याज्ञवल्क्य
ऋषि / From Wikipedia, the free encyclopedia
याज्ञवल्क्य (ईसापूर्व ७वीं शताब्दी)[1], भारत के वैदिक काल के एक ऋषि तथा दार्शनिक थे। वे वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसेनीय शाखा के द्रष्टा हैं। इनको अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है।
सामान्य तथ्य याज्ञवल्क्य, जन्म ...
याज्ञवल्क्य | |
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जन्म | कार्तिकमास की शुक्लसप्तमी |
पेशा | ऋषि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विधा | यजुर्वेद के ज्ञाता |
जीवनसाथी | मैत्रेयी |
रिश्तेदार | वेदव्यास के शिष्य |
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याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य शतपथ ब्राह्मण की रचना है - बृहदारण्यक उपनिषद जो बहुत महत्वपूर्ण उपनिषद है, इसी का भाग है।[2] इनका काल लगभग १८००-७०० ई पू के बीच माना जाता है। इन ग्रंथों में इनको राजा जनक के दरबार में हुए शास्त्रार्थ के लिए जाना जाता है। शास्त्रार्थ और दर्शन की परंपरा में भी इनसे पहले किसी ऋषि का नाम नहीं लिया जा सकता। इनको नेति नेति (यह नहीं, यह भी नहीं) के व्यवहार का प्रवर्तक भी कहा जाता है।