धर्म
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धर्म ( पालि : धम्म ) भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। "धर्म" शब्द का पश्चिमी भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि।
""धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य' सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए, यह धर्म हैं। "" धर्म किसी के साथ भेद नहीं करता ""
शिवदयाल सिंह शास्त्री जी:के अनुसार धर्म का वास्तविक अर्थ (सत आचरण से है यानि जिसका आचरण सही और जिस आचरण को धारण किया जा सके जैसे श्रीराम राम का आचरण, श्री कृष्ण का आचरण, बुद्ध का आचरण, महावीर का आचरण, येशु का आचरण सभी सत और धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है और इन सबके आराध्या आदि शिव और आदि माता शक्ति है।
शिवोहम,
शिवोहम, शिवोहम,
शिवोहम, शिवोहम शिवोहम।
सर्वत्र शिव ही शिव है।
शिवोहम शिवोहम
"धर्म" एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।
मोह माया (मुद्रा) जैसे सामाजिक विश्वासों के आधार पर बनी व्यवस्था व्यावसायिक परिषद कहलाती है इस में पूर्व लिखित कानून व्यस्था लागु होती है जिसे धर्म भी कहा गया है आज के समय ये रिलिजन व संविधान के नाम से जाना जाता है ।
ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यवसायिक परिषद द्वारा लागू शिक्षा व्यवस्था जो बाद मे कॉमन वेल्थ और आज के समय के ग्लोबल एजुकेशन सिस्टम के नाम से जानी जाती है । सिर्फ पूर्व लिखित कानून व्यवस्था यानि धर्म को ही सभ्य मानती है।
वही दूसरी ओर स्थिति , मंशा व दर्शन के आधार पर लागू व्यवस्था जैसे शैविक व्यवस्था (विदथ-गण- सभा-समिति, पंचायत -महापंचायत ,जनपद -महाजनपद आदि ) और वैष्णव व्यवस्था (जमीदार ,सामन्त व अन्य द्वैत व्यवस्था ) को असभ्य मानती है