साम्ब
भगवान् श्रीकृष्ण का पुत्र विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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साम्ब श्रीकृष्ण जी के पुत्र थे।और जैन धर्म के अनुसार इन्होंने प्रद्युम्न कुमार की भांति ही जैन दीक्षा लेकर गिरनार से मोक्ष प्राप्त किया हालाँकि हिंदू ग्रंथों में ये बताया गया है कि पहले श्रीकृष्ण जी की रानी ज़ाम्बवती की कोई संतान नहीं थी। तो उन्होंने श्रीकृष्ण जी से प्रार्थना की कि उन्हें भी एक गुणगान पुत्र चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि होने वाले उसी पुत्र के कारण से यदुवंशी कुल का नाश होगा। परन्तु अपनी रानी ज़ाम्बवती के कहने से उन्होंने भगवान शिव की पूजा की और तब रानी के यहाँ साम्ब जी का जन्म हुआ। भगवान शिव के कारण पुत्र का जन्म हुआ था इसलिए उनका नाम साम्ब रखा गया।[1]
स्कन्ध पुराण के चतुर्थ काशीखण्ड के पूर्वार्घ में बताया गया है कि साम्ब सभी भाइयों में सबसे अधिक सुन्दर एवं गुणगान थे। बाद में उन्होंने सूर्य भगवान की आराधना करने के लिए काशी में एक कुण्ड बनवाया था जो आज भी साम्ब कुण्ड के नाम से मशहूर है। मान्यता है कि वहाँ पर स्नान करने से रोग और कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है। ज़ाम्बवतीनन्दन वीरवर साम्ब ने दुर्योधन पुत्री लक्ष्मना का बलात् हरण, उनके स्वयंवर के अवसर पर ही कर लिया था। तब कौरवों ने कर्ण और भीष्म इत्यादि अपनी सेना के वीर योद्धाओं के संग मिल कर साम्ब को युद्ध करके बाँध लिया था। इस का उल्लेख विस्तार से श्रीविष्णुपुराण के पंचम अंश के पैंतीसवें अध्याय में आता है।
सुयोधनस्य तनयां स्वयंवरकृतक्षणाम्। बलादादत्तवान्वीरस्साम्बो जाम्बवतीसुतः ॥ ४
और इस का ज़िक्र श्रीमद्देवीभागवत् पुराण के दशम स्कंध (उतरार्द्ध) अड़सठवॉं अध्याय और महाभारत अध्याय 185, श्लोक 17 में भी आता है।
हालाँकि बाद में अरुणनयन श्रीबलभद्र जी साम्ब को दहेज और वधू सहित बिना युद्ध किये अपने प्रभाव से वापिस द्वारिकापुरी ले गये। इस का भी श्रीविष्णुपुराण में बहुत उल्लेख है।
ततस्तु कौरवास्साम्बं सम्पूज्य हलिना सह। प्रेषयामासुरूद्वाहधनभार्यांसमन्वितम्॥ (३८, श्रीविष्णुपुराण)
साम्ब केवल इसी कारण से उल्लेखनीय नहीं है। यादवकुल का पूरा अंत महाबाहु साम्ब जी की वजह से ही हुआ था। ऐसा उल्लेख श्रीमद्देवीभागवत् पुराण, श्रीविष्णुपुराण, भविष्य पुराण, स्कंध पुराण और साम्ब पुराण में आता है।
भविष्य पुराण में उल्लेख है कि एक बार बसन्त ऋतु में दुर्वासा मुनि तीनों लोकों में विचरते हुए द्वारिका आये। श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब ने उनकी जटा, कृश, पिंगल नेत्र और अति कुरूप रूप को देख कर और अपने रूप के अभिमान में उन ऋषि का हास्य करते हुए अनुकरण किया। इससे ऋषि दुर्वासा मुनि, जो कि रूद्र का अवतार भी कहे गये हैं, क्रोधित हो गये और साम्ब को श्राप दे दिया कि वे बहुत जल्दी कुष्ठी हो जाएँगे।
कुछ समय पश्चात नारद ऋषि द्वारकापुरी में श्रीकृष्ण जी से मिलने आये। श्रीकृष्ण जी ने उन्हें अर्घ्य, आसन आदि समर्पित किया। ऐसा हर बार होता था श्रीकृष्ण नारद मुनि जी के आने पर उनका सत्कार करते थे। परन्तु साम्ब अभिमानी होने के कारण ऋषि मुन्नियों का आदर-सत्कार नहीं करते थे। इस बात से नारदजी भी दुःखी रहते थे। नारदजी साम्ब को इस बात का दण्ड देना चाहते थे। आज जब वे आयें तो मौक़ा देख कर नारदजी ने श्रीकृष्ण से कहा-‘मैं आपको एकान्त में कुछ कहना चाहता हूँ।’
श्रीकृष्ण सब समझते थे परन्तु वे भी साम्ब को दण्ड देने का मन बना चुके थे। इसलिए वे एकान्त में नारदजी से पूछने लगे-‘कहिए मुनिराज क्या कहना है?’ तब नारदजी बोले-‘ प्रभो! ये साम्ब बहुत रूपवान और परम सुन्दर है। आपकी देवतुल्य स्त्रीयॉं साम्ब पर क्षुब्ध रहती हैं, आपको इन सबकी परीक्षा लेनी चाहिए।’
सुनकर श्रीकृष्ण जी ने सबको वहाँ बुला कर परीक्षा ली और जान गये कि सत्य में ही स्त्रीयों को क्षोभ उत्पन्न होता है। तब उन्होंने स्त्रीयों को श्राप दिया कि समय आने पर उन्हें चोर ले जायेंगें। और ऐसा हुआ भी।* और दुर्वासा मुनि के श्राप को याद करते हुए साम्ब को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। (श्रीवराहपुराण, अध्याय १७७, पृष्ठ संख्या ३१९-३२१, मुद्रक गीता प्रेस गोरखपुर )
तब साम्ब ने विनती की - ‘हे प्रभो! मैं तो दोषरहित था परन्तु फिर भी आपने मुझे ये दुःख दे दिया है। मुझे कोई श्राप से छूटने का कारण बताइये।’ तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा -‘ इसका निवारण नारदजी ही कर सकते हैं।’ तब नारदजी से पूछने पर साम्ब जी ने सूर्य नारायण की उपासना की और फिर से एक अति सुन्दर शरीर को प्राप्त किया। साम्ब का शरीर सुंदर बनाने हेतु भगवान सूर्य द्वारा उन को ‘माध्यन्दिन-संहिता’ का अध्ययन कराया गया जिस के कारण से साम्ब जी का एक दूसरा नाम ‘माध्यन्दिन’ भी हुआ।
साम्ब ने एकबार स्त्री का वेश बनाकर द्वारका में आए हुए कुछ ज्ञानसम्पन्न मुनिजनों से पूछा-‘मुझे पुत्र की इच्छा है।’ इस प्रकार से धोखा देने पर ज्ञानसम्पन्न मुनिजनों ने कुपित हो कर श्राप दे दिया कि तुम मूसल जनोगे, जिससे समस्त यादवों का कुल संसार में निर्मूल नाश हो जायगा। और आगे चलकर ऐसा ही हुआ।
दिव्यज्ञानोपपन्नास्ते विप्रलब्धाः कुमारकैः । मुनयः कुपिताः प्रोचुर्मुसलं जनयिष्यति ॥ ९ सर्वयादवसंहारकारणं भुवनोत्तरम्। येनाखिलकुलोत्सादो यादवानां भविष्यति ॥
( श्रीविष्णुपुराण, पंचम अंश, श्री पराशर उवाच ९-१० श्लोक)
साम्ब अपने पिता भगवान श्रीकृष्ण जी से समय-समय पर धर्म और सुखी जीवन के बारे में चर्चा करते रहते थे। सूर्य देवता की महत्ता श्रीकृष्ण जी ने ही साम्ब को सर्वप्रथम बताई थी। इस का उल्लेख भविष्य पुराण (पूर्वार्द्ध) में है।
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