शिवानन्द गोस्वामी
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'शिवानन्द गोस्वामी'| शिरोमणि भट्ट (अनुमानित काल : संवत् १७१०-१७९७) तंत्र-मंत्र, साहित्य, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, सम्प्रदाय-ज्ञान, वेद-वेदांग, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, खगोलशास्त्र-ज्योतिष, होरा शास्त्र, व्याकरण आदि अनेक विषयों के जाने-माने विद्वान थे।[2] इनके पूर्वज मूलतः कांचीपुरम तमिलनाडू के तेलगूभाषी उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं के आग्रह और निमंत्रण पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि अनौपचारिक पदों पर आसीन हुए|[3] शिवानन्द गोस्वामी त्रिपुर-सुन्दरी के अनन्य साधक और शक्ति-उपासक थे। एक चमत्कारिक मान्त्रिक और तांत्रिक के रूप में उनकी साधना और सिद्धियों की अनेक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं।[4] श्रीमद्भागवत के बाद सबसे विपुल ग्रन्थ सिंह-सिद्धांत-सिन्धु लिखने का श्रेय शिवानंद गोस्वामी को है।"[5]
शिवानन्द गोस्वामी | |
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जन्म |
शिरोमणि भट्ट अनिश्चित / (अनुमानित १६५३ ईस्वी) पाणमपट्ट/कांचीपुरम (तमिलनाडु) |
मौत |
अनिश्चित अनिश्चित / संभवतः बीकानेर (??) |
मौत की वजह | वृद्धावस्था |
आवास | चंदेरी, ओरछा, महापुरा, आमेर जयपुर, बीकानेर, काशी[1]तथा कुछ अज्ञात अन्य नगर |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपनाम | शिरोमणि भट्ट / गोस्वामी शिवानन्द भट्ट/ शिवानन्द भट्ट / गोस्वामी शिरोमणि भट्ट / भट्टाचार्य शिरोमणि |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | पारम्परिक पद्धति से |
शिक्षा की जगह | स्वाध्याय से संस्कृत, तमिल, तेलगू, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, पालि, प्राकृत, तन्त्र-मंत्र, आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, व्याकरण आदि |
पेशा | राजगुरु / कुलगुरु |
कार्यकाल | विक्रम-संवत १७१० से १७९७(?) |
संगठन | महाराजा विष्णुसिंह, महाराजा अनूपसिंह, बुंदेला महाराजा देवीसिंह, राजा दुर्गसिंह चंदेरी |
गृह-नगर | महापुरा जयपुर बीकानेर |
पदवी | साक्षी-नाट्य-शिरोमणि/ गोस्वामी/ |
प्रसिद्धि का कारण | संस्कृत कविता तंत्रसाधना साहित्यकार |
धर्म | हिन्दू |
जीवनसाथी | नाम शोधाधीन |
बच्चे | दो- श्री श्रीनिकेतन भट्ट (द्वितीय) / श्री विद्यानिवास गोस्वामी |