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हाड़ौती (जिसे हाड़ौली, हाड़ावली, इत्यादि नाम से भी जाना जाता है) बूंदी राज्य था। यह पूर्वी राजस्थान में स्थित है। इसके बड़े शहरों में बूंदी और कोटा हैं।
उत्तर भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र | |||||||||||||||||
स्थिति | पूर्वी राजस्थान | ||||||||||||||||
Flag of 19th c. | |||||||||||||||||
राज्य स्थापित: | 12th century | ||||||||||||||||
भाषा | हाड़ौती भाषा | ||||||||||||||||
राजवंश | मीणा, हाड़ा | ||||||||||||||||
ऐतिहासिक राजधानी | बूंदी | ||||||||||||||||
पृथक राज्य | कोटा, झालावाड़ | ||||||||||||||||
इसमें सम्मिलित जिले हैं:
इसके पश्चिम में मेवाड़, उत्तर पश्चिम में अजमेर हैं। इसके दक्षिण में मालवा और पूर्व में गिर्द क्षेत्र हैं।
दक्षिण पूर्वी राजस्थान का क्षेत्र पूर्व में मालवा पठार, पश्चिम में अरावली पर्वतमाला और पश्चिम में मारवाड़ पठार, मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। प्रमुख नदी चंबल नदी है, जिसकी सहायक नदियाँ कालीसिंध, पार्वती नदी, परवन नदी और चापी नदी हैं। मिट्टी जलोढ़ है।
बूँदी
की स्थापना राव देवा हाड़ा ने 1242 मे जैता मीना को हरा कर कि। नगर कि दोनो पहाडियो के मध्य "बून्दी कि नाल" नाम से प्रसिद्ध नाल के कारण नगर का नाम "बून्दी" रखा गया। बाद मे इसी नाल का पानी रोक कर नवलसागर झील का निर्माण कराया गया। राजा देव सिंह जी के उपरान्त राजा बरसिंह ने पहाडी पर 1354 में तारागढ़ नामक दुर्ग का निर्माण करवाया। साथ ही दुर्ग मे महल और कुण्ड-बावडियो को बनवाया। १४वी से १७वी शताब्दी के बीच तलहटी पर भव्य महल का निर्माण कराया गया। सन् १६२० को राव रतन सिंह जी ने महल मे प्रवेश के लिए भव्य पोल(दरवाज़ा) का निर्माण कराया गया। पोल को दो हाथी कि प्रतिमुर्तियों से सजाया गया उसे "हाथीपोल" कहा जाता है। राजमहल मे अनेक महल साथ ही दिवान- ए - आम और दिवान- ए - खास बनवाये गये। बूँदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए विख्यात है, इसे महाराव राजा "श्रीजी" उम्मेद सिंह ने बनवाया जो अपनी चित्रशैली के लिए विश्वविख्यात है। बूँदी के विषयों में शिकार, सवारी, रामलीला, स्नानरत नायिका, विचरण करते हाथी, शेर, हिरण, गगनचारी पक्षी, पेड़ों पर फुदकते शाखामृग आदि रहे हैं।
1264 युद्ध मे भील राजा कोटिया भील की हत्या कर कोटा [ अकेलगढ ] पर क़बज़ा कर लिया। वह कोट्या की वीरता से इस हद तक प्रभावित हो गए थे कि उन्होंने इस नवीन रूप से अधिकृत स्थान का नाम कोटा रख दिया। कोट्या का शरीर से अलग किया गया । नया निर्मित क़िले की नीव में दफ़न कर दिया गया। कोट्या भील मन्दिर में हर दिन उसका स्मरण किया जाने लगा। यह महल की बाहरी दीवार में स्थित है जो मुख्य द्वार की बाईं ओर है। कोटा शायद एक-मात्र नगर है जो किसी विजयी के स्थान पर पराजित व्यक्ति के नाम पर बना है। कोटा के स्वतंत्र राज्य का गठन 1631 में संभव हो सका। यह महल स्थानीय लोगों द्वारा गढ़ महल कहा जाता है।
1838 में कोटा के सरदार की सहमति से यह तय किया गया कि इससे झालावाड़ को अलग किया जाएगा और झालावाड़ राज्य का एक प्रावधान रखा जाए जहाँ ज़ालिम सिंह के वंशज राज्य-भार संभालेंगे।
14वीं -15वीं शताब्दी में बाराँ शहर सोलंकी राजपूतों के अधीन रहा। यह सटीक रूप से पता नहीं चल सका कि 12 गाँवों के बीच एक प्रमुख नगर का नाम बाराँ कब पड़ गया। इस बारे में कई विचार हैं, जैसे कि कुछ मानते हैं कि "बारह गाँव" से "बाराँ" नाम लिया गया है। कुछ मानते हैं कि चूँकि इस क्षेत्र की मिट्टी अधिकांशत: बारानी है, इसी से यह नाम बाराँ पड़ गया।
पूरे क्षेत्र का नाम बूँदी था जब कई राज्य इससे अलग होकर बिखर गए। यह पूरा क्षेत्र वर्तमान राज्य राजस्थान का भाग है। इनमें सबसे बड़े नगर बूँदी और कोटा हैं।
इसमें बूँदी, बाराँ, झालावाड़ और कोटा के ज़िले भी शामिल हैं और यह पश्चिम में मेवाड़ से लगते हैं, पूर्वोत्तर में अजमेर क्षेत्र से लगते हैं, दक्षिण में मालवा से जुड़ते हैं और पूर्व में मध्य प्रदेश राज्य के गिर्द क्षेत्र से जुड़ते हैं।
इस क्षेत्र का नाम हाड़ा चौहान राजपूतों से है जो विशाल चौहान राजपूतों के वंश की शाखा है। हाड़ा इस क्षेत्र में 12वीं शताब्दी में आकर बस गए थे और क्षेत्र पर कई सदियों तक अपना वर्चस्व बनाए रखे थे। हाड़ा देव ने बूँदी पर 1242 में और कोटा पर 1264 में क़बज़ा जमाया। एक समय पर हाड़ा का संयुक्त राज्य वर्तमान ज़िलों बाराँ, बूँदी, कोटा और झालावड़ तक फैला हुआ था।
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