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हृदय रोग
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आम भाषा में हृदय रोग को दिल की बीमारी कहते है । इस रोग से आजकल सभी परिचित है । वर्तमान जीवन शैली खान - पान , रहन - सहन , क्रोध , चिन्ता से हृदय रोगियों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है ।[1] आयुर्वेद के अनुसार , दिल या हृदय शरीर के 'रसवह स्रोत तंत्र' का महत्वपूर्ण हिस्सा है । उल्लेखनीय है कि शरीर के विभिन्न अंगों को उचित ढंग से कार्य करने के लिए रस यानी धांतु की आवश्यकता होती है , जो हृदय की सहायता से समस्त शरीर में प्रवाहित होती है । एलोपैथी में जिसे कॉर्डियोवस्क्युलर सिस्टम कहते हैं , वही रसवह स्रोत है । सुश्रुत के अनुसार 'रसवह खेत' का हमारी श्वसन प्रक्रिया यानी प्राणबह स्रोत से भी गहरा संबंध है । हृदय इन दोनों ही तंत्रों के बीच सामंजस्य स्थापित करता है , ताकि शरीर व उसके विभिन्न अंगों को रस की आपूर्ति होती रहे और वे सामान्य ढंग से अपना काम करते रहें । हृदय स्वस्थ रहे , इसके लिए उचित खान - पान और नियमित जीवनशैली आवश्यक है । गरिष्ठ , भारी , गर्म मसालेदार , खट्टे - तीखे खाद्यपदार्थों के अत्यधिक सेवन ; बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत , भय , तनाव , बहुत अधिक या कम मात्रा में आहार ग्रहण करना , डिप्रेशन , गुस्सा आदि से भी हृदय का स्वास्थ्य प्रभावित - होता है । आयुर्वेद के अनुसार नित्य - क्रियाएं जैसे कि मल , मूत्र विसर्जन , भूख - प्यास , छींकना , खांसना , आंसू आना , उल्टी - मितली जैसे आवेगों को हा रोकने से हृदय पर बुरा असर पड़ता है ।[2] हृदय शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। मानवों में यह छाती के मध्य में, थोड़ी सी बाईं ओर स्थित होता है और एक दिन में लगभग एक लाख बार एवं एक मिनट में 60-90 बार धड़कता है। यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को धकेलता करता है। हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के द्वारा मिलता है जो कोरोनरी धमनियों द्वारा प्रदान किया जाता है। यह अंग दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं। दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है और रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है। चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं।
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