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आम निर्वाचन २०४८ नेपालमा जनआन्दोलन २०४६बाट प्रजातन्त्र पुनर्स्थापना भएपश्चात् भएको पहिलो निर्वाचन हो। यसले २०५ प्रतिनिधि सभा सदस्यहरू निर्वाचित गरेको थियो। नेपाल अधिराज्यको संविधान २०४७ अनुसार २०४८ वैशाख २९ गते संसदको निर्वाचन भएको थियो, जसमा नेपाली काङ्ग्रेस बहुमतका साथ सत्तामा पुगेको थियो भने उल्लेख्य सिट सहित नेकपा एमाले प्रमुख प्रतिपक्ष बन्न पुगेको थियो।[2][3]
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कुल मतदान | ६५.१५%[1] | ||||||||||||||||||||||||||||
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राजनीतिक दल | नेता | उम्मेदवार | मत | % | सिट | |
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नेपाली कांग्रेस | कृष्णप्रसाद भट्टराई | २०४ | २७,४२,४५२ | ३७.७५ | ११० | |
नेकपा (एकीकृत मार्क्सवादी–लेनिनवादी) | मदन भण्डारी | १७७ | २०,४०,१०२ | २७.९८ | ६९ | |
राष्ट्रिय प्रजातन्त्र पार्टी (चन्द) | लोकेन्द्रबहादुर चन्द | १५४ | ४,७८,६०४ | ६.५६ | ३ | |
राष्ट्रिय प्रजातन्त्र पार्टी (थापा) | सूर्यबहादुर थापा | १६३ | ३,९२,४९९ | ५.३८ | १ | |
संयुक्त जनामोर्चा नेपाल | बाबुराम भट्टराई | ७० | ३,५१,९०४ | ४.८३ | ९ | |
नेपाल सद्भावना पार्टी | गजेन्द्रनारायण सिंह | ७५ | २,९८,६१० | ४.१० | ६ | |
नेकपा (प्रजातान्त्रिक) | विष्णुबहादुर मानन्धर | ७५ | १,७७,३२३ | २.४३ | २ | |
नेपाल मजदूर किसान पार्टी | नारायणमान बिजुक्छे | ३० | ९८,३३५ | १.२५ | २ | |
नेपाल राष्ट्रिय जनमुक्ति पार्टी | मलाबर सिंह थापा | ५० | ३४,५०९ | ०.४७ | ० | |
नेकपा (वर्मा समूह) | कृष्णराज वर्मा | ३६ | १६,६९८ | ०.२३ | ० | |
जनता दल (समाजवादी प्रजातान्त्रिक) | केशरजंग रायमाझी | १५ | ५,७६० | ०.०८ | ० | |
नेपाल राष्ट्रिय जनता पार्टी | ४ | ५,७३२ | ०.०८ | ० | ||
नेकपा (अमात्य समूह) | तुलसीलाल अमात्य | १४ | ४,८४६ | ०.०७ | ० | |
राष्ट्रिय जनता पार्टी | ९ | ४,२८० | ०.०६ | ० | ||
नेपाल रूढिवादी पार्टी | ६ | २,५६२ | ०.०४ | ० | ||
बहुजन जनता दल | १ | २,०१२ | ०.०३ | ० | ||
एकता पार्टी | १ | ९४ | ०.०० | ० | ||
दलित मजदूर किसान पार्टी | १ | ९२ | ०.०० | ० | ||
स्वतन्त्र | २१९ | ३,०३,७२३ | ४.१७ | ३ | ||
अवैध मत | — | ३,२२,०२३ | ४.४२ | — | ||
जम्मा | १,३४५ | ७२,९१,०८४ | १०० | २०५ |
चुनावको परिणाम अनुसरण गर्दै नेपाली काङ्ग्रेस सत्तामा आएको थियो गिरिजाप्रसाद कोइराला नेपालको प्रधानमन्त्रीमा नियुक्त भएका थिए।[4] जेठ २०४८ मा पहिलोपटक प्रतिनिधि सभाको बैठक बसेको थियो। दमननाथ ढुङ्गाना सभामुखको रूपमा रहेका थिए।[5] आफ्नै दलका केही सदस्यहरूले उनीविरुद्ध अविश्वासको प्रस्तावमा मतदान गरेपछि साउन २०५१ मा, राजा वीरेन्द्रलाई संसद विघटन गर्न आग्रह गर्दै गिरिजाप्रसाद कोइराला नेतृत्वको सरकारले आफ्नो पूर्ण पाँच वर्षे कार्यकाल पूरा गर्न असफल भएको थियो।[6][7]
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