मसूरी
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मसूरी या मन्सूरी भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक पर्वतीय नगर है, जिसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है। देहरादून से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, मसूरी उन स्थानों में से एक है जहाॅं लोग बार-बार आते जाते हैं। घूमने-फिरने के लिए जाने वाली प्रमुख जगहों में यह एक है। यह पर्वतीय पर्यटन स्थल हिमालय पर्वतमाला के मध्य हिमालय श्रेणी में पड़ता है, जिसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है। निकटवर्ती लैंढ़ौर कस्बा भी बार्लोगंज और झाड़ीपानी सहित वृहत या ग्रेटर मसूरी में आता है। इसकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से 2005 मी. (6600 फ़ीट) है, जिसमें हरित पर्वत विभिन्न पादप-प्राणियों समेत बसते हैं। उत्तर-पूर्व में हिम मंडित शिखर सिर उठाये दृष्टिगोचर होते हैं, तो दक्षिण में दून घाटी और शिवालिक श्रेणी दिखती है। इसी कारण यह शहर पर्यटकों के लिये परीमहल जैसा प्रतीत होता है। मसूरी गंगोत्री का प्रवेश द्वार भी है। देहरादून में पायी जाने वाली वनस्पति और जीव-जंतु इसके आकर्षण को और भी बढ़ा देते हैं। दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के निवासियों के लिए यह लोकप्रिय ग्रीष्मकालीन पर्यटन स्थल है। बहुत ही सुदंर नगर है ।
मसूरी का इतिहास सन 1825 में कैप्टन यंग, एक साहसिक ब्रिटिश मिलिट्री अधिकारी और श्री.शोर, देहरादून के निवासी और अधीक्षक द्वारा वर्तमान मसूरी स्थल की खोज से आरम्भ होता है। तभी इस छुट्टी पर्यटन स्थल की नींव पड़ी, जिसके अभी तक भी कुछ ही विकल्प कहलाते हैं। 1827 में एक सैनिटोरियम बनवाया गया, लैंढ़ौर में, जो आज कैन्टोनमैन्ट बन चुका है।[1], कर्नल एवरेस्ट ने यहीं अपना घर बनाया 1832 में और 1901 तक यहां की जनसंख्या 6461 थी, जो कि ग्रीष्म ऋतु में 15000 तक पहुंच जाती थी। पहले मसूरी सड़क द्वारा सहारनपुर से गम्य था, 58 कि.मि.दूर। सन 1900 में इसकी गम्यता सरल हो गयी यहां रेल के आने से, जिससे सड़क मार्ग छोटा होकर केवल 21 कि॰मी॰ रह गया।}}.[2] इसके नाम के बारे में प्रायः लोग यहां बहुतायत में उगने वाले एक पौधे ”’मंसूर”’ को इसके नाम का कारण बताते हैं, जो लोग, अभी भी इसे मन्सूरी कहते हैं। मसूरी नगरपालिका का गठन 1873 के अधिनियम पन्द्रह के तहत किया गया था।[3] इससे पूर्व 1842-43 में प्रयोग के तौर पर नगरपालिका बनायी गयी थी किन्तु यह प्रयास असफल रहा।
यहां का मुख्य स्थल अन्य सभी अंग्रेज़ों द्वारा प्रभावित/बसाये गये नगरों की भांति ही ”’माल”’ कहलाता है। मसूरी का मल रोड पूर्व में पिक्चर पैलेस से लेकर पश्चिम में पब्लिक लाइब्रेरी तक जता है। ब्रिटिश काल में मसूरी की माल मार्ग पर लिखा होता था ”भारतीय और कुत्तों को अनुमति नहीं”। इस प्रकार के जातीय चिन्ह अंग्रेज़ों की मानसिकता का परिचय देते सभी उस काल के बसाये नगरों में मिल जाते थे। इन्हें बाद में पैरों तले रौंद दिया गया था। मोती लाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के पिता, द्वारा उनके मसूरी निवास काल में प्रतिदिन यह नियम तोड़ा जाता था। नेहरू परिवार, श्रीमती इंदिरा गाँधी सहित, मसूरी के नियमित दर्शक थे सन 1920-1940 के दौरान। वे निकटवर्ति देहरादुन में भी अपना समय देते थे, जहाँ पँडित जी की बहन विजयलक्ष्मी पंडित रहतीं थीं। अप्रैल 1959 में, दलाई लामा, चीन अधिकृत तिब्बत से निर्वासित होने पर यहीं आये और तिब्बत निर्वासित सरकार बनाई। बाद में यह सरकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश। धर्मशाला में स्थानांतरित हो गयी। यहीं प्रथम तिब्बती स्कूल सन 1960 में खुला था। अभी भी लगभग 5000 तिब्बती लोग मसूरी में मुख्यतः हैप्पी वैली में बसे हुए हैं। वर्तमान में मसूरी में इतने होटल और जनसंख्या हो गयी है, उसकी दिल्ली इत्यादि से निकटता के कारण; कि यह नगर ढेरों कूड़ा, जल-संकट, पार्किंग की कमी, इत्यादि से, विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में सामना करता है। इसके अन्य अनुभागों में अपेक्षाकृत कम संकट हैं।”’चार दुकान”’, लैंढ़ौर, ऊपरी मसूरी से हिमालय का एक दृश्य]]
मसूरी की भौगोलिक अवस्थिति 30.45° उत्तरी अक्षांश तथा 78.08° पूर्वी देशांतर पर है।.[4] इसका औसत ऊंचाई 1,826 मीटर (5,991 फ़ीट) है।
सन् 2011 की भारतीय जनसंख्यिकी के अनुसार,[5] मसूरी की जनसंख्या 30118 थी। इस संख्या में 55.19% पुरुष और 44.81% स्त्रियाँ थीं। मसूरी का औसत साक्षरता 89.69% थी। यह राष्ट्रीय दर 78.82% से कहीं ऊंची थी। यहां की 8.88% जनता छः वर्ष के अंदर थी।
मसूरी दिल्ली और अन्य मुख्य नगरों से सड़क द्वारा अति सुगम है। इसे गंगोत्री, यमुनोत्री आदि उत्तर भारतीय तीर्थ स्थलों का प्रवेशद्वार कहा जाताहै। समीपतम रेलवे स्टेशन देहरादून है। यहां टैक्सियां और बसें नियमित उपलब्ध रहतीं हैं।
मसूरी भ्रमण का सर्वश्रेष्ठ समय मध्य मार्च से मध्य नवंबर का है, जिसमें वर्षाकाल जुलाई से सितंबर तक, परेशान कर सकता है,। इस काल में वर्षा तो होती ही है, इसके अलावा यहां कोई भी दूरवर्ती पर्वत दृश्यन हीं होते, बादलों के कारण।
मसूरी में ही लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी भी स्थित है।[6], जो कि युवकों के लिये भारतीय प्रशासनिक सेवाओं हेतु एकमात्र प्रशिक्षण केन्द्र है। यह संस्थान गांधी चौक से 3 कि॰मी॰ दूर है। लाइब्रेरी क्षेत्र में भारत तिब्बत सीमा पुलिस का उत्तर क्षेत्रीय मुख्यालय भी स्थित है। यह आई.टी.बी.पी. का एक आदरणीय पूर्ण प्रशिक्षण केन्द्र है। यहां सीमा पुलिस के नव नियुक्त जवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है, इससे पहले कि वे हमारी सीमाओं की रक्षा में जुट जायें।
ब्रिटिश साम्राज्य काल से ही यहां भिन्न विद्यालय बने हैं, जो कि तब ब्रिटिश सरकारी अधिकारियों को और अब सभी भारतीयों के लिये बच्चों की विद्या उपलब्ध कराते हैं। इनमें से कई अब भी वही मूल्य संरक्षित करे हुए हैं।
सेंट जॉर्ज विद्यालय, मसूरी (1853 में स्थापित) यहाँ के पुराने और प्रसिद्ध विद्यालयों में से एक है। यह पैट्रीशियन बंधुओं द्वारा सन 1893 से चलाया जा रहा है। 400 एकड़ में फ़ैला इसका कैम्पस मैनर हाउस के नाम से प्रचलित है। इसकी अल्युमनाई ने कई क्षेत्रों में योगदान दिया है। सेंट जॉर्ज स्कूल अपने स्थापत्य के लिये मसूरी भर में अद्वितीय है। अन्य विद्यालयों में वायनबर्ग ऐलन, गुरु नानक पंचम सेंटिनरी, मसूरी इंटरनैशनल, टिबेटन होम्स और वुडस्टॉक स्कूल हैं।
वुडस्टॉक स्कूल एक ईसाई अन्तर्राष्ट्रीय सह-शिक्षा, आवासीय विद्यालय है, जो लैन्ढौर में स्थित है। इस विद्यालय का उद्गम 1850 में है, जब अंग्रेज़ महिलाओं के एक समूह को ब्रिटिश और अमेरिकी मिशनरियों द्वारा लड़कियों को प्रोटैस्टैंट शिक्षा प्रदान करने हेतु नियुक्त किया गया था। वुडस्टॉक स्कूल इस उपमहाद्वीप के प्रसिद्ध आवसीय विद्यालयों में से एक है। इस विद्यालय का कैम्पस 250 एकड़ (1 वर्ग कि॰मी॰) में फैला हुआ है। इसका कैम्पस भिन्न प्रकार के पादप जातियां मिलती हैं, जैसे ओक, चीड़ और र्होडोडैन्ड्रॉन के वृक्षों से भरा हुआ है। यह कैम्पस 350 मीटर की ऊम्चाई लेता है, जो कि इसके निम्नतम और अधिकतम ऊंचाई का फर्क है।
गुरु नानक फिफ्थ सेंटेनरी स्कूल, मसूरी (GNFCS) मसूरी का प्रसिद्ध विद्यालय है। इसकी स्थापना श्री गुरु नानक देव जी की स्मृति में उनकी 500वीं जन्म शती के अवसर पर नवंबर 1969 में की गयी थी।
मसूरी की दूसरी सबसे ऊॅंची चोटी पर रोप-वे द्वारा जाने का आनंद लें। यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है, यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है और यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है। रोप-वे की लंबाई केवल 400 मीटर है। सबसे ज्यादा इसकी सैर में जो रोमांच है, वह अविस्मरणीय है।
गन हिल से हिमालय पर्वत श्रृंखला अर्थात् बंदरपंच, श्रीकांता, पिठवाड़ा और गंगोत्री समूह आदि के सुंदर दृश्य देखे जा सकते हैं, साथ ही मसूरी और दून-घाटी का विहंगम दृश्य भी यहां से देखे जा सकते हैं। आजादी-पूर्व के वर्षों में इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप प्रतिदिन दोपहर को चलाई जाती थी ताकि लोग अपनी घड़ियां सैट कर लें, इसी कारण इस स्थान का नाम गन हिल पड़ा।
मसूरी का वर्तमान कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन आजादी से पहले तक बोटेनिकल गार्डन भी कहलाता था। कंपनी गार्डन के निर्माता विश्वविख्यात भूवैज्ञानिक डॉ॰ एच. फाकनार लोगी थे। सन् 1842 के आस-पास उन्होंने इस क्षेत्र को सुंदर उद्यान में बदल दिया था। बाद में इसकी देखभाल कंपनी प्रशासन के देखरेख में होने लगा था। इसलिए इसे कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन कहा जाने लगा।
बौद्ध सभ्यता की गाथा कहता यह मंदिर निश्चय ही पर्यटकों का मन मोह लेता है। इस मंदिर के पीछे की तरफ कुछ ड्रम लगे हुए हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि इन्हें घुमाने से मनोकामना पूरी होती है।
लाल टिब्बा के निकट यह मसूरी की सबसे ऊंची चोटी है। टूरिस्ट कार्यालय से यह 5 कि॰मी॰ दूर है, यहां तक घोड़े पर या पैदल भी पहुंचा जा सकता है। यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है।
कुल 3 कि॰मी॰ लंबा यह रोड रिंक हॉल के समीप कुलरी बाजार से आरंभ होता है और लाइब्रेरी बाजार पर जाकर समाप्त होता है। इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है। हिमालय में सूर्यास्त का दृश्य यहां से सुंदर दिखाई पड़ता है। मसूरी पब्लिक स्कूल से कैमल रॉक जीते जागते ऊंट जैसी लगती है।
यह फाल मसूरी-झड़ीपानी रोड पर मसूरी से 8.5 कि॰मी॰ दूर स्थित है। पर्यटक झड़ी- पानी तक 7 कि॰मी॰ की दूरी बस या कार द्वारा तय करके यहां से पैदल 1.5 कि॰मी॰ दूरी पर झरने तक पहुंच सकते हैं।
यह फाल मसूरी-देहरादून रोड पर मसूरी से 7 कि॰मी॰ दूर स्थित है। पर्यटक बस या कार द्वारा यहां पहुंचकर आगे की 3 कि॰मी॰ दूरी पैदल तय करके झरने तक पहुंच सकते हैं। स्नान और पिकनिक के लिए यह अच्छी जगह है।
यमुनोत्री रोड पर मसूरी से 15 कि॰मी॰ दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर यह इस सुंदर घाटी में स्थित सबसे बड़ा और सबसे खूबसूरत झरना है, जो चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा है। झरने की तलहटी में स्नान तरोताजा कर देता है और बच्चों के साथ-साथ बड़े भी इसका आनंद उठाते हैं। मसूरी-यमुनोत्री मार्ग पर नगर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह झरना पांच अलग-अलग धाराओं में बहता है, जो पर्यटकों के लिए खासा आकर्षण का केंद्र बना रहता है। यह स्थल समुद्रतल से लगभग 4500 फुट की ऊंचाई पर है। इसके चारों ओर पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं। अंगरेज अपनी चाय दावत अकसर यहीं पर किया करते थे, इसीलिए तो इस झरने का नाम कैंपटी (कैंप+टी) फाल है। यमुनोत्री के रास्ते में 1370 मीटर की ऊंचाई पर कैम्प्टी जलप्रपात स्थित है। मसूरी से इसकी दूरी 15 किलोमीटर है। यह मसूरी घाटी का सबसे सुंदर जलप्रपात है।
ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से घिरे इस जलप्रपात के मनभावन नजारे लोगों का दिल जीत लेते हैं। यहां की शीतलता में नहाकर पर्यटकों का मन तरोताजा हो जाता है। खासतौर से गर्मी के मौसम में कैम्प्टी जलप्रपात में स्नान करने का अनुभव आप जिंदगी भर नहीं भुला पाएंगे।
कैम्प्टी जलप्रपात के निकट कैम्प्टी झील है। लोग यहां पर अपने परिवार एवं मित्रों के साथ समय बिताने के लिए आते हैं। यहां उपलब्ध नौकायन और टॉय ट्रेन की सुविधा बच्चों को खासा लुभाती है। यही नहीं, यह स्थल पिकनिक मनाने के इच्छुक लोगों में बहुत ही लोकप्रिय है।
कार्ट मेकेंजी रोड पर स्थित यह प्राचीन मंदिर मसूरी से लगभग 6 कि॰मी॰ दूर है। वाहन ठीक मंदिर तक जा सकते हैं। यहां से मसूरी के साथ-साथ दून-घाटी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
मसूरी-देहरादून रोड पर यह नया विकसित किया गया पिकनिक स्पॉट है, जो मसूरी से लगभग 6 कि॰मी॰ दूर है। यह एक आकर्षक स्थान है। यहां पैडल-बोट उपलब्ध रहती हैं। यहां से दून-घाटी और आसपास के गांवों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
टिहरी बाई-पास रोड पर लगभग 2 कि॰मी॰ की दूरी पर यह एक विकसित किया गया पिकनिक स्पॉट है, इसके आसपास पार्क है जो देवदार के जंगलों और फूलों की झाड़ियों से घिरा है। यहां तक पैदल या टैक्सी/कार से पहुंचा जा सकता है। पार्क में वन्य प्राणी जैसे घुरार, कण्णंकर, हिमालयी मोर, मोनल आदि आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं।
6 कि॰मी॰ की दूरी पर भारत के प्रथम सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट की दि पार्क एस्टेट है, उनका आवास और कार्यालय यहीं था, यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया है।
मसूरी से 9 कि॰मी॰ पश्चिम में 2104 मी. की ऊंचाई पर ज्वालाजी मंदिर स्थित है। यह बेनोग हिल की चोटी पर बना है, जहां माता दुर्गा की पूजा होती है। मंदिर के चारों ओर घना जंगल है, जहां से हिमालय की चोटियों, दून घाटी और यमुना घाटी के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं।
यह बंगला 1838 में एक ब्रिटिश मेजर ने बनवाया था, जो मसूरी में बने पहले चार भवनों में से एक है। अब इस बंगले को होटल में बदला जा चुका है, क्लाउड्स एंड कहे जाने वाला यह होटल मसूरी हिल के एकदम पश्चिम में, लाइब्रेरी से 8 कि॰मी॰ दूर स्थित है। यह रिजार्ट घने जंगलों से घिरा है, जहां पेड़-पौधों की विविध किस्में हैं साथ ही यहां से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां और यमुना नदी को देखा जा सकता है। विदेशी पर्यटकों और हनीमून पर आने वाले दंपत्तियों के लिए यह सबसे उपयुक्त रिजार्ट है।
मसूरी से 27 कि॰मी॰ दूर चकराता-बारकोट रोड पर यह फिशिंग के लिए एक आदर्श स्थान है। फिशिंग के लिए परमिट लिया जा सकता है।
मसूरी से लगभग 25 कि॰मी॰ दूर मसूरी-टिहरी रोड पर स्थित है धनोल्टी। मार्ग में, चीड़ और देवदार के जंगलों के बीच बुरानखांडा से हिमालय का शानदार दृश्य देखा जा सकता है। सप्तांहत में आराम करने के लिए धनोल्टी एक आद्रश स्थान है। यहां टूरिस्ट-बंगलो उपलब्ध हैं।
यह स्थान मसूरी-टिहरी रोड पर मसूरी से लगभग 33 कि॰मी॰ दूर और धनोल्टी से 8 कि॰मी॰ दूर स्थित है। पर्यटक बस या कार द्वारा कड्डु खल (देवास -थाली) तक जा सकते हैं, जहां से आगे 2 कि॰मी॰ पैदल चलकर यहां पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर समुद्र तल से 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, यहां से हिमालय का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां की यात्रा का अनुभव भूला नहीं जा सकता।
धनोल्टी से लगभग 31 कि॰मी॰ दूर है। यहां तक यात्रा बहुत शानदार है क्योंकि सड़क फलों के बागानों से होकर गुजरती है। सीजन के दौरान, पूरे मार्ग पर सेव बहुतायत में मिलते हैं। बसंत के मौसम में, फलों से लदे वृक्षों को कैमरे में कैद किया जा सकता है, क्योंकि अपने पूरे शबाब के समय इन्हें देखना आंखों को सुखद लगता है। पृष्ठभूमि में शानदार हिमालय दिखाई देता है।
कैम्पटी फाल से गुजरने पर मसूरी -यमुनोत्री रोड पर 75 कि॰मी॰ दूर है लाखा-मंडल। कुवा तक 71 कि॰मी॰ की सड़क यात्रा के बाद यमुना नदी को सड़क-पुल से पार करना पड़ता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां पुरातत्व महत्व की सैंकड़ो मूर्तियां रखी गई हैं। कहा जाता है कि कौरवों ने यहां लाख का महल बनाया था और यहां पांडवों को जिंदा जलाने का षडयंत्र रचा था।
मसूरी के आसपास अनेक मार्ग हैं, जहां प्रकृति के भरपूर दर्शन किए जा सकते हैं और जहां पूर्ण शांति है।
जय श्री राम
नागटिब्बा से हिमालय की चोटियां का शानदार दृश्य दिखाई देता है। यहां से बरास्ता पंथवाड़ी, नैनबाग और कैम्पटी की कुल 62 कि॰मी॰ की दूरी कवर की जा सकती है।
बरास्ता पार्क टोल-क्लाउड्स एंड, धुधली मसूरी से लगभग 15 कि॰मी॰ दूर यह ट्रेकिंग के लिए एक आदर्श स्थान है। मसूरी शहर के एकदम पश्चिमी क्षेत्र में स्थित भद्रज से दून घाटी, चकराता श्रृंखला और गढ़वाल हिमालय के जौनसर बालर क्षेत्र का शानदार दृश्य दिखाई देता है। भगवान बालभद्र को समर्पित भद्रज मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। प्रति वर्ष अगस्त माह के तीसरे सप्ताह (श्रावण संक्रांति) में यहां एक वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है।
26 कि॰मी॰ लंबे इस मार्ग पर हिमालय की चोटियों और घाटी के कुछ दिल दहलाने वाले दृश्य दिखाई देते हैं। मसूरी-सुवाखोली-सहस्त्रधारा : मसूरी से 11 कि॰मी॰ दूर सुवाखोली तक मोटर यात्रा के बाद सहस्त्रधारा तक पहुंचा जा सकता है और वहां से देहरादून के लिए बस पकड़ी जा सकती है।
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