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रयुक्यु द्वीपसमूह (जापानी: 琉球諸島, रयुक्यु शोतो), जिन्हें नानसेई द्वीपसमूह (南西諸島, नानसेई शोतो) भी कहा जाता है, पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीपसमूह है।[1] यह जापान के क्यूशू द्वीप के दक्षिण-पश्चिम में और पूर्वी चीन समुद्र की पूर्वी सीमा पर स्थित हैं। इन द्वीपों का मौसम उपोष्णकटिबंधीय (सबट्रॉपिकल) है, जिसमें सर्दियों में मध्यम ठण्ड और गर्मियों में काफ़ी गरमी पड़ती है। यहाँ बारिश बहुत ज़्यादा होती है और कभी-कभी चक्रवात (साईक्लोन) भी आते हैं।
इन द्वीपों के लोगों की अपनी रयुक्युआई भाषाएँ हैं, जो हर द्वीप पर थोड़ी भिन्न तरीक़े से बोली जाती हैं। लगभग सभी द्वीपवासी इनके अतिरिक्त जापानी भाषा भी बोलते हैं। प्रशासनिक नज़रिए से रयुक्यु द्वीपों के उत्तरी भाग को "सातसुनान द्वीप" बुलाया जाता है और यह क्षेत्र कागोशीमा प्रांत का हिस्सा है, जबकि दक्षिणी द्वीपों को "रयुक्यु शोतो" बुलाया जाता है और यह ओकिनावा प्रांत का हिस्सा हैं। रयुक्यु के लोग अपनी लम्बी आयु के लिए विश्व-भर में मशहूर हैं।
किसी ज़माने में रयुक्यु राजशाही एक स्वतन्त्र देश हुआ करता था। सन् 1372 ई॰ में इसपर दबाव डालकर, चीन के मिंग साम्राज्य ने इनसे कर वसूल करना शुरू कर दिया। सन् 1609 में क्यूशू पर स्थित सातसुमा राज्य (薩摩藩) के नरेश शिमाज़ु तादात्सुने (島津 忠恒) ने 13 युद्ध नौकाओं पर 2,500 सामुराई लेकर रयुक्यु राजशाही पर धावा बोल दिया। रयुक्युआई लोगों के पास कोई सैनिक बल तो था नहीं इसलिए उनके राजा शो नेई (尚寧) ने अपनी प्रजा की जाने बचने के लिए सबको हमलावरों के आगे समर्पण करने का आदेश दे दिया। इसके बाद एक अजीब सा ऐतिहासिक दौर रहा जिसमें रयुक्यु चीनी सम्राट और जापानी शोगन (将軍, अर्थ: तानाशाह) दोनों को कर देने लगा ताकि वे दोनों ही इन्हें चैन से जीने दें।[2] जापान के शासकों को यह पता था लेकिन वे इस व्यवस्था से संतुष्ट थे और सन् 1655 में उन्होंने औपचारिक रूप से रयुक्यु को चीन को भी कर देने की अनुमति दे दी।
समय के साथ-साथ रयुक्यु जापान के प्रभाव में आता गया। सन् 1872 में जापान ने रयुक्यु को एक "हान" (藩, एक ज़मीनदारी रियासत) का दर्जा दे दिया लेकिन उसके नियंत्रण का ज़िम्मा अपने विदेश मंत्रालय को दिया (यानि उसे अभी भी एक विदेशी क्षेत्र के नज़रिए से देखा)। सन् 1874 में रयुक्यु ने चीन को कर देना ख़त्म कर दिया और कर-वसूली की दृष्टि से पूरी तरह जापानी नियंत्रण में आ गया।[3] सन् 1875 में रयुक्यु की ज़िम्मेदारी विदेश मंत्रालय से गृह मंत्रालय को सौंप दी गई। सन् 1879 में जापान की सरकार ने घोषणा कर दी के रयुक्यु अब पूरी तरह जापान का हिस्सा हैं। रयुक्यु के राजा को कोई अड़चन खड़ी करने से रोकने के लिए उन्हें सैंकड़ों मील दूर जापान की राजधानी टोक्यो में बस जाने पर मजबूर कर दिया गया। सन् 1894 में पहला चीन-जापान युद्ध छिड़ गया, जिसमें चीन की हार हुई। सन् 1895 में करी गई शिमोनोसेकी संधि में चीन ने इस बात पर हस्ताक्षर कर दिए के अब रयुक्यु हमेशा के लिए जापान का ही अंग हैं और चीन का उनपर कोई अधिकार नहीं।[3]
रयुक्यु के लोगों की उम्रें अक्सर बहुत लम्बी होती है और प्रतिशत के हिसाब से सौ साल से अधिक जीने वालों का दर रयुक्यु में विश्व के दूसरे भागों से अधिक है। इसपर बहुत से अध्ययन हो चुके हैं जिनसे पता लगा है के इसका कारण उनका आहार, व्यायाम और जीने का लहजा है।
रयुक्यु पर कई वन हैं, जिनकी क़िस्में ताइवान, फ़िलिपीन्ज़, दक्षिणपूर्वी एशिया और पूर्वोत्तर भारत से मिलती-जुलती हैं। समुद्र में मूँगे द्वारा बने गई सुन्दर शैल-भित्तियाँ (रीफ़) फैली हुई हैं।
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