तु,सन्त ऑगस्टिन, थॉमस एक्विनास,रेने देकार्त,लाइब्नीज़,डेविड ह्यूम,स्पिनोज़ा, जॉर्ज बर्कली,इमैनुएल कांट,हेगल, मार्टिन हाइडेगर,एडमंड हुसर्ल,ज़ाक देरिदा,सार्त्र |
इतिहास | तत्वमीमांसा का इतिहास |
प्रमुख विचार व अवधारणाएं |
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यह ब्रह्मांड के परम तत्व की खोज करते हुये उसके परम स्वरूप का विवेचन करती है। इसका प्रमुख विषय वो परम तत्व ही होता है जो इस संसार के होने का कारण है और इस संसार का आधार है। इसमें उस परम तत्व के अस्तित्व को खोजने की प्रयास तथा उसकी व्याख्या कई प्रकार से की जाती है। कई उसे आकार रूप मानकर परिभाषित करते हैं,तो कई उसे निराकर रूप मानते हैं। परम्परागत रूप से इसकी चार शाखाएँ हैं - ब्रह्माण्डविद्या(कॉस्मोलॉजी), सत्तामीमांसा(आन्टोलॉजी),ईश्वरमीमांसा(प्राकृतिक धर्ममीमांसा) एवं मन का दर्शन।
तत्वमीमांसा, पाश्चत्य दर्शन की शाखा "मेटाफिजिक्स" का भारतीय समकक्ष है तथा हिंदी भाषा में उसी संज्ञा का अनुवाद भी है। शब्द "मेटाफिजिक्स" दो ग्रीक शब्दों से आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "प्राकृतिक के बाद या पीछे या [उसके अध्ययन] के बीच"। यह सुझाव दिया गया है कि यह शब्द पहली शताब्दी सी०ई० संपादक द्वारा गढ़ा गया हो सकता है, जिन्होंने अरस्तू के कार्यों के विभिन्न छोटे चयनों को उस ग्रंथ में इकट्ठा किया जिसे अब हम मेटाफिजिक्स (μετὰ τὰ φυσικά , मेटा टा फिजिका , अक्षरशः -"भौतिक विज्ञान के बाद") के नाम से जानते हैं। द फिजिक्स ', अरस्तू की अन्य कृतियों में से एक है)।[2]
तत्वमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं-
- अन्ततः क्या है?
किसकी सत्ता/ अस्तित्व है?
- जो है, वह कैसा है?
(जिसकी सत्ता है),उसकी प्रकृति क्या है?