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विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
द्वितीय चीन-जापान युद्ध चीन तथा जापान के बीच 1937-45 के बीच लड़ा गया था। 1945 में अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराने के साथ ही जापान ने समर्पण कर दिया और युद्ध की समाप्ति हो गई। इसके परिणामस्वरूप मंचूरिया तथा ताईवान चीन को वापस सौंप दिए गए जिसे जापान ने प्रथम चीन-जापान युद्ध में उससे लिया था।
द्वितीय चीन-जापान युद्ध | |||||||||
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द्वितीय विश्वयुद्ध[lower-alpha 1] का भाग | |||||||||
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योद्धा | |||||||||
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सेनानायक | |||||||||
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शक्ति/क्षमता | |||||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||||
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Chinese civilian deaths: 17,000,000–22,000,000[13] | |||||||||
1941 तक चीन इसमें अकेला रहा। 1941 में जापान द्वारा पर्ल हार्बर पर किए गए आक्रमण के बाद यह द्वितीय विश्व युद्ध का अंग बन गया।
अपै्रल 1927 ई. में बैरन तनाका जापान का प्रधानमंत्री बना। तनाका शक्ति के प्रयोग के द्वारा जापान के उद्योगों को विकास करना चाहता था। जापान की नीति क्या होनी चाहिए, इस विषय पर तनाका ने एक गुप्त सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें जापान के सेनाध्यक्षों तथा वित्त और युद्ध विभागों के अधिकारियों ने भाग लिया था। कहा जाता है कि इस सम्मेलन के निर्णय के आधार पर स्मरण पत्र तैयार किया गया। इस स्मरण पत्र को ‘तनाका स्मरण-पत्र’ कहा गया और सम्राट की स्वीकृति के लिए इसे 25 जुलाई, 1927 ई. को प्रस्तुत किया गया। इस स्मरण-पत्र में कहा गया था कि अगर जापान विकास करना चाहता है और अपने अस्तित्व की रक्षा करना चाहता है तो उसे कोरिया, मंचूरिया, मंगोलिया और चीन की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, जापान को संपूर्ण एशिया और दक्षिण सागर के प्रदेशों को भी जीतना आवश्यक होगा। स्मरण-पत्र में आगे कहा गया था कि अगर जापान अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है तो उसे ‘रक्त और लौह’ की नीति (आइरन ऐण्ड ब्ल्ड पॉलिसी) अपनानी पड़ेगी और इस नीति की सफलता के लिए चीन को पहले विजय करना आवश्यक है।
तनाका स्मरण-पत्र में कहा गया था कि अगर जापान एशिया को अपने नियंत्रण में लाना चाहता है तो उसे सबसे पहले चीन पर अधिकार करना होगा और चीन पर अधिकार करने का मार्ग मंचूरिया से आरंभ होता है।
मंचूरिया चीन का प्रांत था लेकिन चीन की दुर्बलता के कारण रूस तथा जापान ने मंचूरिया में विशेष आर्थिक तथा सैनिक हितों का सृजन कर लिया था। जापान अपने राष्ट्रीय जीवन की सुरक्षा के लिए मंचूरिया पर अधिकार करना आवश्यक मानता था। इसके कई कारण थे -
मुकदन पर कब्जा करने के बाद भी जापान की सैनिक कार्यवाही जारी रही। 3 जनवरी, 1932 तक संपूर्ण मंचूरिया पर जापान का अधिकार हो गया। 18 फरवरी, 1932 को मंचूरिया के स्थान पर एक नवीन राज्य ‘मंचूकुओ’ की स्थापना जापान ने की। जापान ने एक कठपुतली सरकार की भी स्थापना की। चीन के पदच्युत सम्राट् को राज्य का प्रमुख बनाया गया। यह सम्राट् चीन के जपानी राजदूतावास में जापानी संरक्षण में रह रहा था। जापान का कहना था कि मंचुकुओ को चीन की आधीनता से मुक्त करके एक स्वतंत्र राष्ट्रीय राज्य के रूप में स्थापित किया जा रहा था। 9 मार्च, 1932 को मंचुकुओं राज्य के संविधान का निर्माण किया। 15 सितम्बर, 1932 को जापान ने इस नवीन राज्य को विधिवत मान्यता प्रदान कर दी।
अब जापान ने चीन के प्रदेशों पर अधिकार प्राप्त करना प्रारंभ किया जो निम्नलिखित हैं-
1934 ई. जापान ने घोषणा की कि अगर कोई देश चीन को युद्ध का सामान, हवाई जहाज आदि देगा तो जापान इसे शत्रुतापूर्ण कार्यवाही मानेगा। जापान ने 1933 ई. में नानकिंग सरकार से ऐसे समझौते किये जिनके द्वारा चीन की सरकार को होयेई प्रांत से अपनी सेनाओं को हटाना पड़ा और जापान ने वहाँ अपनी पसंद की सरकार बनवा ली। होयेई पर अधिकार हो जाने के बाद शान्सी और शान्तुंग पर अधिकार के लिए जापान ने प्रयास तेज कर दिये। इन्हीं के फलस्वरूप 1937 में चीन-जापान युद्ध औपचारिक रूप से आंरभ हो गया।
तात्कालिक कारण : चीनियों तथा जापानी सैनिकों के मध्य स्थान-स्थान पर मुठभेड़ें हो रही थीं। इनमें सबसे गंभीर लुकचिआओ की मुठभेड़ थी जो 7 जुलाई, 1937 ई. को हुई। चीनी पुलिस और जापानी सैनिकों के मध्य गोलाबारी हुई। जापान ने इस घटना के लिए चीनी पुलिस को उत्तरदायी ठहराया और माँग की कि पेकिंग और तिन्वसिन क्षेत्रों से चीनी सैनिकों को हटा लिया जाये। चांग काई शेक ने इस माँग को अस्वीकार कर दिया जिससे दो पक्षों के मध्य युद्ध आरंभ हो गया।
युद्ध आरंभ होते ही 27 जुलाई को जापानी सेनाओं ने पेकिंग पर अधिकार कर लिया। चांग ने येनान की साम्यवादी सरकार से समझौता करके यह स्वीकार कर लिया था कि साम्यवादी सेनाएँ अपने सेनापतियों के नेतृत्व में जापानियों से युद्ध करेंगी। पेकिंग के बाद जापानी सेनाओं ने चहर और सुईयुनान पर अधिकार कर लिया। जब उन्होंने शान्सी पर आक्रमण किया, तब साम्यवादी सेनाओं ने डटकर मुकाबला किया। 1937 ई. में जापान ने नवविजित प्रदेशों में दो सरकारों का गठन किया - मंगोलिया की पृथक् सरकार और पेकिंग की सरकार। ये सरकार जपानी परामर्श से शासन करती थीं। इनके बाद जापानी सेनाओं ने शंघाई तथा नानकिंग पर कब्जा कर लिया। चांग की सेनाओं को पीछे हटना पड़ा। नानकिंग सरकार हैंको चली गयी। जापान ने सैनिक अभियान जारी रखा। उसने 1938 ई. में हैंको और कैण्टन पर भी अधिकार कर लिया। ऐसी स्थिति में चांग की सरकार चुंगकिंग चली गयी। जापान ने नानकिंग में एक कठपुतली सरकार गठित कर दी और घोषणा की कि जापान का उद्देश्य चीन में एक मित्र सरकार की स्थापना है। उसने चीन में अपनी व्यवस्था को ‘न्यू आर्डर’ कहा। इस प्रकार जपान का उत्तरी, पूर्वी तथा दक्षिणी चीन पर अधिकार स्थापित हो गया लेकिन वह पश्चिमी तथा उत्तरी-पश्चिमी चीन पर अधिकार करने में असफल रहा। इन क्षेत्रों पर कोमिन्तांग तथा साम्यवादी सरकारें स्थापित थीं। वे जापानी सेनाओं से निरंतर युद्ध कर रही थीं। जापान के अधिकृत प्रदेशों में चीनी देशभक्तों ने गोरिल्ला युद्ध छेड़ रखा था। इस बीच 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने से चीन और जापान भी विश्वयुद्ध का भाग बन गये।
1937 ई. में जब चीन-जापान युद्ध आरंभ हुआ, चीन ने राष्ट्रसंघ से अपील की। राष्ट्रसंघ ने इस पर विचार के लिए समिति नियुक्त की। समिति की अनुशंसा पर 9 देशों की सभा ब्रुसेल्स में हुई लेकिन सब व्यर्थ रहा। जापान के विरूद्ध राष्ट्रसंघ या इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका ने कोई कार्यवाही नहीं की। राष्ट्रसंघ की असफलता का परिणाम यह हुआ कि विश्व के प्रमुख देश दो गुटों में विभाजित हो गये। एक ओर जर्मनी, जापान और इटली थे; दूसरी ओर फ्रांस के नेतृत्व वाला गुट था जिसमें पोलैण्ड, चेकोस्लोवेकिया, यूगोस्लाविया आदि थे। रूस भी इसमें शामिल हो गया। अंत में, इंग्लैण्ड भी इस गुट में शामिल हुआ। अमेरिका ने तटस्थता की नीति अपनायी। इस प्रकार जापान को चीन को परास्त करने की पूरी आजादी मिल गयी। जब 1939 ई. में विश्वयुद्ध आरंभ हुआ तब जापान को संदेह था कि भविष्य में अमेरिका भी इस युद्ध में सम्मिलित होगा। इसीलिए 1940 ई. में उसने जर्मनी तथा इटली के साथ सैनिक संधि की। इससे चीन में जापान की स्थिति सुरक्षित हो गयी।
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