फगुआ
एक तरह के भोजपुरी लोकगीत / From Wikipedia, the free encyclopedia
फगुआ भोजपुरी इलाका में फागुन के महीना में, होली के मौसम में, गावल जाये वाला लोकगीत हवे।[1] जाड़ा के बाद बसंत के आगमन के उछाह आ होली मनावे के तय्यारी फगुआ के गीतन से पता चले ला। बसंत पंचिमी के सम्मत गड़ा जाला आ एही दिन से फगुआ गवाये लागे ला जे लगभग चालीस दिन चले ला, होली के दिन ले।[2][3][4]
कुछ अन्य क्षेत्रन में एकरा के फाग भी कहल जाला। होरी आ रसिया गीत भी एही से मिलत जुलत भावना के गीत होलें।
एक ठो खास अर्थ में, झुंड में फगुआ गावत समय अगर केहू कौनों भुलाइल फगुआ के गीत इयाद क के कढ़ा देला त ओकर फगुआ साथी लोग पर चढ़ गइल अइसन कहल जाला, एह तरह के उधारी के दूसर अइसने फगुआ सुना के उतारल जाला, जेकरा के फगुआ दिहल कहल जाला।[5]
फगुआ के गीत अक्सर शृंगार रस के या भक्ति के गीत होलें जेह में राधा-कृष्ण, राम-सीता या शिव पार्वती के बर्णन होला।[3][6]फागुन में फगुआ मनावे के उल्लेख साहित्य में भी कई जगह मिले ला।[7]
फगुआ मनावे के रिवाज भोजपुरी इलाका ले सीमित नइखे, भोजपुरी भाषा बोले वाला लोग जहाँ दूसरा देस जा के बस गइल उहाँ भी एकर महत्व बाटे।[8]
फागुन आ होली के मौसम में फगुआ के महत्व अब घटत जात बा।[9]