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फ़्लैवीवीरादड परिवार से संबंधित पशु वाय्रस विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
पीत विषाणु (अंग्रेज़ी: Flavivirus) फ़्लैविविरिडेई विषाणु परिवार Flaviviridae के विषाणुओं की एक जाति है। इस प्राजाति में पश्चिमी नील विषाणु (West Nile virus), डेंगी विषाणु, टिक-बॉर्न मेनिनगो इंसेफ़लाइटिस विषाणु (tick-borne encephalitis virus), पीत जवर विषाणु, ज़ीका विषाणु और कई अन्य विषाणु होते हैं जो इंसेफ़लाईटिस, दिमागी बुखार जैसी खतरनाक बीमारियों का कारण बनते हैं। [2]
पीत विषाणु Flavivirus | |
---|---|
जॉन्डिस के विषाणु का सूछ्मदर्शी से लिया गया चित्र। | |
विषाणु वर्गीकरण | |
Group: | Group IV ((+)एसएसआरएनए) |
कुल: | फ्लैविविरिडेई |
वंश: | पीत विषाणु Flavivirus |
प्रकार जाति | |
पीत ज्वर विषाणु [1] | |
प्रजाति | |
(see list in article) |
पीत विषाणु का नाम पीलिया या पीत ज्वर के विषाणू के नाम से पडा है जो कि इसी विषाणू परिवार का सदस्य है। पीत का संस्कृत में अर्थ पीला होता है। लैटिन भाषा में फ़्लैवी का अर्थ पीला होता है। इसी नाम से इसका जैविक नाम फ़्लैविवायरस पडा। इसका नाम पीले रंग से इसलिये जुडा हुआ है क्योंकि इसके शिकार पीली जान्डिस से पीडित होते हैं। [3]
फ़्लैवीवायरस में कई प्रकार की समानताएँ होती हैं: समान आकार (40–65 नैमी), समरूपता (घिरे हुए, विंशतिफलक न्युक्लियोकैप्सिड), न्यूक्लीक एसिड (पॉजिटिव सेन्स, एकल फँसा हुआ आरएनए लगभग 10,000–11,000 क्षार), और माइक्रोस्कोप में दृष्यता।
इनमें से अधिकांश विषाणु संक्रमित संधिपादों (arthropod) जैसे मच्छर इत्यादि के काटने से फैलती हैं। संधिपादों से फ़ैलने के कारण इन विषाणुओं को संधिविषाणु (arboviruses) भी कहते हैं। अर्थ्रोपॉड यूनानी भाषा का शब्द है जो अर्थ्रो (अर्थात संधि या जोड़) और पॉड यानि पैर से मिलकर बना है। अर्बोवायरस का अर्थ है अर्थ्रोपॉड जनित विषाणु जो कि इस परिभाषा के शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलकर बना है।[4] (arthro borne viruses)
इस विषाणु से संक्रमण का एक और जरिया है संक्रमित जानवरों व उनकी लाशों को छूना, संक्रमित खून से संपर्क, संक्रमित माँ से नवजात बच्चे को, संक्रमित जानवर के दूध पीने से इत्यादि। हालांकि ये विषाणु मानवों में सबसे ज्यादा संधिपादों के काटने से फैलते हैं।
समूह: ssRNA(+)
पीतविषाणु लगभग ५० नैनोमीटर के व्यास के खोल या कवच में घिरा होता है। आकार में यह विंशतिफलक या गोलाकार होता है। जीनोम लंबाई में १०-११केबी के रेखीय और अखण्ड होते हैं। [6]
श्रेणी | ढाँचा | समरूपता | कैप्सिड (प्रोटीन आवरण) | जीनोमीय व्यवस्था | जीनोमीय विभाजन |
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पीतविषाणु | विंशतिफलक-की तरह | कृत्रिम T=3 | घिरा हुआ | रेखीय | एक-विभक्त |
Flavivirus | Icosahedral-like | Pseudo T=3 | Enveloped | Linear | Monopartite |
पीत ज्वर का सबसे सफ़लतम टीका या दवाई पीत ज्वर 17डी टीका, 1937 में बनाया गया था। इस दवा ने महामारी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जापानी इंसेफ़लाइटिस और अष्टपाद-जनित इंसेफ़लाइटिस विषाणु को मारने की प्रभावकारी दवा/टीका बीसवीं शताब्दी के मध्य तक बना ली गई थी।[7] पहले की दवा के दुष्प्रभावों की वजह से दूसरे पीढी की जापानी इंसेफ़लाइटिस की दवा बनाई गई जो ज्यादा सफल रही। इनका एशिया के विशाल जनसंख्या का इस खतरनाक बीमारी से निपटने में व्यापक इस्तेमाल किया जाता है। 95 प्रतिशत लोगों में टीकाकरण के 10 दिन के बाद इसका असर शुरू होता है और कम से कम 10 वर्ष तक रहता है (81 प्रतिशत मरीज़ों में प्रतिरक्षा 30 साल के बाद तक भी रही)। डब्ल्यूएचओ स्थानिक क्षेत्रों में लोगों को जन्म के 9वें और 12 महीनें के बीच नित्य टीकाकरण की सिफारिश करता है। 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था ‘पीत ज्वर रोग के खिलाफ आजीवन प्रतिरक्षा के लिए टीकाकरण की एक खुराक ही काफी होती है’।[7] विश्वभर में घूमने वाले एडीज मच्छरों की वजह से सालाना लाखों लोग खतरनाक डेंगू के शिकार हो जाते हैं। चूंकि मच्छरों की अनगिनत संख्या पर नियंत्रण मुश्किल है इसलिये डेंगू से बचाव की विभिन्न दवाएँ अपने विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
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