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मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधियों के बीच संधि विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
17 मई 1782 को मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधियों द्वारा प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध(1775ई.-1782ई.) को समाप्त करने के लिए लंबी बातचीत के बाद सिन्धिया ने पेशवा व अग्रेजों के मध्य सालबाई की संधि (1782 ) करवा दी । इसकी शर्तों के तहत,
कंपनी ने साल्सेट और भरूच पर नियंत्रण बनाए रखा और गारंटी ली कि मराठा मैसूर के हैदर अली को हरा देंगे और कर्नाटिक क्षेत्र को वापिस हासिल करेंगे।
मराठों ने यह भी गारंटी दी कि फ्रांसीसी अपने क्षेत्रों पर बस्तियां स्थापित करने से प्रतिबंधित होंगे।
बदले में, अंग्रेज़ों ने अपने शागिर्द, रघुनाथ राव को पेंशन देने पर सहमति जताई और माधवराव द्वितीय को मराठा साम्राज्य के पेशवा के रूप में स्वीकार किया।
अंग्रेजों ने जुमना नदी के पश्चिम में महादजी सिंधिया के क्षेत्रीय दावों को भी मान्यता दी और पुरंदर की संधि के बाद अंग्रेजों द्वारा कब्जा किए गए सभी क्षेत्रों को मराठों को वापस दे दिया गया।
सालबाई की संधि के परिणामस्वरूप 1802 में द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध छिड़ने तक मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच (20 वर्ष) सापेक्ष शांति का दौर चला। [1] डेविड एंडरसन ने ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से सालबाई की संधि का समापन किया। [2]
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