वैदिक संस्कृत
वैदिक संस्कृति / From Wikipedia, the free encyclopedia
वैदिक संस्कृत 600 ईसापूर्व से लेकर 2000 ईसापूर्व तक बोली जाने वाली एक हिन्द-आर्य भाषा थी।[2] यह संस्कृत की पूर्वज भाषा थी और आदिम हिन्द-ईरानी भाषा की बहुत ही निकट की सन्तान थी। वैदिक संस्कृत और अवस्ताई भाषा (प्राचीनतम ज्ञात ईरानी भाषा) एक-दूसरे के बहुत निकट हैं। वैदिक संस्कृत हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की हिन्द-ईरानी भाषा शाखा की सब से प्राचीन प्रामाणिक भाषा है।[3]
वैदिक संस्कृत | ||||
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बोलने का स्थान | Bronze Age India, Iron Age India | |||
क्षेत्र | भारतीय उपमहाद्वीप | |||
मातृभाषी वक्ता | – | |||
भाषा परिवार |
हिन्द-यूरोपीय
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भाषा कोड | ||||
आइएसओ 639-3 |
– ( is proposed)[1][dated info] | |||
लिंग्विस्ट लिस्ट | vsn | |||
qnk Rigvedic | ||||
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वैदिक संस्कृत भाषा में व्यापक प्राचीन साहित्य आधुनिक युग में बच गया है, और यह प्रोटो-इंडो-यूरोपीय और प्रोटो-इंडो-ईरानी इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए जानकारी का एक प्रमुख स्रोत रहा है।[4][5] पूर्व-ऐतिहासिक युग में काफी पहले, संस्कृत एक पूर्वी ईरानी भाषा, एवेस्टन भाषा से अलग हो गई थी। पृथक्करण की सटीक सदी अज्ञात है, लेकिन संस्कृत और अवस्थन का यह अलगाव 1800 ईसा पूर्व से पहले निश्चित रूप से हुआ था।[4][5] एवेस्टन भाषा प्राचीन फारस में विकसित हुई, जोरोस्ट्रियनिज्म की भाषा थी, लेकिन सासैनियन काल में एक मृत भाषा थी।[6][7] प्राचीन भारत में स्वतंत्र रूप से विकसित वैदिक संस्कृत, पाणिनि के व्याकरण और भाषायी ग्रंथ के बाद शास्त्रीय संस्कृत में विकसित हुई,[8] और बाद में कई संबंधित भारतीय उपमहाद्वीप भाषाओं में, जिनमें बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म के प्राचीन और मध्यकालीन साहित्य पाए जाते हैं।
हिन्दुओं के प्राचीन वेद धर्मग्रन्थ वैदिक संस्कृत में लिखे गए हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में श्रौत जैसे सख़्त नियमित ध्वनियों वाले मंत्रोच्चारण की हज़ारों वर्षों पुरानी परम्परा के कारण वैदिक संस्कृत के शब्द और उच्चारण इस क्षेत्र में लिखाई आरम्भ होने से बहुत पहले से सुरक्षित हैं। वेदों के अध्ययन से देखा गया है कि वैदिक संस्कृत भी सैंकड़ों वर्षों के दीर्घ काल में बदलती गई। ऋग्वेद की वैदिक संस्कृत, जिसे ऋग्वैदिक संस्कृत कहा जाता है, सब से प्राचीन रूप है। पाणिनि के नियमीकरण के बाद की शास्त्रीय संस्कृत और वैदिक संस्कृत में पर्याप्त अन्तर है। इसलिए वेदों को मूल रूप में पढ़ने के लिए संस्कृत ही सीखना पार्याप्त नहीं बल्कि वैदिक संस्कृत भी सीखनी पड़ती है।[9] अवस्ताई फ़ारसी सीखने वाले विद्वानों को भी वैदिक संस्कृत सीखनी पड़ती है क्योंकि अवस्तई ग्रन्थ कम बचे हैं और वैदिक सीखने से उस भाषा का भी अधिक विस्तृत बोध मिल जाता है।[10]